एम ते गाथामां बताववानुं प्रयोजन छे. ज्यारे आ जीवने एम निश्चय थाय छे के प्रत्येक पदार्थ पोतपोताना
क्रमनियमितपणाथी परिणमे छे माटे परनुं तो कांई पण करवानो मारामां अधिकार नथी ज. मारी पर्यायमां
पण हुं कांई फेरफार करी शकुं छुं ए विकल्प पण शमन करवा योग्य छे. त्यारे आ जीव निज आत्माना
स्वभाव सन्मुख थईने ज्ञाता द्रष्टारूपे परिणमन करतो थको पोताने परनो अकर्त्ता माने छे अने त्यारे ज
तेणे ‘क्रमनियमित’ ना सिद्धांतनो परमार्थरूपे स्वीकार कर्यो एम कही शकाय छे.
त्यारे ज थई शके छे के ज्यारे ते अंतरथी ‘क्रमनियमित’ ना सिद्धांतनो स्वीकार करी ले. माटे मोक्षमार्गमां
आ सिद्धांतनुं बहु ज मोटुं स्थान छे एम प्रकृतमां (–असली वास्तविक; यथार्थरूपमां अहीं) जाणवुं जोईए.
कारण के जेम सुवर्णने कंकण आदि परिणामो साथे तादात्म्य छे तेम सर्व द्रव्योने पोतपोताना परिणामो साथे
तादात्म्य छे. आम जीव पोताना परिणामोथी ऊपजतो होवा छतां एने अजीवनी साथे कार्य–कारणभाव
सिद्ध थतो नथी, कारण के सर्व द्रव्योने अन्य द्रव्यो साथे उत्पाद्य–उत्पादकभावनो अभाव छे; अने एक द्रव्यने
बीजा द्रव्य साथे कार्य–कारणभाव सिद्ध न थवाथी अजीव जीवनुं कर्म छे एम सिद्ध थतुं नथी अने अजीवने
जीवनुं कर्मत्व सिद्ध न थवाथी कर्ता–कर्म परनिरपेक्ष सिद्ध थाय छे अने कर्ता–कर्म पर निरपेक्ष सिद्ध थवाथी
जीव अजीवनो कर्ता सिद्ध थतो नथी, माटे जीव अकर्ता छे ए व्यवस्था बनी जाय छे.
श्री सद्गुरुए कह्यो छे एवा निर्गं्रथ मार्गनो सदाय आश्रय रहो, हुं
चैतन्यस्वरूप अविनाशी एवो हुं आत्मा छउं.–एम आत्मभावना करतां