प्रथम जेठ : २४८७ : १९ :
पुण्य – पापना भाव
आकुळतामय – दु:खरूप छे.
(जामनगरमां समयसार कर्ताकर्म अधिकार गा. ७र उपर पूज्य गुरुदेवना प्रवचन)
(माह सुद ११, वीर सं. २४८७) ता. २३–१–६१
सम्यग्दर्शन वीतरागनी भक्ति छे. पूर्ण वीतराग परमात्मा थया, तेने ओळखनार भगवाननो भक्त
छे. पापथी बचवा पुण्य, दया, दानना भाव आवे छतां श्रद्धामां कर्तव्य माने नहि, हेय माने छे, कारण के
पुण्य–पाप बेउ ज्ञानस्वभावना विरोधी छे, दुःखना कारण छे, पुण्यनी रुचिवाळाने आ वात बेसती नथी,
पण ज्यारे नित्यानंद पवित्र सुखदाता मारो स्वभाव छे. अने आस्रवो पुण्यपाप खरेखर दुःख छे उपाधि छे
ए जाणतां ज स्वभावनी रुचिवडे अंतरथी तेनी रुचि छूटे छे. एटलुं जाणवा मात्रथी ज अनंतसंसारनुं
कारण मिथ्यात्व टळी जाय छे.
ज्ञायकस्वभाव सुखदाता छे अने पुण्यपापादि आस्रवो दुखदाता ज छे एम जाणे ते पछी
गृहस्थदशामां केम रहे?
तीर्थंकर चक्रवर्ती राजा होय, तेने ९६ करोड पायदळ लश्कर होय, अनेक स्त्री छतां अंतरथी पूरेपूरा
उदास हता. श्रद्धामां, ज्ञानमां अने अंशे स्वरूपाचरण चारित्रमां निरन्तर सर्वथी राग–रहितपणे वर्त्तता होय
छे छतां चारित्रनी नबळाई छे, तेना कारणे गृहस्थ दशामां रहे छे, शुभाशुभ भाव थवा छतां ते आकूळता
उपजावनारा भासे छे. चोथा गुणस्थाने १२ प्रकारनो असंयम छे, क्रोधादि सर्व कषायनो अभाव कर्यो नथी
छतां रुचि तो अंतरमां शुद्ध चिदानंद साक्षी उपर छे तेथी ते बहारमां के रागादि आस्रवोमां ऊभो नथी पण
ज्यां अंतरनी रुचि छे त्यां ज ऊभो छे, क्षणे–क्षणे संसारने तोडी स्वभावमां वृद्धि भाळे छे.
आचार्यदेव कहे छे के भाई धीरजथी जो, शान्ति–सुख तारामां ज छे, अनंतकाळे आ अवतार मळ्यो
तेमां सोयमां दोरो परोवे तो न खोवाय तेम सम्यग्दर्शनरूपी दोरो आत्मामां परोवीने निश्चय श्रद्धा न करी तो
चोरासीना चक्करमां हाथ नहि आवे. समकितने सोंघु बतावे तेथी शुं एक लाखनो हिरो पांच पैसामां कांई
मळी जाय? तेनी पूरेपूरी कींमत देवी पडे छे तेम आत्मामां तीव्र जिज्ञासा पूर्वक अपूर्व प्रयत्न करवो पडे छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र त्रणे महान रत्न छे, ते कोने कहेवा, नीचे पुण्य–पाप होय पण ते अंर्त