Atmadharma magazine - Ank 213
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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प्रथम जेठ : २४८७ : २१ :
सर हुकमीचंदजी शेठ ईन्दोरथी २०? रनी सालमां सोनगढ आवेला; गळामां त्रीश लाखनी कींमतनो
निलमनो हार हतो. हवे नाना बाळको लींबडानि लींबोळीने ईन्द्र नीलमणी माने तो तेनी कींमत आवे?
लींबोळीने नीलमणीमां खतववा जाय ते जेम न चाले तेम पुण्य–पापना भाव कडवी लींबोळी जेवा
आकुळतामय छे, आत्मानुं रूप नथी.
आवी स्पष्ट वात श्री कुन्दकुन्दाचार्ये कही छे. जीवे अनादिथी सत् सांभळ्‌युं नथी; भगवान
कुन्दकुंदाचार्य बे हजार वर्ष पहेलां थई गया. मद्रासथी ८० माईल दूर पोन्नर–हिल–पहाड छे त्यां तेओ
आत्मध्यानमां लीन रहेता हता. एकवार ध्यानमां वर्त्तमान सदेहे बिराजमान श्री सीमंधर भगवान
तीर्थंकरदेव जेओ विदेहज्ञेत्रमां छे, तेमनुं ध्यान करतां समवसरण चिंतवता हता. विरह लाग्यो, के अरे, आ
काळे साक्षात् परमात्मानो भेटो नथी, पोताने एवा पुण्य अने पवित्रतानो योग तेथी त्यां धर्मसभामां–
(समवसरणमां) श्री तीर्थंकर प्रभुना श्रीमुखथी–“
सद्धर्मवृद्धि अस्तु” शब्द नीकळ्‌यो. तेने साक्षात्
सांभळनारा देवो आवीने आचार्यने ते समाचार आपे छे; तेमने तो आकाशमां अद्धर गमन करवानी रिद्धि
हती तेथी त्यां जई आठ दिवस रह्या; त्यां साक्षात् तीर्थंकरनी वाणी सांभळी; श्रुतकेवळीओना परिचय करी
भरतक्षेत्रमां आव्या अने तेमने गुरुपरम्पराथी तथा तीर्थंकरथी साक्षात् मळेला ज्ञान प्रमाणे समयसार,
प्रवचनसार, पंचास्तिकाय. नियमसार, अष्टपाहुड, आदि परमागम (शास्त्र) बनाव्या. ते बधामां
समयसार–कर्ताकर्म अधिकारमां तो गजब रचना करी छे. सत्समागमे अभ्यास श्रवण–मनन करी समजे तो
न्याल थई जाय!
पुण्य–पाप तो जळमां सेवाळ जेम मेल छे, चैतन्यथी विरुद्ध छे–उदयभाव छे. अशुद्धता करनार
होवाथी संसार दुःखना करनारा छे. माटे शुभभाव पण शान्तिनुं–आत्मधर्मनुं कारण नथी पण नित्य
चिदानंद स्वभावी आ आत्मा ज साची शान्ति–सुख (–धर्म) नुं कारण छे. एवो निर्मळ स्वभाव हुं छुं एवी
श्रद्धा करतां ज मिथ्यात्वरूपी आस्रवोथी मुक्त थाय छे
कोईने प्रश्न थाय के धर्मी आवुं समजे छे तो पछी पूजा, भक्ति, मंदिरमां भगवाननी मूर्ति अने
पुण्यभाव केम करे? पण श्रद्धा–ज्ञान निर्मळ (–सम्यक्) होवा छतां ज्यां सुधी पूर्ण वीतराग न थाय त्यां
राग आव्या विना रहे नहि, मुनि थाय तोपण अहिंसा, सत्य, दत्त, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह ए पांच महाव्रत
वगेरे र८ मूळगुणना शुभभाव आवे ते राग छे, उदयभाव छे, अने ते उदयभावने तत्त्वार्थ सूत्रमां बंधनुं
कारण कहेल छे. अज्ञानी तेने धर्म अने धर्मनुं कारण माने छे, ते अनादिनो भ्रम छे. अविकारी स्वभावनो
तिरस्कार छे.
आत्मानुं लक्षण शुभाशुभ विकार नथी. आत्मा विकारनुं कारण नथी. जो तेम होय तो अशुद्धता
कारण ने शुद्धता तेनुं कार्य थाय पण एम नथी. सम्मेदशिखर –सं. २०१३ मां गयेला; त््यां व्याख्यानमां आ
त्रीजो बोल आव्यो के महाव्रत शुभराग छे, आस्रव छे, दुःखनुं कारण छे, आत्म शान्तिनुं कारण नथी; ते
सांभळतां एक पंडितजीने दुःख लागतुं हतुं पण तत्त्वार्थ सूत्रमां तेने आस्रव कहेल छे; बंधनुं कारण ते धर्मनुं
(सुखनुं) कारण केम बने?
कोईने सत्य काने पडतां न गमे, अने कोई व्यक्ति सत्यनो आदर करे–अपूर्व उत्साह लावे. हीरा
सराणे चडे तेना भूकानी किंमत घणी, तेम आत्महितनी अध्यात्मरसनी सत्यवात प्रीतिथी सांभळे के पुण्य–
पाप आकुळता छे. भगवान आत्मा सदा पवित्र सुखदाता अनाकुळ छे तेनी हा पाडे (आदर करे) तोपण
महान अपूर्व जातना पुण्य बंधाय छे.
पद्मनंदी आचार्ये एकत्व सप्ततिमां कह्युं छे के–मारो स्वभाव पूर्ण ज्ञानानंद आदि पवित्र स्वभावपणे