Atmadharma magazine - Ank 213
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 23 of 25

background image
: २२ : आत्मधर्म : ए.२१३
छे. पुण्य–पापादि विरुद्धभावपणे नथी, एम प्रसन्नता पूर्वक आ चैतन्य स्वभावनी वात पण सांभळी छे ते
भव्यजीव भावि निर्वाणनुं भाजन (पात्र) छे.
असंख्य प्रकारना पुण्य–पापना भाव छे, ते बधाय दुःखदाता छे, जे समये करे ते ज समये तेटली
आकुळताने वेदे छे, अने तेना निमित्तमां परभव–परलोकमां चार गतिना शरीर मळे छे. हजी पूर्वभव न
माने, पुण्य–पापमां सुख माने ते अध्यात्मनी वातने जूठी माने ज.
नरक लोकनी साबिती शुं के जेने निरन्तर क्रूरता छे, हिंसावादी छे पोताने प्रतिकूळ भासे एवा अनेक
मनुष्य वगेरेना खून कर्या छे. हवे, तेना प्रमाणमां तेनुं फळ आ लोकमां नथी: अहीं तो कोर्टमां पुरावो मळे ने
पापनो उदय होय तो तेने एकवार ज फांसीनी सजा थाय. कांई हजारवार न थाय; त्यारे शुं कुदरतना क्रममां
पापनुं पूरेपूरुं फळ नहि होय? छे–ते नरक क्षेत्र छे; जेने अगणित, अमर्यादित संख्यामां बीजाओने
मारवाना क्रूरभाव वर्ते छे. लांबु आयुष्य हो्य तो ज्यां सुधी ते जीवे त्यां सुधी पोतानी सगवडता खातर
बीजाने हणवाना भाव छे, तेमां संख्या, काळ, के क्षेत्रनो आंतरो पाड्यो नथी तेना फळमां आ लोकमां दंड
नथी पण ज्यां आंतरा विना दसहजार वर्षथी मांडीने असंख्य अबज वर्ष सुधी एकधारी प्रतिकूळता ज छे.
शरीरना कटका थता पाछुं पारानी जेम भेगुं थई जाय एवुं क्षेत्र निरन्तर प्रतिकूळतानुं स्थान नरकलोक नीचे
(अधःलोक) छे.
तिर्यंच–पशु आडाशरीरवाळाने कहे छे; कपटमाया करे तेना फळमां तेमां अनंतवार जई आव्यो. याद
नथी आवतुं माटे तुं त्यां नोतो? आ भाव मीठो–परभव कोणे दीठो, एम धीठाई करी जे थवानुं हशे ते थशे.
सत्य आवुं होय वगेरे समजवानी माथाकूट शी?
तो जेम घोडापूर पाणी नदीमां उपरथी चाल्युं आवे छे; अने कोई वच्चे ऊभो छे; कोई कहे खसी जा!
अभिमानी न खसे, तो शुं थाय? तेम सत्य समजवानी दरकार करे नहि, कदाच उपदेश सांभळे पण
आत्महितमां सावधान न थाय ते बधा एना जेवा छे.
कोई कहे के नजरे देखाय तेटलुं मानुं–हवे दीवासळीमां शक्तिरूपे अग्नि छे न देखाय तेथी तेमां शक्ति
नथी? हाथ लगाडे तो ठंडु लागे, आंखे देखाय नहि, पण ज्ञानवडे निर्णय करे तो–अग्नि प्रगट थया पहेलां ज
तेना टोपकामां अग्निरूपे थवानी शक्ति छे ते स्पष्ट जणा्य छे. तेम आत्मामां बहारना भागने देखे तो
पुण्य–पाप रागादि अने अल्पज्ञता ज देखाय छे; तेना आश्रये पूर्णस्वभावनो भरोंसो न थाय.
परमात्मशक्तिनो महिमा न आवे पण वर्त्तमान जे ज्ञान परमां ठीक–अठीक करी दुःखी थाय छे ते ज ज्ञान
स्वभाव–विभावनो भेद समजीने अंदरमां ढळे के आ विचार करनारो कोण छे. आकुळता दुःख क्षणे–क्षणे
बदलाय जाय छे; टळे छे ने तेने जाणनारो एनो ए छे; ते कांई दुःखरूपे नथी. एम भेद जाणतां ज जे ज्ञान
रागमां पोतापणुं मानतुं–कर्तव्य मानतुं ते ज ज्ञान अंतर स्वभावमां ढळतां अतीन्द्रिय सुखनो स्वाद लेतुं
आत्मानी प्रसिद्धि करे.
ज्ञानशक्तिनो अजब महिमा छे. १०० वर्षनी उंमरवाळो ९० वर्षनी वात क्षणमां याद करे छे, त्यां
चोपडाना पाना फेरववा पडे तेम वार लागती नथी. ए स्मरण शक्ति (–ज्ञाननो उघाड) तो अति अल्प छे;
तेनी पाछळ ज्ञाननी त्रिकाळी ध्रुवशक्ति बेहद छे; तेने भूली पुण्य–पापना विकारने कर्त्तव्य मानी, भला
मानीने, स्वभावने भूल्यो छे त्यांथी गुलांट मारी पूर्णज्ञाता शक्तिनो भरोंसो लावी, वर्त्तमान ज्ञानने
अंतरमां वाळे तो असली पूर्णस्वभावनी द्रष्टि अने अतीन्द्रिय सुखस्वभावनो अनुभव करी शकाय छे.