Atmadharma magazine - Ank 213
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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प्रथम जेठ : २४८७ : :
वर्ष अढारमुं : अंंक ८ मो संपादक : रामजी माणेकचंद दोशी प्रथम जेठ : २४८७
सत्य – प्रसशनय जीवन

आत्मानुं खरूं जीवन शुं छे ते श्री अमृतचंद्राचार्य देव
जीवत्वशक्तिना वर्णनमां देखाडे छे. बहारमां सुख सगवडमानी तेनी
सगवडता (अनुकूळता) ए राजी थवुं तेमां जीववुं अने अगवडताए खेद
खिन्न थईने नाराजीपणे जीववुं ते जीवनुं खरुं जीवन नथी. अंदर शाश्वत
अनंत चैतन्यशक्तिनी संपदाथी भरपूर एवा एकरूप समस्वभावी
चैतन्यभावमां (ज्ञायकभावमां) तन्मय रहीने
स्वाश्रय ज्ञान–आनंदमय
जीवन जीववुं ते ज खरुं जीवन छे. भगवान श्री नेमिनाथप्रभुनी
स्तुतिमां कह्युं छे के–हे भगवान!
‘तारुं जीवन खरुं तारुं जीवन...
जीवी जाण्युं नेमनाथे जीवन...”
द्रव्य, गुण अने पर्याय त्रणेयमां एकरूप चैतन्यमय भावप्राणने
धारण करीने टके ते जीवन खरुं जीवन छे. तारा सत्य जीवननुं कारण
कोण? तारा जीवनना प्राणने ओळख. चैतन्यभाव प्राण ज तारा
जीवननुं कारण छे. आवी चैतन्यभाव प्राणने धारण करनारी जीवत्व
शक्तिनी ओळखाण साथे एवी अनंत शक्ति एक साथे आत्मामां उछळे
छे एवा ज्ञानमात्र आत्मानी ओळखाण ते मोक्षतत्त्वनी दातार छे.
(समयसार परिशिष्ट प्रथम शक्तिना प्रवचनमांथी)