Atmadharma magazine - Ank 213
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: : आत्मधर्म : ए.२१३
मो क्ष मा र्ग एक ज छे –
बे के त्रण नथी
(आत्मधर्म अंक २०८ थी चालु)

श्री समयसार गाथा–४१२ ना कलश २४० कह्युं छे के :–
एको मोक्षपथो य एप नियतो द्रग्ज्ञप्तिवृत्यात्मक–
स्तत्रैवस्थितिमेतियस्तमनिशं ध्यायेच्य तं चेतति ।
तस्मिन्नैव निरंतरं विहरति द्रव्यान्तराण्यस्पृशन्,
सोऽवश्यं समयस्यसारमचिरान्नित्योदयंविंदति ।। २४०।।
अर्थ : दर्शनज्ञानचारित्रस्वरूप जे आ ‘एक’ नियत मोक्षमार्ग छे, तेमां ज जे पुरुष स्थिति पामे छे
अर्थात् स्थित रहे छे, तेने ज निरंतर ध्यावे छे, तेने ज चेते–अनुभवे छे अने अन्य द्रव्योने नहि स्पर्शतो थको
तेमां ज निरंतर विहार करे छे, ते पुरुष जेनो उदय नित्य रहे छे एवा समयना सारने (अर्थात् परमात्माना
रूपने) थोडा काळमां ज अवश्य पामे छे.–अनुभवे छे.
भावार्थ :– निश्चयमोक्षमार्गना सेवनथी थोडा ज काळमां मोक्षनी प्राप्ति थाय ए नियम छे. २४०
३४ आ कलशनो अर्थ श्री समयसार कळश टीका पा. २७प मां आपवामां आव्यो छे, ते उपयोगी
होवाथी अहीं लेवामां आवे छे. ते नीचे प्रमाणे छे.
(१) स=एवो छे जे सम्यग्द्रष्टि जीव (२) नित्योदय=नित्य उदयरूप (३) समयस्य सार=सकळ
कर्मनो विनाश करी प्रगट थयो छे जे शुद्ध चैतन्यमात्र तेने (४) अचिरात्–अतिज थोडा काळमां (प)
अवश्यं विंदति–सर्वथा आस्वाद करे छे.
(प) भावार्थ=एवो छे के, निर्वाणपदने प्राप्त थाय छे.
(६) केवो छे ते (सम्यग्द्रष्टि जीव) य:=जे सम्यग्द्रष्टि जीव
(७) तत्र=शुद्ध चैतन्यमात्र वस्तु विषे
(८) एव=एकाग्र थई करी
(९) स्थितिम् एति=स्थिरता करे छे,
(१०) च=तथा तं=शुद्ध स्वरूपने–(अनिशंध्यायेत्=) निरंतरपणे अनुभवे छे. (
च तं येतति–]
वारंवार ते शुद्धस्वरूपनुं स्मरण करे छे.
१. शुद्ध अवस्थानुं प्रगट थवुं तेने पण ‘उदय’ कहेवामां आवे छे–मात्र कर्मनी अवस्थाने ज ‘उदय’ कहे छे एम नथी.
र. अवश्य=रागादि–कर्मोना उदय–परद्रव्यादिने वश न थवुं–पोताना आत्माने वश थई रहेवुं. जुओ श्री नियमसार गा.
१४६ आवश्यक अधिकार.
३. त्रणे काळे एक ज स्वरूप ते नियम छे. आ उपरथी व्यवहारमोक्षमार्ग परालंबी छे, तेथी तेना वडे मोक्ष न थाय –बंध
थाय एवो नियम बताव्यो.
४. केटलाक माने छे के–जैनसिद्धांतमां ‘ज’ अने ‘सर्वथा’ कांई होतुं नथी–ते मान्यता यथार्थ नथी एम अहीं बताव्युं छे.
श्री समयसार कलश टीकामां तो स्थानेस्थाने ‘ज’ अने ‘सर्वथा’ शब्दो वापरवामां आव्यां छे.