Atmadharma magazine - Ank 213
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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प्र. जेठ : २४८७ : :
(च तस्मित् एव निरंतर विहरती=) शुद्धचिद्रूपमां एकाग्र थई अखंडधाराप्रवाहरूप प्रवर्ते छे.
(द्रव्यांतराणि अस्पृशन्) जेटला कोई कर्मना उदयथी नाना प्रकारनी अशुद्ध परिणति छे ते सर्वथा छोडतो
थको. (यःदृज्ञप्ति वृत्यात्मक:–) दर्शन–ज्ञान–चारित्र सर्वस्व जेने ए प्रमाणे छे. (मोक्षपथ:–) तेने शुद्धस्वरूपे
परिणमतां सकल कर्म क्षय थाय छे; (एक=) समस्त विकल्पथी रहित छे (नियतं=) द्रव्यार्थिक द्रष्टिए जोतां
जेवो छे तेवो छे, तेमां हीन रूप नथी. अधिक नथी.
३प. अहीं ‘अन्य द्रव्योने नहीं स्पर्शतो’ ए पदनो अर्थ तमाम प्रकारनी अशुद्ध परिणतिने छोडतो
एम कर्यो छे ते बतावे छे के–परपदार्थोने तेमज तमाम प्रकारनी अशुद्ध परिणतिने ‘द्रव्यांतर’ कह्यां छे. तेथी
सिद्ध थयुं के–व्यवहार मोक्षमार्ग अशुद्ध परिणतिरूप द्रव्यांतर छे, तेनाथी मोक्ष थतो नथी; माटे ते छोडवा
योग्य छे; ते करतां करतां मोक्षमार्ग के मोक्ष थाय ए श्रद्धा असत्य होवाथी छोडवा जेवी छे.
३६. श्री योगसारनी गाथा २९नो सार एवो छे के–मूढ लोक व्यवहारव्रत, संयम तथा २८
मूळगुणोने मोक्षमार्ग कहे छे परंतु ए सर्व जरापण मोक्षमार्ग नथी. शुद्ध–पवित्र अने उत्क्ृष्ट आत्मानो
अनुभव ज मोक्षमार्ग छे.
३७. आ विषय श्री समयसार गा. ४१२ नी टीकामां नीचेना शब्दोमां समजाव्यो छे:–
“×× तथा समस्त कर्मचेतना अने कर्मफळ चेतनाना त्यागवडे शुद्धज्ञानचेतनामय थईने दर्शन–ज्ञान–
चारित्रनेज चेत–अनुभव; तथा द्रव्यना स्वभावना विशे (पोताने) जे क्षणे क्षणे परिणामो उपजे छे ते–
पणावडे (अर्थात् परिणामीपणा वडे) तन्मय परिणामवाळो (दर्शन–ज्ञान–चारित्रमय परिणामवाळो)
थईने दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां ज विहर, तथा ज्ञानरूप एकने ज अचलपणे अवलंबतो थकी, जेओ ज्ञेयरूप
होवाथी उपाधिस्वरूप छे एवां सर्व तरफथी फेलातां समस्त परद्रव्योमां जरापण न विहर.”
३८. आ टीकामां ‘ध्या’ , ‘चेत–अनुभव’–दर्शन–ज्ञान–चारित्रमां ज विहर,’ ‘सर्वतरफथी फेलातां
समस्त परद्रव्योमां जरापण न विहर’–एम चारे बोलो आज्ञावाचक (Imperative) छे. एनो अर्थ
एवो थयो के धर्मी जीवोए आ एक ज मोक्षमार्ग मानवो एम भगवान श्री कुन्दकुन्दाचार्य अने श्री
अमृतचंद्र आचार्यनी आज्ञा छे.
३९. आ टीका उपरथी व्यवहारमोक्षमार्ग केवो छे ते समजाय छे. ते नीचे प्रमाणे छे.
(१) व्यवहारमोक्षमार्ग कर्मचेतना छे अने ते त्यागवा योग्य छे. तेनावडे आत्मानो अनुभव थई
(२) व्यवहारमोक्षमार्ग स्वद्रव्यना स्वभावना वशे नथी थतो पण परद्रव्यना स्वभावना वशे थाय
(३) व्यवहारमोक्षमार्ग–(निज) तन्मय–परिणामवाळो नथी पण तन्मयपरिणामथी विरुद्ध छे.
(४) व्यवहारमोक्षमार्ग ज्ञानरूपने एकने ज अवलंबतो नथी पण परद्रव्यने अवलंबे थाय छे.
(प) व्यवहारमोक्षमार्ग उपाधिस्वरूप छे, निश्चय मोक्षमार्ग समाधि स्वरूप छे. तेथी बन्ने परस्पर
४०. श्री समयसार गाथा ४१० मां मुनिनां अने गृहस्थनां लिंगो ए मोक्षमार्ग नथी (एम
जणावी) दर्शन–ज्ञान–चारित्रने जिनदेवो मोक्षमार्ग कहे छे, एम कह्युं छे. आ उपरथी नक्की थाय छे के श्री
समयसारमां पण ठेक–ठेकाणे एक ज मोक्षमार्ग छे अने बे के त्रण मोक्षमार्ग नथी, एवी श्रद्धा करावी छे.