Atmadharma magazine - Ank 213a
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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अषाड : २४८७ : :
स्वरूपनी भावना करवायोग्य छे,–के जेथी आत्मा सदाय स्थिरताने पामे.
निर्जरा अधिकारमां आ श्लोक मूकीने एम कह्युं के आवा आत्मस्वरूपनी भावना ते ज निर्जरानो
उपाय छे.
श्रवणमां–वांचनमां–विचारमां–भावनामां–श्रद्धामां–ज्ञानमां सर्वत्र पोताना आत्मस्वरूपने ज
आदरवुं. आम सर्वप्रकारथी आत्मस्वरूपना अनुभवनो प्रयत्न करतां जरूर तेनी प्राप्ति थाय छे, ने
अविद्यानो नाश थई जाय छे. अहीं तो अभ्यास, श्रवण, तत्परता, आराधना, वांचवुं, पूछवुं, देखवुं,
जाणवुं–ईत्यादि घणा बोल कहीने ए बताव्युं छे के खरा जिज्ञासुने आत्मस्वरूपना अनुभवनी झंखना ने
धगश केटली उग्र होय? बीजे बधेयथी पाछो वळीवळीने सर्व प्रकारथी एक चैतन्यनी ज भावनानो प्रयत्न
करे छे. जेम एकनोएक वहालो पुत्र खोवाई गयो होय त्यां माता तेने केवा केवा प्रकारे शोधे!! अने कोई
तेने तेनो पत्तो मळवानी वात संभळावे तो केवा उत्साहथी सांभळे!! तेम जिज्ञासुने आत्माना स्वरूपना
निर्णय माटे एवी लय लागी छे के वारंवार तेनुं ज श्रवण, तेनी ज पृच्छा, तेनी ज ईच्छा, तेमां ज तत्परता,
तेनो ज विचार करे छे, जगतना विषयोनो रस तेने छूटतो जाय छे ने आत्मानो ज रस वधतो जाय छे.–
आवा द्रढ अभ्यासथी ज आत्मानी प्राप्ति (अनुभव) थाय छे.
जिज्ञासुने आत्मानी केवी लगनी होय ते बताववा अहीं माता–पुत्रनो दाखलो आप्यो छे; जेम
कोईनो एकनो एक वहालो पुत्र खोवाई जाय तो ते केवी रीते तेने ढूंढे छे! जे मळे तेने ते वात कहे, ने
जाणकारोने ए ज पूछे के ‘क््यांय मारो पुत्र देख्यो?’ एक मिनिट पण तेनो पुत्र तेना चित्तमांथी खसतो
नथी, दिनरात तेनी प्राप्ति माटे तीव्र उत्सुकताथी झूरे छे...तेम आत्मस्वरूपनी जेने जिज्ञासा जागी छे ते
आत्मार्थी जीव सत्समागमे तेने ढूंढे छे, तेनी ज वात पूछे छे के ‘प्रभो! आत्मानो अनुभव केम थाय?’
आत्मस्वरूपने प्राप्त करवानी भावना दिनरात वर्ते छे, एक क्षण पण तेने भूलतो नथी...एक आत्मानी ज
लय–लगनी लागी छे. आवी लगनीथी द्रढ प्रयत्न करतां जरूर आत्मानो अनुभव थाय छे. माटे ते ज करवा
जेवुं छे–एम आचार्यदेवनो उपदेश छे.
(वीर सं. २४८२ अषाड सुद दसम: मंगळवार)
आत्मा ज्ञानानंदस्वरूप छे एवुं जेने भान थयुं छे तेने वारंवार ते तरफ ज वलण रह्या क्रे छे. अने
जेने आत्माना अनुभव माटे रुचि–धगश जागी छे ते पण वारंवार तेनो ज प्रयत्न कर्या करे छे. ‘रुचि
अनुयायी वीर्य’ एटले के जेने आत्मानी रुचि जागी होय तेनो प्रयत्न वारंवार आत्मा तरफ वळ्‌या करे छे.
देहमां जेने आत्मबुद्धि छे ते देहने सरखो राखवा रातदिन तेनो प्रयत्न ने चिंता कर्या करे छे, पुत्रनो
जेने प्रेम छे ते पुत्रनी पाछळ दिनरात केवा झूरे छे! खावा–पीवामां क्यांय चित्त लागे नहि ने ‘मारो पुत्र’
एवी झूरणा ते निरंतर कर्या करे छे! तेम आ चैतन्यस्वरूप आत्मानी जेने खरेखरी प्रीति छे ते तेनी प्राप्ति
माटे दिनरात झूरे छे एटले के तेमां ज वारंवार प्रयत्न कर्या करे छे...विषयकषायो तेने रुचता नथी...एक
चैतन्य सिवाय बीजे क्यांय तेने चेन पडतुं नथी. एनी ज भावना भावे छे...एनी ज वात ज्ञानीओ पासे
पूछे छे... एना ज विचार करे छे. जेम माताना वियोगे नानुं बाळक झूरे छे ने तेने क््यांय चेन पडतुं नथी,
कोई पूछे छे के तारुं नाम शुं?–तो कहे छे के “मारी बा!!! ’ खावानुं आपे तो कहे के ‘मारी बा!!’ एम
एक ज झूरणा चाले छे...माता वगर तेने क््यांय जंप वळतो नथी. केमके तेनी रुचि मातानी गोदमां ज
पोषाणी छे; तेम जिज्ञासु आत्मार्थी जीवनी रुचि एक आत्मामां ज पोषाणी