आदरवुं. आम सर्वप्रकारथी आत्मस्वरूपना अनुभवनो प्रयत्न करतां जरूर तेनी प्राप्ति थाय छे, ने
अविद्यानो नाश थई जाय छे. अहीं तो अभ्यास, श्रवण, तत्परता, आराधना, वांचवुं, पूछवुं, देखवुं,
जाणवुं–ईत्यादि घणा बोल कहीने ए बताव्युं छे के खरा जिज्ञासुने आत्मस्वरूपना अनुभवनी झंखना ने
धगश केटली उग्र होय? बीजे बधेयथी पाछो वळीवळीने सर्व प्रकारथी एक चैतन्यनी ज भावनानो प्रयत्न
करे छे. जेम एकनोएक वहालो पुत्र खोवाई गयो होय त्यां माता तेने केवा केवा प्रकारे शोधे!! अने कोई
तेने तेनो पत्तो मळवानी वात संभळावे तो केवा उत्साहथी सांभळे!! तेम जिज्ञासुने आत्माना स्वरूपना
निर्णय माटे एवी लय लागी छे के वारंवार तेनुं ज श्रवण, तेनी ज पृच्छा, तेनी ज ईच्छा, तेमां ज तत्परता,
तेनो ज विचार करे छे, जगतना विषयोनो रस तेने छूटतो जाय छे ने आत्मानो ज रस वधतो जाय छे.–
आवा द्रढ अभ्यासथी ज आत्मानी प्राप्ति (अनुभव) थाय छे.
जाणकारोने ए ज पूछे के ‘क््यांय मारो पुत्र देख्यो?’ एक मिनिट पण तेनो पुत्र तेना चित्तमांथी खसतो
नथी, दिनरात तेनी प्राप्ति माटे तीव्र उत्सुकताथी झूरे छे...तेम आत्मस्वरूपनी जेने जिज्ञासा जागी छे ते
आत्मार्थी जीव सत्समागमे तेने ढूंढे छे, तेनी ज वात पूछे छे के ‘प्रभो! आत्मानो अनुभव केम थाय?’
आत्मस्वरूपने प्राप्त करवानी भावना दिनरात वर्ते छे, एक क्षण पण तेने भूलतो नथी...एक आत्मानी ज
लय–लगनी लागी छे. आवी लगनीथी द्रढ प्रयत्न करतां जरूर आत्मानो अनुभव थाय छे. माटे ते ज करवा
जेवुं छे–एम आचार्यदेवनो उपदेश छे.
अनुयायी वीर्य’ एटले के जेने आत्मानी रुचि जागी होय तेनो प्रयत्न वारंवार आत्मा तरफ वळ्या करे छे.
एवी झूरणा ते निरंतर कर्या करे छे! तेम आ चैतन्यस्वरूप आत्मानी जेने खरेखरी प्रीति छे ते तेनी प्राप्ति
माटे दिनरात झूरे छे एटले के तेमां ज वारंवार प्रयत्न कर्या करे छे...विषयकषायो तेने रुचता नथी...एक
चैतन्य सिवाय बीजे क्यांय तेने चेन पडतुं नथी. एनी ज भावना भावे छे...एनी ज वात ज्ञानीओ पासे
पूछे छे... एना ज विचार करे छे. जेम माताना वियोगे नानुं बाळक झूरे छे ने तेने क््यांय चेन पडतुं नथी,
कोई पूछे छे के तारुं नाम शुं?–तो कहे छे के “मारी बा!!! ’ खावानुं आपे तो कहे के ‘मारी बा!!’ एम
एक ज झूरणा चाले छे...माता वगर तेने क््यांय जंप वळतो नथी. केमके तेनी रुचि मातानी गोदमां ज
पोषाणी छे; तेम जिज्ञासु आत्मार्थी जीवनी रुचि एक आत्मामां ज पोषाणी