Atmadharma magazine - Ank 213a
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : २१३
छे, आत्मस्वरूपनी मने प्राप्ति केम थाय–ए सिवाय बीजुं कांई तेने रुचतुं नथी...दिनरात ए ज चर्चा...ए ज
विचार...ए ज रटणा...एने माटे ज झूरणा! जुओ, आवी अंदरनी धगश जागे त्यारे आत्मानी प्राप्ति थाय.
अने आत्मानी जेने एकवार प्राप्ति थई गई–अनुभव थई गयो ते समकिती पण पछी वारंवार तेना
आनंदनी ज वार्ता चर्चा–विचार भावना करे छे.
‘आत्मानो आनंद आवो...आत्मानी अनुभूति आवी...निर्विकल्पता आवी’...एम तेनी ज लगनी
लागी छे. ज्ञान ने आनंद ज मारुं स्वरूप छे–एम जाणीने एक तेनी ज लय लागी छे, तेमां ज उत्साह छे,
बीजे क््यांय उत्साह नथी. आवी ज्ञानानंदस्वरूप आत्मानी भावनाथी–द्रढ प्रयत्नथी–अज्ञान छूटीने ज्ञानमय
निजपदनी प्राप्ति थाय छे.
।। प३।।
* सम्यकत्वन महम *
जेम नगरमां प्रवेश करवानुं कारण द्वार छे–द्वार विना नगरमां प्रवेश
केम थाय? तेम ज्ञान, चारित्र, तप, वीर्य तेमां प्रवेश करवानुं द्वार सम्यक्त्व
छे. सम्यग्दर्शन विना ज्ञान चारित्र तप वीर्य आत्माने प्राप्त थाय नहि.
जेम मुखनी शोभा नेत्र वडे छे, तेम ज्ञान, चारित्र, तप, वीर्य
सम्यग्दर्शन वडे शोभे छे. जेम वृक्षने मूळ छे तेम ज्ञानादिकनुं सम्यग्दर्शन
मूळ छे.
(भगवती आराधना गा. ७४०)
जे दर्शनथी भ्रष्ट छे, ते भ्रष्ट छे. माटे सम्यग्दर्शन रहित ने
अनंतानंत काळमां पण निर्वाण थाय नहिं अने जे चारित्रथी भ्रष्ट छे, रहित
छे, सम्यग्दर्शनथी छूट्यो नथी तेने थोडा काळमां निर्वाण थशे. (७४२)
एक तो सम्यक्त्वनो लाभ, बीजो त्रैलोक््यनो लाभ, तेमां त्रण
लोकना लाभथी पण सम्यग्दर्शननो लाभ श्रेष्ठ छे. धरणेन्द्र नरेन्द्र देवेन्द्र
पदनो लाभ तो थोडा ज काळमां नाश पामे छे. त्रण लोकनुं राज्य पामी
राज्यथी छूटी–मरणपामीने–चार गतिमां परिभ्रमण करे ज छे अने जे
सम्यक्त्वने पामे छे ते चारगति संसारमां जन्म मरण करता नथी–
अविनाशी सुखने पामे छे. माटे सम्यक्त्वना लाभ समान त्रण लोकनो
लाभ पण श्रेष्ठ नथी. (७४६–४७)