श्रावण : २४८७ : ९ :
निश्चय – व्यवहार मीमांसा
(जैन तत्त्व मीमांसा अ. ९ चालु)
(मूळ पुस्तक पृ. र३८ थी अनुवाद चालु)
१०प. सद्भूत व्यवहारनयथी जेम आ असद्भूत व्यवहारनय पण बे प्रकारनो छे. अनुपचरित
असद्भूत व्यवहारनय अने उपचरित असद्भूत व्यवहारनय. अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनयनुं लक्षण
आपतां पंचाध्यायीमां कह्युं छे–
अपि वासद्भूतो योऽनुपचरिताख्यो नयः स भवति यथा ।
क्रोधाद्या जीवस्य हि विवक्षिताश्चेदबुद्धिभवाः ।। १–५४६।।
अर्थ:– जे बुद्धिमां न पकडाय तेवा (अव्यक्त) क्रोधादि भाव थाय छे एने जीवना स्वीकारनार नय
अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय छे. १–प४६.
मूर्त क्रोधादिने जीवना कहेवा ए असद्भूत व्यवहारनय छे ए तो अमे पहेलां ज बतावी दीधुं छे.
तेमां पण जे नय अन्य विशेषणथी रहित थईने ज तेमने जीवना स्वीकारे छे, तेमां विशेषण वडे अन्य
उपचारने स्थान मळतुं नथी. माटे अबुद्धिपूर्वक क्रोधादिक सूक्ष्म होवाथी ते समयनो ज्ञानोपयोग तेमने जाणी
शकतो नथी तेथी तेने अनुपचरित असद्भूत व्यवहारनय कहेवामां आवेल छे ए उक्त कथननुं तात्पर्य छे.
१०६. उक्त कथनने ध्यानमां राखीने उपचरितअसद्भूत व्यवहारनयनुं लक्षण पंचाध्यायीमां आ
रीते प्राप्त थाय छे.
उपचरितोऽसद्भूतो व्यवहारख्यो नयः स भवति यथा ।
क्रोधाद्याः औदयिकाश्चितश्वेद् बुद्धिजा विवक्ष्याः स्युः ।। १–५४९।।
बीजं विभावभावाः स्वपरोभयहेतवस्तथा नियमात् ।
सत्यपि शक्ति विशेषे न परनिमित्ताद्विना भवन्ति यतः ।। १–५५०।।
अर्थ:– ज्यारे जीवना क्रोधादि औदयिक भाव बुद्धि गोचर थईने विवक्षित थाय छे त्यारे ते रूपे तेने
स्वीकारनार उपचरित असद्भूत व्यवहारनय होय छे. १–प४९. आ नयनी प्रवृत्तिमां आ कारण छे के जेटला
विभावभाव होय छे ते नियमथी स्व अने परहेतुक होय छे केमके द्रव्यमां विभावरूपे परिणमन करवानी
शक्ति विशेष होवा विशेष पण तेओ पर निमित्त विना थता नथी. १–पप०.
१०७. मूळमां बुद्धिजन्य क्रोधादिने उपचरितअसद्भूतव्यवहारनयनुं उदाहरण कह्युं छे तेथी अहीं
एम समजवुं जोईए के सम्यग्द्रष्टिना उपयोगमां ज्ञान अने बुद्धिपूर्वक क्रोधादि ए बन्ने अलग अलग जणाय
छे तोपण ते क्रोधादिने ज्ञानना कहेवा ए उपचार छे. ए ज उपचारने ध्यानमां राखीने उक्त उदाहरणने
उपचरित असद्भूतव्यवहारनयनो विषय मान्यो छे.