अर्हंतदेवना मार्गनी खबर नथी, ते अर्हंतदेवना मार्गथी बहार छे.
मोक्षने नहि साधी शके. माटे, स्वरूपने साधवानो सत्य मार्ग शुं छे तेनी वात पहेलां रुचवी जोईए.
थाय? पहेलां निर्णयनुं जोर जोईए अने पछी एकाग्रताना पराक्रमरूप शूरवीरताथी कर्मबंधनने तोडी नाखे छे.
नाखवानो अति उग्र प्रयत्न छे; ने ते शुद्धोपयोग महिमावंत छे. शुद्धोपयोग सिवाय बीजो कोई खरेखर मोक्षनो
प्रयत्न के मोक्षनुं साधन नथी–एम प्रसिद्ध करीने आ त्रीजुं रत्न अर्हंतदेवना शासनना मोक्षमार्गने प्रकाशे छे.
देहनी दरकार नथी, वनना वाघ अने सिंह त्राड पाडता होय तो पण भयभीत थईने स्वरूपथी जराय डगता
नथी.–ए दशानी भावना भावतां श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के–
वळी पर्वतमां वाघ सिंह संयोग जो;
अडोल आसन ने मनमां नहीं क्षोभता,
परम मित्रनो जाणे पाम्या योग जो...
अने राग ते बंधसाधन ज छे, ने मोक्षसाधन नथी;–आ रीते बंध–मोक्षना विलक्षण पंथने आ रत्नो प्रसिद्ध
करे छे. जे जीव बंध–मोक्षना कारणरूप भावोने भिन्न भिन्न स्वरूपे नथी ओळखतो तेने जैनशासननी के
मुनिदशानी पण खबर नथी. अहा, मुनिओ तो शुद्धोपयोग वडे निर्विकल्प आनंदरसने पीतां पीतां मोक्षने
साधी रह्या छे. मुनिवरो मोक्षने साधवामां शूरवीर छे; चैतन्यमां एकाग्रतारूप महापराक्रमवडे कर्मने छेदीने
शूरवीरताथी तेओ मोक्षने साधी रह्या छे.
करीए? कर्मनुं जोर घटे तो चारित्र आवे”–एवी कायरपणानी वात करे ते मोक्षने साधी शके नहि. मुनिवरो
तो चिदानंदतत्त्वनी सन्मुख लीन थई, शुद्धोपयोग प्रगट करी, अति उग्र पुरुषार्थरूप पराक्रमवडे, कर्मने छेदीने
मोक्षने साधे छे. आ रीते शुद्धोपयोगरूप शूरवीरता ते मोक्षनुं साधन छे. शुद्धोपयोगी मुनिवरो मोक्षने
साधवामां शूरवीर छे, तेओ ज मोक्षनुं साधनतत्त्व छे–एम जाणवुं. मोक्षने साधवामां शूरवीर एवा ते
मुनिवरो पोताना सर्व मनोरथ शुद्धोपयोग वडे सिद्ध करे छे.