Atmadharma magazine - Ank 215
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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भादरवो : २४८७ : :
तरीके अर्हंतदेवना मार्गमां भगवान कुंदकुंदाचार्यदेवे प्रसिद्ध कर्युं छे. आनाथी विरुद्ध साधन जे माने तेने
अर्हंतदेवना मार्गनी खबर नथी, ते अर्हंतदेवना मार्गथी बहार छे.
अरे भाई! पहेलां तुं लक्षमां तो ले के मार्ग आवो छे...मोक्षनुं साचुं साधन आवुं छे–एम ओळखाण
तो कर. साचुं साधन ओळखे नहि ने विपरीत साधन माने तो ते ऊंधा मार्गे संसारमां ज रखडशे पण
मोक्षने नहि साधी शके. माटे, स्वरूपने साधवानो सत्य मार्ग शुं छे तेनी वात पहेलां रुचवी जोईए.
स्वरूपनी वात जेने गोठती नथी ते स्वरूप साथे गोठडी क््यांथी करशे? गोठया वगर गोठडी थाय नहीं;
चिदानंद स्वरूप शुं छे ते जेने गोठतुं नथी, श्रद्धा–ज्ञानमां बेसतुं नथी, तेने तेमां गोठडी एटले के एकाग्रता तो क््यांथी
थाय? पहेलां निर्णयनुं जोर जोईए अने पछी एकाग्रताना पराक्रमरूप शूरवीरताथी कर्मबंधनने तोडी नाखे छे.
भगवान अर्हंतदेवना शासनमां मोक्षतत्त्वनुं साधन शुं छे, तेनुं सर्वत: संक्षेपथी कथन करतां आ सूत्र
कहे छे के सकळ महिमावंत भगवंत शुद्धोपयोगी संतो ज मोक्षनुं साधन छे; तेमनो शुद्धोपयोग ते कर्मने तोडी
नाखवानो अति उग्र प्रयत्न छे; ने ते शुद्धोपयोग महिमावंत छे. शुद्धोपयोग सिवाय बीजो कोई खरेखर मोक्षनो
प्रयत्न के मोक्षनुं साधन नथी–एम प्रसिद्ध करीने आ त्रीजुं रत्न अर्हंतदेवना शासनना मोक्षमार्गने प्रकाशे छे.
अहा, मोक्षने साधनारी आ मुनिदशा!! ए मुनि चैतन्यनी शांतिमां ठरी गयेला छे...स्वरूपनी
लीनतामांथी बहार नीकळवुं गोठतुं नथी, परिणतिने बाह्य विषयोथी पाछी खेंचीने अंतरमां वाळी दीधी छे,
देहनी दरकार नथी, वनना वाघ अने सिंह त्राड पाडता होय तो पण भयभीत थईने स्वरूपथी जराय डगता
नथी.–ए दशानी भावना भावतां श्रीमद् राजचंद्रजी कहे छे के–
एकाकी विचरतो वळी स्मशानमां,
वळी पर्वतमां वाघ सिंह संयोग जो;
अडोल आसन ने मनमां नहीं क्षोभता,
परम मित्रनो जाणे पाम्या योग जो...
अपूर्व अवसर एवो क््यारे आवशे?
–आवी शुद्धोपयोगी मुनिदशा ते मोक्षनुं साधन छे. सम्यग्दर्शनमांय अंशे मोक्षनुं साधनपणुं छे, परंतु
अहीं तो उत्कृष्टपणे मोक्षनुं पूरुं साधन बताववुं छे. शुद्धरत्नत्रय ते मोक्षसाधन ज छे, ने बंधसाधन नथी,
अने राग ते बंधसाधन ज छे, ने मोक्षसाधन नथी;–आ रीते बंध–मोक्षना विलक्षण पंथने आ रत्नो प्रसिद्ध
करे छे. जे जीव बंध–मोक्षना कारणरूप भावोने भिन्न भिन्न स्वरूपे नथी ओळखतो तेने जैनशासननी के
मुनिदशानी पण खबर नथी. अहा, मुनिओ तो शुद्धोपयोग वडे निर्विकल्प आनंदरसने पीतां पीतां मोक्षने
साधी रह्या छे. मुनिवरो मोक्षने साधवामां शूरवीर छे; चैतन्यमां एकाग्रतारूप महापराक्रमवडे कर्मने छेदीने
शूरवीरताथी तेओ मोक्षने साधी रह्या छे.
‘हरिनो मारग छे शूरानो, कायरनुं नहीं काम जो...’ तेम ‘मुक्तिनो मारग छे शूरानो, कायरनुं नहीं
काम जो...’ एटले चैतन्यमां एकाग्रतारूप शूरवीरता वडे मोक्षने सधाय छे; पण “कर्मनुं जोर घणुं छे, अमे शुं
करीए? कर्मनुं जोर घटे तो चारित्र आवे”–एवी कायरपणानी वात करे ते मोक्षने साधी शके नहि. मुनिवरो
तो चिदानंदतत्त्वनी सन्मुख लीन थई, शुद्धोपयोग प्रगट करी, अति उग्र पुरुषार्थरूप पराक्रमवडे, कर्मने छेदीने
मोक्षने साधे छे. आ रीते शुद्धोपयोगरूप शूरवीरता ते मोक्षनुं साधन छे. शुद्धोपयोगी मुनिवरो मोक्षने
साधवामां शूरवीर छे, तेओ ज मोक्षनुं साधनतत्त्व छे–एम जाणवुं. मोक्षने साधवामां शूरवीर एवा ते
मुनिवरो पोताना सर्व मनोरथ शुद्धोपयोग वडे सिद्ध करे छे.
आ रीते मोक्षनुं साधन कह्युं; हवे चोथा रत्नद्वारा आचार्यदेव ते मोक्षना साधनरूप
शुद्धोपयोगने सर्व मनोरथना स्थान तरीके अभिनंदशे.