सर्वज्ञ भगवाननी दिव्यवाणीरूप जे प्रवचन, तेनो सार आ प्रवचनसारमां छे, अने तेमां पण
सार संक्षेपमां प्रकाशे छे. पहेलां संसारतत्त्व बताव्युं, पछी मोक्षतत्त्व अने मोक्षनुं साधनतत्त्व बताव्युं. हवे आ
चोथा रत्नद्वारा आचार्यदेव मोक्षना साधनरूप जे शुद्धोपयोग तेने सर्व मनोरथना स्थान तरीके अभिनंदे छे–
छे शुद्धने निर्वाण, शुद्ध ज सिद्ध, प्रणमुं तेहने. २७४
शेना मनोरथ होय? संसार–संबंधी कोई मनोरथ मोक्षार्थी–धर्मात्माने होता नथी. अहो, आत्माना
स्वभावना शांत रसने जे प्राप्त करावे–एवी आ वात छे.
जीवना मनोरथ होय. शुद्ध आत्मस्वरूपने पहेलां तो समस्त परद्रव्योथी ने रागादिथी जुदुं जाण्युं छे, पछी
तेमां शुद्धोपयोगवडे लीन थईने साक्षात् मोक्षमार्गी श्रमण क््यारे बनु, ने क््यारे केवळज्ञान–केवळदर्शन प्रगट
करीने सिद्धपदने पामुं!–आवा सर्व मनोरथनी सिद्धिनुं स्थान शुद्धोपयोग छे. अहो, आवो शुद्धोपयोग
अभिनंदनीय छे, ते ज मोक्षनुं साक्षात् साधन छे. आवा शुद्धोपयोगने नमस्कार हो,–कई रीते? के जेमांथी
स्व–परनो विभाव अस्त थई गयो छे एवो नमस्कार,–एटले के नमस्कार करनार पोते ज तेवा
शुद्धोपयोगरूपे परिणमी जाय छे तेथी तेमां स्व–परनो भेद रहेतो नथी.
अचिंत्य शक्तिवाळुं, अतीन्द्रिय आनंदमय एवुं केवळज्ञान, ते चैतन्यमां एकाग्रताथी ज थाय छे.
एकाग्रतारूप जे शुद्धोपयोग तेनाथी ज केवळज्ञानना मनोरथ पूरा थाय छे.
परमानंद अवस्थाओमां स्थित आत्मस्वभावनी उपलब्धिथी गंभीर एवा भगवान सिद्ध, ते ‘शुद्ध’ ज होय
छे, अर्थात् शुद्धोपयोगी जीव ज ते सिद्धदशा पामे छे. शुद्धोपयोगमां साक्षात् सिद्धपदनां दर्शन थाय छे.
सिद्धपदनुं साक्षात् साधन शुद्धोपयोग छे. आहा, शुद्धोपयोग सर्व मनोरथनी सिद्धिनुं स्थान छे. रागमां एवी
ताकात नथी के मोक्षार्थीना मनोरथ पूरा करे. निर्विकल्प प्रतीति अने ज्ञान वगर जेनो पार न पामी शकाय
एवुं गंभीर जे सिद्धपद, तेनी प्राप्ति शुद्धोपयोगीने ज थाय छे. आवो शुद्धोपयोग ते अभिनंदनीय छे, ते
आदरणीय छे, ते मनोरथनुं स्थान छे. जेम बाळकना मनना सर्व मनोरथ माता पासे पूरा थाय छे तेम
मोक्षार्थी धर्मात्माना सर्व मनोरथ शुद्धोपयोग वडे पुरा थाय छे. व्यवहारना अवलंबन वडे