Atmadharma magazine - Ank 215
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : २१प
[४]
चथ रत्न : : गथ २७४ : :
मोक्षना साधनरूप शुद्धोपयोगने अभिनंदे छे.

सर्वज्ञ भगवाननी दिव्यवाणीरूप जे प्रवचन, तेनो सार आ प्रवचनसारमां छे, अने तेमां पण
पांचरत्नो जेवी छेल्ली पांच गाथा तो शास्त्रनी कलगीनां चूडामणि जेवी छे, ते अर्हंतदेवना शासननो बधोय
सार संक्षेपमां प्रकाशे छे. पहेलां संसारतत्त्व बताव्युं, पछी मोक्षतत्त्व अने मोक्षनुं साधनतत्त्व बताव्युं. हवे आ
चोथा रत्नद्वारा आचार्यदेव मोक्षना साधनरूप जे शुद्धोपयोग तेने सर्व मनोरथना स्थान तरीके अभिनंदे छे–
रे! शुद्धने श्रामण्य भाख्युं, ज्ञान दर्शन शुद्धने,
छे शुद्धने निर्वाण, शुद्ध ज सिद्ध, प्रणमुं तेहने. २७४
अहो, मोक्षार्थीना जे सर्व मनोरथ ते शुद्धोपयोग वडे पूरा थाय छे शुद्धोपयोगमां लीनताथी बधाय
मनोरथ सिद्ध थाय छे. मोक्षार्थीने पोताना चैतन्यनी पूर्णशुद्धता–केवळज्ञान अने सिद्धपद–ते सिवाय बीजा तो
शेना मनोरथ होय? संसार–संबंधी कोई मनोरथ मोक्षार्थी–धर्मात्माने होता नथी. अहो, आत्माना
स्वभावना शांत रसने जे प्राप्त करावे–एवी आ वात छे.
जेमां रत्नत्रयनी एकता छे एवी एकाग्रतारूप जे साक्षात् मोक्षमार्गभूत श्रमणपणुं–ते शुद्धोपयोगने
ज होय छे. पछी ते शुद्धोपयोगीने ज श्रेणी चडीने केवळज्ञान अने केवळदर्शन थाय छे. जुओ, आवा मोक्षार्थी
जीवना मनोरथ होय. शुद्ध आत्मस्वरूपने पहेलां तो समस्त परद्रव्योथी ने रागादिथी जुदुं जाण्युं छे, पछी
तेमां शुद्धोपयोगवडे लीन थईने साक्षात् मोक्षमार्गी श्रमण क््यारे बनु, ने क््यारे केवळज्ञान–केवळदर्शन प्रगट
करीने सिद्धपदने पामुं!–आवा सर्व मनोरथनी सिद्धिनुं स्थान शुद्धोपयोग छे. अहो, आवो शुद्धोपयोग
अभिनंदनीय छे, ते ज मोक्षनुं साक्षात् साधन छे. आवा शुद्धोपयोगने नमस्कार हो,–कई रीते? के जेमांथी
स्व–परनो विभाव अस्त थई गयो छे एवो नमस्कार,–एटले के नमस्कार करनार पोते ज तेवा
शुद्धोपयोगरूपे परिणमी जाय छे तेथी तेमां स्व–परनो भेद रहेतो नथी.
साक्षात् मोक्षमार्ग तो शुद्धोपयोगरूप एकाग्रता छे; जेने शुद्धोपयोग शुं तेनी खबर पण नथी ने
शुभरागने साधन माने छे, तेने सम्यग्दर्शन पण होतुं नथी. शुद्धोपयोग एटले चैतन्यमां एकाग्रता; अहा,
अचिंत्य शक्तिवाळुं, अतीन्द्रिय आनंदमय एवुं केवळज्ञान, ते चैतन्यमां एकाग्रताथी ज थाय छे.
एकाग्रतारूप जे शुद्धोपयोग तेनाथी ज केवळज्ञानना मनोरथ पूरा थाय छे.
सहज ज्ञान ने आनंदनी छापवाळुं जे निर्वाण ते शुद्धोपयोगीने ज थाय छे. जेने कोई विघ्न नथी, कोई
प्रतिबंध नथी एवा सहज ज्ञान–आनंदनी महोरवाळुं दिव्यनिर्वाण शुद्धोपयोगीने ज थाय छे. वळी टंकोत्कीर्ण
परमानंद अवस्थाओमां स्थित आत्मस्वभावनी उपलब्धिथी गंभीर एवा भगवान सिद्ध, ते ‘शुद्ध’ ज होय
छे, अर्थात् शुद्धोपयोगी जीव ज ते सिद्धदशा पामे छे. शुद्धोपयोगमां साक्षात् सिद्धपदनां दर्शन थाय छे.
सिद्धपदनुं साक्षात् साधन शुद्धोपयोग छे. आहा, शुद्धोपयोग सर्व मनोरथनी सिद्धिनुं स्थान छे. रागमां एवी
ताकात नथी के मोक्षार्थीना मनोरथ पूरा करे. निर्विकल्प प्रतीति अने ज्ञान वगर जेनो पार न पामी शकाय
एवुं गंभीर जे सिद्धपद, तेनी प्राप्ति शुद्धोपयोगीने ज थाय छे. आवो शुद्धोपयोग ते अभिनंदनीय छे, ते
आदरणीय छे, ते मनोरथनुं स्थान छे. जेम बाळकना मनना सर्व मनोरथ माता पासे पूरा थाय छे तेम
मोक्षार्थी धर्मात्माना सर्व मनोरथ शुद्धोपयोग वडे पुरा थाय छे. व्यवहारना अवलंबन वडे