: ८ : आत्मधर्म : २१प
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त्रजा रत्न : : गथ २७३ : :
मोक्षतत्त्वनुं साधन शुं? ते बतावे छे.
जाणी यथार्थ पदार्थने, तजी संग अंतर्बाह्यने,
आसक्त नहि विषयो विषे जे, ‘शुद्ध’ भाख्या तेमने. २७३
भगवंत शुद्धोपयोगी मुनिओ ते मोक्षनुं साधनतत्त्व छे. सम्यग्ज्ञानपूर्वक चैतन्यमां आत्मपरिणति
एवी लीन थई छे के विषयोमां जरा पण आसक्ति रही नथी,–आवी परिणतिरूपे परिणमेला मुनिओ पोते
उग्र पराक्रम वडे मोक्षने साधी रह्या होवाथी, तेमने ज मोक्षनुं साधनतत्त्व जाणवुं.
अने ज्ञेयतत्त्वनुं यथास्थित स्वरूप तेना पांडित्यमां जेओ प्रवीण छे...मुनिदशारूप जे मोक्षनुं साधन, तेना
त्रण अवयवो छे: सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान ने सम्यक्चारित्र; सौथी पहेलां सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान वगर
चारित्र दशा कदी होती नथी. भेदज्ञानरूप जे पांडित्य तेमां प्रवीणताथी जेणे ज्ञानस्वभावी आत्मानुं अने
ज्ञेयतत्त्वोनुं यथार्थस्वरूप जाण्युं छे; अनेकान्त वडे स्व–परतत्त्वोने भिन्न भिन्न जेम छे तेम बराबर जाणीने
भेदज्ञान प्रगट कर्युं छे. आ मोक्षना साधननी पहेली वात!
आत्मा आत्मापणे छे ने परज्ञेयपणे नथी; आत्मानो ज्ञायकस्वभाव ज्ञायकस्वभावपणे छे ने रागपणे
नथी.–आवा अनेकान्तवडे यथार्थ वस्तुस्वरूप जाणीने प्रथम तो भेदज्ञानमां प्रवीणता प्रगट करी छे, एटले के
सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञान प्रगट कर्यां छे, त्यारपछी चारित्र होय छे.
हवे भेदज्ञानवडे जेणे स्व–परने भिन्न जाण्या छे, तेमांथी अंतरंगमां चकचकाट करता चैतन्यमय
स्वतत्त्वने समस्त बाह्यसंगथी तेमज अंदरना रागादिना संगथी पण जुदुं करीने, तेमां ज आत्मानी
परिणतिने जोडी छे. आ रीते चिदानंदतत्त्वमां ज आत्मपरिणति लीन रहेवाने लीधे प्रशांत थई छे एटले
बाह्य विषयोमां जरा पण आसक्ति थती नथी.–अहा, आवी दशामां झूलता संतमुनिओ सकळ महिमावंत
छे; आचार्यदेव कहे छे के आवा सकळ महिमावंत भगवंत शुद्धोपयोगी संतो पोते ज स्वयं मोक्षनां साधन छे,
बीजुं कोई बहारनुं साधन नथी. स्वरूपमां एकाग्रता वडे पोते ज स्वयं मोक्षना साधनरूप थईने, अनादिथी
बंधायेला कर्मकपाटने अति उग्र प्रयत्नथी खोली रह्या छे. आवा संतो मोक्षने साधवामां शूरवीर छे. आवी
दशारूप जे मोक्षसाधन ते अभिनंदनीय छे, ते प्रशंसनीय छे, तेनो मनोरथ करवा जेवो छे.
जुओ, आ मुनिदशा! आ चारित्रदशा! ने आ मोक्षनुं साधन! मुनिओनी जे शुद्धपरिणति ते ज
मोक्षनुं साधन छे; राग पण साधन नथी त्यां बहारना साधननी शी वात! पहेलां यथार्थ भेदज्ञान प्रगट
कर्या वगर, स्वतत्त्वमां परिणतिरूप शुद्धता कदी प्रगटे ज नहि, अने शुद्धता वगर मोक्ष साधन होय नहीं.
शुद्धपरिणति रूपे परिणमीने जेओ मोक्षनां साधन स्वयं थया छे, मोक्षमार्गी छे, एवा भगवंत
शुद्धोपयोगी महिमावंत मुनिवरो ज प्रशंसनीय छे. शुभ ते प्रशंसनीय नथी, शुभ ते मोक्षनुं साधनतत्त्व नथी,
ते तो आस्रवतत्त्व छे.
अहो, आ रत्न (गा. २७३) भगवान अर्हंतदेवना शासनमां कहेला मोक्षना साधनने प्रकाशे छे;
मोक्षनुं वास्तविक साधन शुं छे तेने आ सूत्र प्रसिद्ध करे छे. प्रसिद्धरूप एवो जे मोक्षमार्ग ते तो स्वतत्त्वनी
शुद्ध परिणतिमां ज समाय छे. आवा तत्त्वने मोक्षना साधन