निर्विकल्प आनंदरसनो अतीन्द्रियभाव प्रगट्यो ते सिवाय बीजा भावरूप (विकारी) परावर्तननो तेने
अभाव छे, अने शुद्धस्वभावमां ज स्थिर परिणतिवाळा सादि अनंत रहे छे. आवा उत्कृष्ट श्रमण पोते
ज मोक्षतत्त्व छे. मोक्ष जोवो होय तो आवा शुद्ध परिणतिरूपे परिणमेला शुद्धोपयोगी श्रमणने ओळख.
चैतन्यना आनंददरियामां डूबकी मारीने तेनो ताग लीधो छे–अंतरमां पूरेपूरा एकाग्र थईने ठेठ
तळियानो ताग लीधो छे, तेओ हवे फरीने ते आनंदमांथी बहार नीकळीने आकुळतामां कदी आवता
नथी; आकुळताना भाव अने तेना फळमां जन्म–मरण करवां ते कलंक छे, अतीन्द्रिय चैतन्यने जडप्राण
धारण करवा पडे ते कलंक छे, दीनता छे. स्वर्गनो भव करवो पडे ते पण दीनता छे–कलंक छे.
शुद्धोपयोगथी जेणे उत्कृष्ट श्रामण्य प्रगट कर्युं छे एवा रत्नत्रय–आराधक उत्तम मुनिवरो फरीने आ
संसारमां प्राण धारण करता नथी, आ संसारमां फरीने बीजी माता ते नहीं करे; शुद्धतामांथी
अशुद्धतामां फरीने कदी नहीं आवे. बस, हवे सादि–अनंतकाळ अनंत समाधिसुखमां ज अवस्थित
रहेशे. ते मुकाणो...रे..मुकाणो, हवे तेने बधन नथी,–नथी. वाह! अहीं ज पोतानी शुद्धपरिणतिमां
मोक्षतत्त्वने उतार्युं. मोक्ष लेवा माटे क््यांय बीजे जवुं पडे तेम नथी, अहीं अंतरमां ऊतरीने स्थिर थयो
त्यां तेणे पोतानी परिणतिमां ज मोक्षने उतार्यो; तेथी ते मोक्षतत्त्व छे.
स्वरूपमां एवा ठर्या छे के श्रेणी मांडीने केवळज्ञान लईने मोक्ष ज पामशे, ने फरीने संसारमां अवतरशे
नहीं.
के मुक्त थवानी क्रियारूपे साधु परिणमी रह्या होय–ए रीते तेमने मोक्षतत्त्व तरीके आचार्यदेवे वर्णव्या
छे. आवा साधुओ अतीन्द्रिय परमसुखने अनुभवता–अनुभवता सहज मात्रमां कर्मने नष्ट करीने मोक्षने
साधे छे.
घोर दुःखथी आत्मरक्षा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र वडे थाय छे; एवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र प्रगट
करीने जेओ स्वरूपमां ठर्या छे... एवा ठर्या छे के तेमांथी बहार नीकळवाना आळसु छे,–तेमां ज मग्न
रहे छे, प्रशांत थईने स्वरूपमां जामी गया छे तेथी ‘अयथाचरण’ थी एटले के रागादिथी रहित छे,
वीतराग थईने शांत–निर्विकल्प रसने झीली रह्या छे, आनंदना अनुभवमां झूले छे, ज्यां
व्यवहाररत्नत्रयनो विकल्प पण नथी, निर्विकल्प थईने आत्मरसने पी रह्या छे, स्वरूपमां एकमां ज
अभिमुख थईने वर्ते छे,–आ रीते मुक्त थवानी क्रियारूपे परिणमी रहेला आवा साक्षात् श्रमण ते
मोक्षतत्त्व छे. ते भवनो अंत करीने हवे बीजुं शरीर धारण नहि करे; हमणां ज केवळज्ञान प्रगट करीने
मोक्षने साधशे.