Atmadharma magazine - Ank 215
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 13 of 25

background image
: १२ : आत्मधर्म : २१प
[प]
पांचमुं रत्न : : गाथा २७प : :
िष् स्त्र जा
साकार–अणआकार चर्यायुक्त आ उपदेशने
जे जाणतो, ते अल्पकाळे सार प्रवचननो लहे.

शास्त्र समाप्त करतां आचार्यदेव तेनुं फळ बतावे छे. शास्त्रनुं फळ शुं? के ज्ञानानंदनी भरेला
अभूतपूर्व एवा सिद्धपदनी प्राप्ति ते शास्त्रनुं फळ छे, ते दिव्यध्वनिरूप प्रवचननो सार छे. प्रवचनसारमां
कहेला आ उपदेशने जे जीव जाणे छे ते जीव आवा फळने पामे छे.
उपदेश जाणवानी वात करी तेमां एकला शब्दो जाणवानी वात नथी, पण श्रुतज्ञानने अंतर्मुख करीने
तेना प्रभाववडे केवळ आत्मानो अनुभव करवो ते आ शास्त्रनो उपदेश छे, एम जेणे कर्युं तेणे ज खरेखर
आ उपदेश जाण्यो छे. जो श्रुतज्ञानने अंतर्मुख न वाळ्‌युं तो तेणे आ शास्त्रनो उपदेश जाण्यो ज नथी. अहा,
संतोनो वीतरागी उपदेश ते भावश्रुत वगर जाणी शकाय तेम नथी. आ उपदेश अनुसार भावश्रुत प्रगट
करीने जे शुद्धात्माने अनुभवे छे ते जीव ज्ञान ने आनंदथी भरपूर एवा अभूतपूर्व सिद्धपदने पामे छे.–ते
आ शास्त्रने जाणवानुं फळ छे.
जुओ, शास्त्रने जाणवानुं फळ बतावतां तेनी साथे आचार्यदेवे शास्त्रने जाणवानी रीत पण बतावी
छे. शास्त्रनुं फळ सांभळतां शिष्यजनने उत्साह जागे छे. शास्त्रने जाणवानुं फळ अपूर्व ज्ञानानंदस्वभावनी
प्राप्ति छे; पण शास्त्रने कई रीते जाणवुं? श्रुतज्ञानउपयोगना प्रभावथी शुद्धआत्माना अनुभव सहित जे
शिष्यो आ उपदेशने जाणे छे तेओ अपूर्व आत्माने पामे छे. जुओ, कोई निमित्तनो के शुभरागनो प्रभाव न
कह्यो, पण पोताना श्रुतज्ञानउपयोगनो ज प्रभाव कह्यो. श्रुतज्ञानउपयोगने ज्यां अंतरमां वाळ्‌यो त्यां
समस्त शास्त्रोना अर्थ तेमां समाई गया. आ रीते जेओ श्रुतज्ञानवडे केवळ निजात्माने अनुभवे छे तेओए
ज खरेखर शास्त्रोना उपदेशने जाण्यो छे ने तेओ ज शास्त्रना फळरूप परमानंदने पामे छे.
भगवाने सेवेलो ने उपदेशेलो मार्ग, संतोनुं हार्द, अने शास्त्रोनो मर्म–ए ज छे के पोताना उपयोगने
अंतरमां वाळीने शुद्धआत्माने अनुभववो.–ए ज परमानंदनी प्राप्तिनो पंथ छे. आवा अनुभव तरफ
ज्ञाननो उपयोग जो न वाळे तो शास्त्रनुं भणतर निःसार छे, शास्त्रनो सार के शास्त्रनुं फळ तेने प्राप्त थतुं
नथी. उपयोगने रागादिथी भिन्न करीने, अंतर्मुख थईने, जे शिष्य स्वानुभव करे छे तेणे ज संतोना उपदेशने
झील्यो छे, गुरुए उपदेशमां जेम कह्युं तेम ते शिष्ये कर्युं; ए रीते सम्यक्प्रकारे शास्त्रना उपदेशने जाणनार
शिष्यवर्ग अपूर्व–आनंदथी भरपूर आत्मिकसिद्धिने पामे छे. आ रीते आ पांचमुं रत्न शिष्यजनने शास्त्रना
फळभूत परमआनंद साथे जोडे छे.
आ प्रवचनसारे शुं कह्युं? अने तेना श्रोता मुमुक्षुए शुं कर्युं? प्रवचनसारे जे कह्युं ते प्रमाणे जे