त्रण वृत्तिओ अने विचारोनुं ध्यान खेंचशुं. ते त्रण वृत्तिओ आ छे. अभिधा, लक्षणा अने व्यंजना. मानी
लईए के शास्त्रोमां एवा वचनो मळे छे के ज्यां मात्र अभिधेयार्थनी मुख्यता होय छे. जेम के ‘जे चेतना
लक्षण भावप्राणथी जीवे छे ते जीव’ ए वचनथी कहेवामां आवेल जीव पदार्थ बराबर तेवो ज छे बीजी रीते
नथी तेथी ए वचन मात्र अभिधेयार्थ नुं कथन करनार होवाथी यथार्थ छे. परंतु एनी साथे शास्त्रोमां एवा
वचनो पण मोटी संख्यामां मळे छे जेमां अभिधेयार्थनी मुख्यता न होतां लक्ष्यार्थ अने व्यंगार्थनी ज
मुख्यता रहे छे. एने बराबर समजवा माटे उदाहरण रूपे,
शब्द प्रयोगोनो अभिधेयार्थ ग्राह्य नथी, केमके गंगाना प्रवाहमां अवाज थवानुं, मंचनुं बूमो पाडवानुं के
धनुष्यनुं दोडवानुं संभवित नथी छतां पण व्यवहारमां आवा वचन प्रयोगो थता देखाय छे माटे ज
साहित्यमां पण एने स्थान आपवामां आव्युं छे. फळ स्वरूपे ज्यां आवा वचन प्रयोगो थतां होय त्यां तेनो
अभिधेयार्थ न लेतां लक्ष्यार्थ अने व्यंग्यार्थ ज लेवो जोईए. ए ज वात अहीं पण जाणवी जोईए.
कर्युं छे ए समजीने ज ईष्टार्थनो निर्णय करवो जोईए. अहीं ईष्टार्थ (लक्ष्यार्थ) बे छे–एवा कथनवडे
निश्चयार्थनुं ज्ञान कराववुं ए मुख्य ईष्टार्थ छे केमके ए वास्तविक छे अने एना द्वारा निमित्त (व्यवहार
हेतु) नुं ज्ञान कराववुं ए उपचरित ईष्टार्थ छे केम के ए कथनथी क्यां कोण निमित्त छे एनुं ज्ञान थई जाय
छे. जो आ बे अभिप्रायो ध्यानमां राखीने उक्त प्रकारे वचन प्रयोग करवामां आवे तो तेनो अभिधेयार्थ
असत्य होवा छतां पण व्यवहारमां (लक्ष्यार्थनी द्रष्टिथी) ते असत्य मान्यामां आवतुं नथी. श्री
कुन्दकुन्दाचार्य आदि आचार्यो ए आवा शब्द प्रयोगोने असत्य शब्दथी व्यवहारमां न कहेतां जे उपचरित
कह्या छे ते ए ज अभिप्रायथी कह्यां छे. साथोसाथ कुन्दकुन्दाचार्ये समयसारमां जे
टोडरमलजी आ सत्य प्रकट करता मोक्षमार्ग प्रकाशक (अ. ७, पृ. ३७२) (गुज. पृ. २प६) मां कहे छे–
प्रयोजनवती लक्षणामां प्रयोजन व्यंग्य अवश्य रहे छे. अहीं जे त्रण उदाहरण दीधा छे तेमां गंगायाम धोष: ए
प्रयोजनवती लक्षणानुं उदाहरण छे तथा बाकीना बे उदाहरण रूढिमूलानलक्षणाना छे. अहीं छेल्ला बे उदाहरणोनो
व्यंग्यार्थ दिधो नथी तेनुं ए ज कारण छे.