Atmadharma magazine - Ank 216
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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: १० : आत्मधर्म : २१६
१३. आ एक उदाहरण छे. अहीं आ विषयने वधु स्पष्ट रूपे समजवा माटे अमे भारतीय
साहित्यमां खास करीने अलंकार शास्त्रमां लोकानुरोधवश विविध वचन प्रयोगो ध्यानमां राखीने बतावेली
त्रण वृत्तिओ अने विचारोनुं ध्यान खेंचशुं. ते त्रण वृत्तिओ आ छे. अभिधा, लक्षणा अने व्यंजना. मानी
लईए के शास्त्रोमां एवा वचनो मळे छे के ज्यां मात्र अभिधेयार्थनी मुख्यता होय छे. जेम के ‘जे चेतना
लक्षण भावप्राणथी जीवे छे ते जीव’ ए वचनथी कहेवामां आवेल जीव पदार्थ बराबर तेवो ज छे बीजी रीते
नथी तेथी ए वचन मात्र अभिधेयार्थ नुं कथन करनार होवाथी यथार्थ छे. परंतु एनी साथे शास्त्रोमां एवा
वचनो पण मोटी संख्यामां मळे छे जेमां अभिधेयार्थनी मुख्यता न होतां लक्ष्यार्थ अने व्यंगार्थनी ज
मुख्यता रहे छे. एने बराबर समजवा माटे उदाहरण रूपे,
गड्गायां घोषः मञ्चाः क्रोशन्ति, धनुर्धावति’
ए वचन प्रयोगो लई शकाय छे. ‘गड्गायां घोषः’ एनो अभिधेयार्थ गंगाना प्रवाहमां अवाज एवो छे,
लक्ष्यार्थ निकटवर्ती प्रदेशमां अवाज अने लक्ष्यार्थ गंगानी नजीक शीतल वातावरणमां घोष एवो ‘मञ्चाः
क्रोशान्ति’ नो अभिधेयार्थ मंच बूम पाडे छे’ एवो, लक्ष्यार्थ–मंच पर बेठेला पुरूषो बूमो पाडे छे एम थाय
छे. तथा धनुर्धावति’ नो अभिधेयार्थ–धनुष्य दोडे छे अने एनो लक्ष्यार्थ–धनुष्य युक्त पुरूष दोडे छे एवो
थाय छे. आ रीते एक एक शब्द प्रयोगना एम क्रमे क्रमे त्रण अने बब्बे अर्थ छे. परंतु तेमांथी अहीं ए
शब्द प्रयोगोनो अभिधेयार्थ ग्राह्य नथी, केमके गंगाना प्रवाहमां अवाज थवानुं, मंचनुं बूमो पाडवानुं के
धनुष्यनुं दोडवानुं संभवित नथी छतां पण व्यवहारमां आवा वचन प्रयोगो थता देखाय छे माटे ज
साहित्यमां पण एने स्थान आपवामां आव्युं छे. फळ स्वरूपे ज्यां आवा वचन प्रयोगो थतां होय त्यां तेनो
अभिधेयार्थ न लेतां लक्ष्यार्थ अने व्यंग्यार्थ ज लेवो जोईए. ए ज वात अहीं पण जाणवी जोईए.
१४. एमां शंका नथी के आगममां व्यवहारनयनी अपेक्षाए एक द्रव्यने बीजा द्रव्यनो कर्ता वगेरे
कहेवामां आव्युं छे. परंतु त्यां ते कथन अभिधेयार्थने ध्यानमां राखीने कर्युं छे के लक्ष्यार्थ ध्यानमां राखीने
कर्युं छे ए समजीने ज ईष्टार्थनो निर्णय करवो जोईए. अहीं ईष्टार्थ (लक्ष्यार्थ) बे छे–एवा कथनवडे
निश्चयार्थनुं ज्ञान कराववुं ए मुख्य ईष्टार्थ छे केमके ए वास्तविक छे अने एना द्वारा निमित्त (व्यवहार
हेतु) नुं ज्ञान कराववुं ए उपचरित ईष्टार्थ छे केम के ए कथनथी क्यां कोण निमित्त छे एनुं ज्ञान थई जाय
छे. जो आ बे अभिप्रायो ध्यानमां राखीने उक्त प्रकारे वचन प्रयोग करवामां आवे तो तेनो अभिधेयार्थ
असत्य होवा छतां पण व्यवहारमां (लक्ष्यार्थनी द्रष्टिथी) ते असत्य मान्यामां आवतुं नथी. श्री
कुन्दकुन्दाचार्य आदि आचार्यो ए आवा शब्द प्रयोगोने असत्य शब्दथी व्यवहारमां न कहेतां जे उपचरित
कह्या छे ते ए ज अभिप्रायथी कह्यां छे. साथोसाथ कुन्दकुन्दाचार्ये समयसारमां जे
‘जह ण वि सक्कमणज्जो’
ईत्यादि गाथा गुंथी छे अने पंडित प्रवर आशाधरजीए अणगार धर्मामृतमां जे ‘कर्त्राद्या वस्तुनो भिन्नाः’
(१–१०२) ईत्यादि श्लोक रच्या छे ते आ गर्भित अर्थने सूचित करवाने माटे ज रच्या छे. पंडित प्रवर
टोडरमलजी आ सत्य प्रकट करता मोक्षमार्ग प्रकाशक (अ. ७, पृ. ३७२) (गुज. पृ. २प६) मां कहे छे–
१प. जिनमार्ग विषैं कहीं तो निश्चयनयकी मुख्यता लिए व्याख्यान है। ताकौ तो सत्यार्थ ‘ऐ
१. लक्षणा बे प्रकारनी होय छे–रूढिमूळा अने प्रयोजनवती रूढिमूला लक्षणामां कोई प्रयोजन, व्यंग्य होता नथी. पण
प्रयोजनवती लक्षणामां प्रयोजन व्यंग्य अवश्य रहे छे. अहीं जे त्रण उदाहरण दीधा छे तेमां गंगायाम धोष: ए
प्रयोजनवती लक्षणानुं उदाहरण छे तथा बाकीना बे उदाहरण रूढिमूलानलक्षणाना छे. अहीं छेल्ला बे उदाहरणोनो
व्यंग्यार्थ दिधो नथी तेनुं ए ज कारण छे.