छे एनुं व्याख्यान करी लेवुं जोईए. तथा एवी ज रीते बीजा नयोना विषयमां पण जाणी लेवुं जोईए.
कह्युं पण छे–
सो चिय भेदुवयारा जाण फुडं होइ ववहारो ।। २३६।।
भेदाभेद स्वरूपे केम मानवामां आवेल छे. अने जो वास्तविक होय तो तो तेने उपचरित न कहेवुं जोईए.
एक तरफ तो भेद करवाने वास्तविक कहो अने बीजी तरफ तेने उपचरित पण मानो ए बन्ने वातो बनी
शके नहि. समाधान ए छे के प्रत्येक द्रव्यनी उभय प्रकारे प्रतीत थाय छे तेथी ते उभयरूप ज छे एमां शंका
नथी. जो आ द्रष्टिए जोईए तो जेवी रीते वस्तु अखंड एक छे ए कथन वास्तविक ठरे छे तेवी ज रीते ते
गुण–पर्यायना भेदथी भेदरूप छे ए कथन पण वास्तविक ज ठरे छे. ए छतां पण अहीं जे भेद करवाने
उपचरित कहेवामां आव्युं छे ते अखंड एक वस्तुने प्रतीतिमां लाववाना अभिप्रायथी ज कहेवामां आव्युं छे.
आशय ए छे के आ जीव अनादिकाळथी भेदने मुख्य मानीने प्रवृत्ति करतो आव्यो छे जेथी ते संसारनो पात्र
बनी रह्यो छे. परंतु आ संसार दुःखदायक छे एम समजीने एनाथी निवृत्त थवा माटे तेने भेदने गौण
करवानी साथे साथे अभेद स्वरूप अखंड एक आत्मा उपर पोतानी द्रष्टि स्थिर करवानी छे. त्यारे ते संसार
बंधनथी मुक्त थई शकशे. वर्तमानमां आ जीवनुं ए मुख्य प्रयोजन छे अने ए ज कारण छे के ए प्रयोजनने
ध्यानमां राखीने अहीं भेद कथनने उपचरित अथवा व्यवहार कथन कहीए तेनाथी मोक्षार्थी जीवनी द्रष्टि
खसेडवामां आवी छे.
व्यवहार ज्यां वास्तविक (परमार्थभूत) छे त्यां भिन्न कर्तृ–कर्मादिरूप व्यवहार वास्तविक (परमार्थभूत)
नथी. ते वास्तविक केम नथी तेनुं स्पष्टीकरण अमे पहेला कर्यु ज छे तेथी बन्ने जग्याए उपचार शब्दोनो
व्यवहार कर्यो छे मात्र एटली शब्दोनी साम्यता जोईने तेमनी गणतरी एक प्रकारमां न करवी जोईए.
मोक्षमार्गमां भेद व्यवहार गौण होवाथी छोडवा योग्य छे. अने भिन्न कर्तृ–कर्मादिरूप व्यवहार अवास्तविक
होवाथी त्याज्य छे ए उक्त कथननुं तात्पर्य छे.