Atmadharma magazine - Ank 216
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 21

background image
: १६ : आत्मधर्म : २१६
धर्मी रागने जाणे ने निर्मळपरिणामनेय जाणे, पण तेमां एटलो फेर छे के रागने जाणतां तेनी साथे
कर्ताकर्मपणुं नथी, अने निर्मळ परिणामने जाणतां तेनी साथे कर्ताकर्मपणुं छे; एटले के रागने तो परज्ञेयपणे
जाणता थका तेना अकर्ता रहे छे ने निर्मळ परिणामने स्वज्ञेयपणे जाणता थका तेनी साथे कर्ताकर्मपणे प्रवर्ते
छे, रागने ज्यां शुद्ध स्वज्ञेयथी भिन्न जाण्यो त्यां राग तरफनुं पुरुषार्थनुं जोर तूटी गयुं, ने स्वज्ञेयसन्मुख
पुरुषार्थ वळ्‌यो.–जुओ, आ ज्ञानीने ओळखवानी रीत कहेवाय छे.
राग अने ज्ञाननो भेद पाडीने ज्ञानी ज्यां स्वभाव तरफ वळ्‌यो त्यां निर्मळपरिणामरूप कार्य अने
तेनुं ज्ञान–बंने साथे ज वर्ते छे. निर्मळपरिणाम थाय अने ज्ञान तेने न जाणे–एम बने नहि; तेमज
भेदज्ञान थाय अने निर्मळपरिणति न थाय–एम पण बने नहीं. भेदज्ञाननुं थवुं अने आस्रवोनुं छूटवुं
एटले के सम्यग्दर्शनादि निर्मळतानुं प्रगटवुं–तेनो एक ज काळ छे. ज्ञान आंधळुं नथी के पोताना निर्मळ
कार्यने न जाणे. ‘अमने श्रद्धा–ज्ञान थयां छे के नहि तेनी खबर नथी–पण चारित्र करवा मांडो’–एम कोई
कहे छे, पण भाई! तारा श्रद्धा–ज्ञाननुं हजी ठेकाणुं नथी, कई तरफ जवुं छे तेनी खबर नथी, मार्गने
नीहाळ्‌यो नथी, तो आंधळो–आंधळो तुं क्या मार्गे जईश? मोक्षमार्गने बदले अज्ञानथी बंधमार्गमां ज
चाल्यो जईश. सम्यग्दर्शन थाय त्यां पोताने खबर पडे के मार्ग खुली गयो...स्वभाव श्रद्धामां आव्यो–
अनुभवमां आव्यो, अने हवे आ स्वभावने ज मारे साधवानो छे, आ स्वभावमां ज मारे एकाग्र थवानुं
छे–एम द्रढ निश्चय थयो. आवा निश्चय वगर मार्गनी शरूआत पण थाय नहि.
द्रव्य–गुण ने तेना आश्रये प्रगटेली निर्मळ परिणति ए त्रणे एकाकार सुखरूप छे, निर्विकार छे, तेमां
दुःख नथी, तेमां विकारनुं कर्तृत्व के हर्ष शोकनुं भोकतृत्व नथी. अहा! ज्ञानीने पोताना निर्मळ आनंदनो ज
भोगवटो छे. हर्ष–शोकनुं वेदन स्वभावमांथी नथी आवतुं माटे स्वभावद्रष्टिमां ज्ञानी तेना भोक्ता नथी;
निर्मळ परिणतिमां कर्मफळनो अभाव छे. निर्मळ परिणतिमां तो स्वभाविक आनंदनुं ज वेदन छे. जे
हर्षशोकनी लागणी छे ते धर्मी आत्मानुं कार्य नथी; धर्मीनो आत्मा तेनां द्रव्य गुण के निर्मळ पर्याय ते
विकारनुं कारण नथी. विकार साथे तेने कारण–कार्यपणानो अभाव छे, मात्र ज्ञेयज्ञायकपणुं ज छे.
अहा, भेदज्ञानीना सम्यक् अभिप्रायमां केटली महत्ता छे!! अने अज्ञानीना ऊंधा अभिप्रायमां
स्वभावनो केटलो अनादर छे!! तेनो लोकोने ख्याल नथी. ज्यां भेदज्ञान थयुं त्यां चैतन्यस्वभावमां ज
स्वपणानो सम्यक् अभिप्राय थयो ने बीजे बधेथी परिणति छूटी पडीने स्वभाव तरफ वळी. अज्ञानी राग
अने ज्ञाननी एकत्वबुद्धिथी आखा आत्माने रागमय मानी रह्यो छे.
जगतना भयथी नीतिनिपुण पुरुषो पोताना धर्ममार्गने छोडता नथी. ज्यां भेदज्ञान थयुं त्यां
ज्ञानीने आखा जगतथी उपेक्षा थई. जगतनुं कोई तत्त्व मारी निर्मळ परिणतिनुं कारण नथी, मारी निर्मळ
परिणतिनुं कारण मारो आत्मा ज छे. मारा आत्मा सिवाय जगतना तत्त्वो माराथी बाह्य छे, तेनो मारा
अंतरमां प्रवेश नथी, तो बहार रहीने मारामां तेओ शुं करे? द्रव्यगुण ने निर्मळपर्यायना पिंडरूप शुद्ध
आत्मा ते ज मारुं अंतरंगतत्त्व छे.–आम जे अनुभवे छे ते ज ज्ञानी छे, ते ज धर्मी छे.
७६–७७–७८ गाथामां एम कह्युं के जे ज्ञानी थयो ते आत्मा पोताना निर्मळपरिणामने ज करे छे. ए
सिवाय रागादि भावो साथे के कर्मो साथे तेने कर्ताकर्मपणुं नथी. जे निर्मळ भाव प्रगट्यो ते कर्मबंधनमां
निमित्त पण नथी. हवे ७९ मी गाथामां एम कहे छे के पुद्गलद्रव्यने जीव साथे कर्ताकर्मभाव नथी; एटले