होतुं नथी, चैतन्यना ज अवलंबने ते सम्यग्दर्शनादि प्रगटे छे. माटे पुद्गलद्रव्य चैतन्यना परिणामने करतुं
नथी. पुद्गलद्रव्यनी अपेक्षाए चैतन्यना निर्मळ परिणाम ते परद्रव्य छे, ते परद्रव्यपरिणाममां पुद्गल
व्यापतुं नथी. पुद्गल कहेतां पुद्गल तरफनो भाव तेमां ज जाय छे. शुं शुभरागनुं अवलंबन हतुं माटे
सम्यग्दर्शन थयुं? –ना; जो रागना अवलंबने सम्यग्दर्शन थाय तो तो राग सम्यग्दर्शनमां अंतर्व्यापक थई
जाय.–पण एम नथी. रागने चैतन्यना निर्मळपरिणामनी साथे कर्ताकर्मपणुं नथी. देहनी क्रिया
चैतन्यपरिणामनुं कारण थाय–एम पण नथी. चैतन्यना निर्मळ परिणाममां सर्वत्र (–आदि–मध्य–अंतमां)
चैतन्य ज व्यापक छे, तेमां क्यांय राग के पुद्गल व्यापक नथी. दर्शनमोहकर्म नष्ट थयुं ने सम्यग्दर्शन प्रगट
थयुं, तो शुं तेमां पुद्गलकर्म कर्ता अने सम्यग्दर्शन तेनुं कार्य–एम छे?–ना; कर्ममां दर्शनमोहपर्याय नष्ट
थईने बीजी जे अवस्था थई तेमां पुद्गल ज व्यापक छे, अने जीवमां जे सम्यग्दर्शन थयुं तेमां जीव पोते ज
व्यापक छे; आ रीते पुद्गलने ज्ञानीना परिणामनी साथे कर्ताकर्मपणुं नथी. अज्ञानीने पुद्गलकर्म साथे
निमित्त नैमित्तिकसंबंध छे, पण अहीं तो ज्ञानीना परिणामनी वात छे. ज्ञानीना निर्मळ परिणामने
पुद्गलकर्म सामे निमित्तनैमित्तिक संबंध पण तूटी गयो छे. पुद्गलथी निरपेक्षपणे ज ज्ञानी पोताना
सम्यग्दर्शनादिभावोरूपे परिणमे छे. अनादिनुं अज्ञानथी थयेलुं जे विकार साथेनुं कर्ताकर्मपणुं ते ज्ञानीने छूटी
गयुं छे.
जाय छे–एम शास्त्रोमां कह्युं छे, पण ते कई रीते? भगवान सर्वज्ञदेवनो आत्मा एकलो चैतन्यपिंड छे,
रागथी रहित छे,–एवो ज पोतानो आत्मस्वभाव स्वीकारे तो जिनेन्द्रदेवने देख्या कहेवाय, अने तो ज
मोहनो नाश थाय; पण राग साथे आत्माने एकाकार माने तो तेणे भगवानने पण ओळख्या नथी; रागथी
जे लाभ माने छे ते भगवाननां दर्शन नथी करतो पण रागनां ज दर्शन करे छे, ते रागने ज देखे छे, रागथी
भिन्न चैतन्यने ते देखतो नथी, एटले भगवानने पण ते खरेखर देखतो नथी. जीवना शुद्ध रत्नत्रयने रागनुं
जराय अवलंबन छे?–तो कहे छे के ना; रागना अवलंबनथी रत्नत्रय थवानुं जे माने ते जीव खरेखर
रागनो उपासक छे, ते वीतराग भगवानना मार्गनो उपासक नथी. रागथी जे लाभ माने ते जीव रागथी
जुदा पडवानो पुरुषार्थ केम करे? अरे! रागथी चैतन्यनी भिन्नताने पहेलां जाणे पण नहि ते शुद्धआत्मा ने
कई रीते श्रद्धा–ज्ञान–अनुभवमां लेशे? ज्ञानी तो जाणे छे के मारा शुद्धरत्नत्रयने परनुं के रागनुं किंचित पण
अवलंबन नथी, मारो आत्मा पोते ज कर्ता थईने मारा निर्मळ परिणामने करे छे, बीजुं कोई नहि.
अपेक्षाए परद्रव्य छे, तेने पुद्गल करतुं नथी. जीव पोताना स्वभाव परिणामरूप परिणमे छे, अने ते
परिणाममां ते पोते ज व्यापे छे, पुद्गल के राग तेमां व्यापता नथी, माटे ते निर्मळ परिणाम अजीवनुं (के
रागनुं) कार्य नथी. पुद्गल द्रव्य तेना स्वभावरूप कार्यमां व्यापे छे.
जुदी छे. विकार ते कर्मनो स्वभाव छे, निर्मळ परिणाम ते जीवनो स्वभाव छे. विकार ते जीवनुं स्वभावकार्य