Atmadharma magazine - Ank 216
(Year 18 - Vir Nirvana Samvat 2487, A.D. 1961)
(Devanagari transliteration).

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आसो : २४८७ : १९ :
भादरवा वद दसमना रोज सोनगढमां भाईश्री शीवलाल नारणदास पटेल
टूंकी बिमारीथी स्वर्गवास पामी गया. तेओ लगभग १७ वर्षथी सोनगढ पू.
गुरुदेवना सत्समागममां रहेता हता, अने जीवणलालजी महाराजनी सेवानुं
कामकाज पण करता हता. स्वर्गवास अगाउ लगभग एक कलाक पहेलां पू.
गुरुदेवश्री पधार्या हता त्यारे तेमणे गुरुदेव प्रत्ये भक्तिभाव बताव्यो हतो; अने
पोते समयसार वगेरेनी गाथाओ मोढे करेली–ते संबंधी वातचीत करी हती. तेमनो
आत्मा देव–गुरु–धर्मनी सेवामां आगळ वधे ने पोतानुं कल्याण साधे–एम ईच्छीए
छीए.
मोटा आंकडिआना भाईश्री माणेकचंद धनजीभाई रवाणी (श्री जमुभाई
रवाणीना पिताश्री) नो आकस्मिक प्रसंगथी आसो सुद १४ ना रोज स्वर्गवास थई
गयो. पू. गुरुदेव प्रत्ये तेमनो घणो भक्तिभाव हतो, अवारनवार सोनगढ आवीने
तेओ लाभ लेता. एकाद मास पहेलां ज तेओ सोनगढ आवेला; आंकडिआमां
तेमणे गृहचैत्यालय पण बनाव्युं हतुं अने जिनमंदिर बंधाववानी तेमनी भावना
हती. परंतु ते भावना पूरी थतां पहेलां आवो अकस्मात बनी गयो. स्वर्गवास
पहेलां तेमणे भक्तिपूर्वक गुरुदेवनुं स्मरण कर्युं हतुं. श्रीमाणेकचंदभाईनो आत्मा
पोताना धार्मिक संस्कारोमां आगळ वधीने आत्महित साधे एज भावना.
राजकोटना शेठ श्री मूळजीभाईना सुपुत्र श्री भानुभाई स्वर्गवास पाम्या ते
पहेलां चार दिवस अगाउ पू. गुरुदेवना उपदेशनुं स्मरण करतां करतां तेमणे
पोताना हस्ताक्षरमां नीचे मुजब लख्युं हतुं:–
“हुं एक आत्मा छुं.
शरीरथी हुं जुदो छुं.
परवस्तुनुं हुं कांई करी शकुं नहीं.
मारामां ज्ञान नामनो गुण छे.
जाणवुं देखवुं ए मारो धर्म छे.
मारा ज्ञान तरफ लक्ष करुं तो जगत बधुं ज्ञेयरूपे भासे.”
उपरोक्त लखाणनी नीचे तेमणे मुनिराजनुं, मानस्तंभजीनुं अने सीमंधर
भगवाननुं चित्र करवानो प्रयास कर्यो हतो.
अत्यारना आ जमानामां ३२ वर्षनो वैभवसंपन्न युवान देह छूटवाना
प्रसंगे पण आवी भावनाओनुं रटण करे छे ते खरेखर गुरुदेवना अध्यात्म
उपदेशनो महान प्रताप छे. अने ८२ वर्षनी वये ३२ वर्षना पुत्रना वियोग वखते
पण शेठ श्री मूळजीभाईए जे हिंमत अने शांति जाळवी छे ते पण अनेक जीवोने
विचारता करी मूके तेवुं छे; तेओ वारंवार कहे छे के: “गुरुदेवना वैराग्यमय
उपदेशनी मंगळछायानो ज आ बधो प्रताप छे. गुरुदेवनी छायाने लीधे मारुं दुःख
हळवुं थई जाय छे.”
खरेखर! संतोनी छाया ते आ जगतनां सर्व दुःखोने हरवानुं औषध छे.
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