
सम्यग्दर्शन–ज्ञान सहित अंशे चारित्ररूप एकदेश मोक्षमार्ग होय छे. माटे एम न मानी लेवुं के वेपार–धंधामां
पडेला गृहस्थने तो शुं धर्म होय! सम्यग्दर्शन ते मोक्षमार्गनुं प्रधान अंग छे अने तेनी आराधना गृहस्थने
य होई शके छे. सम्यग्दर्शनसहित गृहस्थने पण धन्य अने कृतार्थ कह्यो छे.
ज्ञान–चारित्र छे तेटलो ज धर्म छे, अने जे राग छे ते धर्म नथी. आ अधिकारमां श्रावकना दररोजना कर्तव्य
तरीके देवपूजा, गुरुसेवा, शास्त्रस्वाध्याय वगेरे शुभनो उपदेश आवशे, त्यां एम न समजवुं के ते
शुभरागथी धर्म थाय छे. परंतु आत्माना भान पछी श्रावकने पोतानी भूमिकामां एवा प्रकारना (देव–
गुरुना बहुमान वगेरेना) शुभ भाव होय छे तेनुं ज्ञान कराववा अने अशुभ छोडाववा तेनो उपदेश छे,
तथा उपचारथी तेने श्रावकनो धर्म पण कहेवाय छे. पण धर्मात्मा श्रावकने पोताने अंतरमां बराबर विवेक
वर्ते छे के जेटलो राग छे तेटली अशुद्धता छे, ते धर्म नथी, पण ते वखते सम्यग्दर्शनपूर्वक रागना अभावथी
जेटली शुद्धता थई छे तेटलो ज धर्म छे.
अव्रती गृहस्थने पण प्रशंसनीय कह्यो छे, अने सम्यग्दर्शन वगर द्रव्यलिंगी थईने गमे तेटलुं शुभचारित्र
(पंचमहाव्रतादि) पाळे तो पण तेने प्रशंसनीय नथी कह्यो. सम्यग्दर्शन वगर मोक्षमार्ग होतो नथी. मुनिनो
धर्म के श्रावकनो धर्म कोईपण धर्म सम्यग्दर्शन वगर होतो नथी. आ निश्चयधर्मनी अने निश्चय–
सम्यग्दर्शननी वात छे. गृहस्थदशामां चोथा गुणस्थाने पण निश्चय सम्यग्दर्शन होय छे. श्रावकना कूळमां के
जैन संप्रदायमां जन्म्या माटे सम्यग्द्रष्टि थई गया–एम नथी. सम्यग्दर्शन तो अचिंत्य वस्तु छे; देहथी पार,
रागथी पार शुद्ध चिदानंद वस्तुनुं अंतरभान अने प्रतीति करे त्यारे सम्यग्दर्शन थाय. सिद्ध भगवान जेवा
आनंदनो स्वाद सम्यग्दर्शनमां आवी जाय. आवा सम्यग्दर्शन वगर बीजुं बधुं जीवे अनंतवार कर्युं, पुण्य
करीने स्वर्गनो मोटो देव पण अनंतवार थई आव्यो, पण किंचित् धर्म थयो नहि ने भवनो छेडो आव्यो
नहि. माटे आचार्यदेव कहे छे के हे जीवो! सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने ज धर्म अने मोक्षमार्ग समजीने तेनी
आराधना करो.
कहे छे:–
तेषां मोक्षपदं दूरं भवेत्दीर्धत्तरो भवः।। ३।।
रत्नत्रय एटले सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ए त्रणे वीतराग छे, ए त्रणमां स्वद्रव्यनी ज अपेक्षा छे ने
परद्रव्यनी उपेक्षा छे, रागनी पण उपेक्षा छे, एकला स्वद्रव्यना अवलंबने ज ते भावो प्रगटे छे. अहो, आवा
रत्नत्रयरूप मोक्षमार्गमां जे जीवो गमन नथी करता,–सम्यग्दर्शन ते पण मोक्षमार्गमां गमन छे,–जेओ तेमां
गमन (परिणमन) नथी करता तेओने मोक्षपद