Atmadharma magazine - Ank 217
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 27

background image
: १४ : आत्मधर्म : २१७
धर्मलब्धिनो अवसर

भेदज्ञान ते ज धर्मलब्धिनो अवसर छे.
जीवने ज्यां भेदज्ञान थयुं त्यां ते बंधनथी
पाछो वळी जाय छे, एटले भेदज्ञानथी ज
बंधन अटकी जाय छे ने धर्मनी प्राप्ति थाय
छे. ए वात पू. गुरुदेवे आ प्रवचनमां सरस
रीते घणी स्पष्ट समजावी छे.
(समयसार कर्ताकर्म–अधिकार गा. ७१–७२ उपरना प्रवचनोमांथी)


जीव चैतन्यस्वरूप छे, ते चैतन्यस्वरूपमां राग नथी, रागने करवानो चैतन्यनो स्वभाव नथी. पण
अज्ञानी आवा चैतन्यने भूलीने, अनादिथी रागादि परभावो साथे चैतन्यनी एकता मानीने, ते रागादिने
ज पोतानुं कर्म बनावे छे. हुं– चैतन्यस्वरूप आत्मा कर्ता, अने रागादिभावो मारुं कर्म, एवी अज्ञानभावनी
प्रवृत्ति अज्ञानीने अनादिथी चाली आवे छे ते ज बंधननुं कारण छे. चैतन्यतत्त्व तो अंतर्मुख छे अने
रागादिभावो तो बहिमुर्ख छे, तेमने एकपणुं नथी. ज्यांसुधी चैतन्यनी अने रागनी भिन्नताने न जाणे त्यां
सुधी भेदज्ञानरूप बोधिबीज प्रगटे नहि. हुं तो चैतन्य छुं ने रागादिभावो तो चैतन्यथी भिन्न छे, ज्ञानमांथी
रागनी उत्पत्ति नथी, ने रागमांथी ज्ञाननी उत्पत्ति नथी. आवुं भेदज्ञान करे त्यारे जीवनी परिणति रागथी
खसीने अंतरमां चैतन्यस्वभाव तरफ वळे छे, ने त्यारे सम्यग्दर्शनादि धर्मनी अपूर्व शरूआत थाय छे.
जीवने ज्यां भेदज्ञान थयुं त्यां तेने धर्मलब्धिनो काळ (अवसर) आव्यो छे. भेदज्ञान ते ज
धर्मलब्धि छे. धर्म करनार जीव काळ सामे जोईने बेसी नथी रहेतो पण पोताना स्वभावमां अंतर्मुख थाय
छे, ने स्वभावमां अंतर्मुख थतां पांचे लब्धि एक साथे आवी मळे छे. स्वभावमां अंतर्मुख थाय ने
धर्मलब्धिनो काळ न होय एम बने नहि.
प्राथमिक शिष्ये धर्मलब्धिने माटे प्रथम भेदज्ञाननो अभ्यास करवो. जेम जीव अने अजीव द्रव्योने
अत्यंत भिन्नता छे, तेम चैतन्यभावने अने रागादिभावोने पण अत्यंत भिन्नता छे, बंनेनी जात ज जुदी
छे.–आवुं अंतरनुं भेदज्ञान ते कोई शुभराग वडे थतुं नथी पण चैतन्यना ज अवलंबने थाय छे. भेदज्ञान ते
अंतरनी चीज छे, ए कोई बहारना भणतरनी के शुभरागनी चीज नथी.
अमुक शास्त्रो जाणे तो ज आवुं भेदज्ञान होय, के व्रत–महाव्रत पाळे तेने ज आवुं भेदज्ञान होय–
एवुं कोई भेदज्ञाननुं माप नथी. अंतरना वेदनमां जेणे चैतन्यने अने रागने भिन्न जाण्या, ने उपयोगने
रागथी छूटो पाडीने चैतन्यमां वाळ्‌यो ते जीव भेदज्ञानी छे; शास्त्रोए जेवी