: २० : आत्मधर्म: २४८८
– परम शांति दातारी–
*अध्यात्मभावना *
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’
उपर परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनां
अध्यात्मभावना भरपूर वैराग्यपे्ररक प्रवचनोनो सार
(वीर सं. २४८२ अषाड शुद १३ शुक्रवारथी चालु)
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ज्ञानी अंतरात्मा निरंतर पोताना आत्माने देहथी भिन्न ज देखे छे–एम कह्युं. त्यां हवे कोई प्रश्न
पूछे छे के: जो अंतरात्मा स्वयं पोताना आत्माने आवो अनुभवे छे तो मूढ आत्माओने तेनुं प्रतिपादन
करीने केम समजावी देता नथी–के जेथी ते अज्ञानीओ पण तेने जाणे!–जो पोते समज्यां तो बीजाने पण केम
समजावी देता नथी?–तेना उत्तरमां आचार्यदेव पूज्यपाद स्वामी कहे छे के–
अज्ञापितं न जानति यथा मां ज्ञापितं तथा।
मूढात्मानस्ततस्तेषां वृथा मे ज्ञापना श्रमः।। ५८।।
जेणे देहादिथी भिन्न आत्मस्वरूप जाण्युं छे एवा अनुभवी धर्मात्मा विचारे छे के: अहो, आ
अचिंत्य आत्मतत्त्व जगतने दुर्लभ छे, वचन अने विकल्पथी ते पार छे. आवा स्वानुभवगम्य
चैतन्यतत्त्वने मूढ जीवो जेम मारा जणाव्या वगर नथी जाणता, तेम मारा जणाववाथी पण तेओ नथी
जाणता; माटे बीजाने समजाववानो मारो श्रम (–विकल्प) व्यर्थ छे.
तीर्थंकरो तो समवसरणमां धमधोकार उपदेश आपीने समजावता हता, छतां बधा जीवो न समज्या.
जेमनी लायकात हती तेओ ज समज्या, ने बीजा जीवो न समज्या. तीर्थंकरना उपदेशथी पण ते जीवो न
समज्या तो माराथी शुं समजशे? मारा प्रतिपादन करवाथी पण ते मूढात्माओ आत्मस्वरूपने जाणता नथी;
माटे बीजाने समजाववानो मारो श्रम वृथा छे. सामानी लायकात वगर कोईनी ताकात नथी के तेने समजावी
शके! धर्मीने उपदेशादिनो विकल्प ऊठे पण ते विकल्पनेय ते वृथा जाणे छे, मारा विकल्प वडे बीजो समजी
जशे–एम मानता नथी. एटले विकल्प उपर जोर नथी; ते विकल्पनेय तोडीने चिदानंद स्वरूपमां ज ठरवा
मांगे छे.
आत्माना ज्ञानानंद स्वरूपमां रहेवुं ते ज समाधि छे; बीजाने समजाववानो जे विकल्प ऊठे ते राग छे,