बाळकोनुं पानुं
दीपावली ऊजवीए
धर्मप्रेमी बालबन्धुओ, दीवाळीनुं पर्व आव्युं...भारत भरमां आपणे
सौ दीवाळी आनंदथी उजवीए छीए, एने एक घणो ज उत्तम उत्सव गणीए
छीए. परंतु, तमने खबर छे–ए दीवाळीपर्व आपणे शा माटे उजवीए
छीए? जो आपणे ते जाणीए तो ज दीवाळीपर्व खरी रीते उजवी शकीए.
दीवाळी ए कांई फटाकडा फोडवानुं पर्व नथी, ए तो मोक्षनी भावनानुं महान
पर्व छे.
आजथी २४८७ वर्ष पहेलांनी वात छे. त्यारे आपणा तीर्थंकर
भगवान श्री महावीर स्वामी आ भरत भूमिमां विचरता हता. दिव्य वाणी
वडे घणा घणा जीवोने धर्म पमाडीने छेवटे तेओ पावापुरी नगरीमां
पधार्या...धनतेरशथी तेमनी वाणी अटकी गई... आसो वद १४नी पाछल
राते तेओ तेरमुं गुणस्थान छोडीने १४मा गुणस्थाने पधार्या...पछी जराक ज
वारमां तेमनो आत्मा देह अने कर्मोथी मुक्त थईने मोक्ष पाम्यो...भगवान
सिद्ध थईने सिद्धालयमां बिराज्या...मुक्ति पाम्यां.
ते वखते त्यां भारतदेशमांथी घणा राजाओ आव्या हता, ईन्द्रो वगेरे
देवो पण आव्या हता; ते बधाए मळीने भगवाननी मुक्तिनो महोत्सव
उजव्यो. उत्सव तो घणा उजवाय छे–पण आ तो मोक्षनो महोत्सव! हजारो–
लाखो दीपकोनी हारमाळा प्रगटावीने, अमासना परोढीए झगझगता प्रकाश
वच्चे ए उत्सव ऊजवायो तेथी तेनुं नाम पड्युं–“दीपावली महोत्सव!”
भगवान ज्यांंथी मोक्ष पाम्या ते पावापुरी धाममां अत्यारे पण
दरवर्षे हजारो दीपकोनी हारमाळा वच्चे ए दीपावली महोत्सव अद्भुत रीते
ऊजवाय छे. ए द्रश्य बहु जोवा जेवुं होय छे.
भगवाननी मुक्तिनो खरो महोत्सव तो, गुरुदेवे शीखडाव्युं छे ते
रीते, रत्नत्रयना दीवडाथी ऊजवाय छे. दीपावली प्रसंगे आपणे रत्नत्रय
दीवडा प्रगटाववानी भावना करवी जोईए. गुरुदेवना आशीर्वादथी आपणे
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना दीवडा प्रगटावीने रत्नत्रय दीवडावडे मोक्षनो
महोत्सव ऊजवीए...एनुं नाम दीवाळी.