Atmadharma magazine - Ank 217
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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कारतक : २४८८ : ७ :
(श्रावकनां कर्तव्यनुं वर्णन)
वीर सं. २४८७ना श्रावण वद १३ थी भादरवा सुद ४
दरमियान श्री पद्मनंदी पच्चीसीना छठ्ठा अध्याय उपर पू.
गुरुदेवनां प्रवचनो; (जेनी साथे वीर सं: २४७६मां थयेला
आ अधिकार उपरनां प्रवचनोनो सार पण जोडी देवामां
आव्यो छे.)
आ पद्मनंदी पंचविंशतिका नामनुं शास्त्र छे. अनेक सैकाओ पहेलां वनवासी दिगंबर संत श्री
पद्मनंदी मुनिराजे आ शास्त्र रच्युं छे. श्रीमद् राजचंद्रजीए आ शास्त्रने ‘वनशास्त्र’ कह्युं छे, अने
ईन्द्रियनिग्रहपूर्वक वैराग्यथी तेनो अभ्यास करवानी भलामण करी छे. तेमां छठ्ठो अध्याय, ‘उपासक
संस्कार’ अथवा ‘श्रावकाचार’ नामनो छे, ते वंचाय छे. उपासक संस्कार एटले गृहस्थदशामां रहेला
सम्यग्द्रष्टि श्रावकने धर्मना केवा संस्कार होय ने शुभरागनी भूमिका केवी होय तेनुं आमां वर्णन छे.
शरूआतमां मंगलाचरण तरीके व्रततीर्थना प्रवर्तक