: १८ : आत्मधर्म: २१८
– परम शांति दातारी–
*अध्यात्मभावना *
भगवानश्री पूज्यपादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’
उपर परमपूज्य सद्गुरुदेव श्री कानजीस्वामीनां
अध्यात्मभावना भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार
(वीर सं. २४८२ अषाड वद एकम: सोमवार वीरशासनप्रवर्तन–दिव्यध्वनि–मंगल दिन)
(समाधिशतक गा. ६०)
आजे महावीर भगवाननो दिव्यध्वनि छूटवानो दिवस छे. तेमने ६६ दिवस पहेलां केवळज्ञान थयुं
हतुं पण हजी उपदेश नीकळ्यो न हतो; ६६ दिवस बाद आजे राजगृहीमां विपुलगीरी उपर समवसरणमां
गौतम स्वामी आवतां सौथी पहेलवहेलो उपदेश नीकळ्यो...ने ते झीलीने गौतमस्वामीए गणधरपदेथी
शास्त्रो रच्यां...ए शास्त्रोनी परंपरा आजे पण चाली रही छे. शासननुं बेसतुं वर्ष पण आजे छे, ने
जगतना नियमप्रमाणे पण आजे ज बेसतुं वर्ष छे.
भगवान महावीर परमात्मानो पूर्ण विकास आ भवमां थयो; पण त्यार पहेलां ते आत्मामां धर्मनी
शरूआत (सम्यग्दर्शन प्राप्ति) तो दश भव पहेलां सिंहना भवमां थई गई हती; त्यार पछी अनुक्रमे
आगळ वधतां पूर्वना त्रीजा भवमां नंदराजाना भवमां तीर्थंकर नाम कर्म बांध्युं...त्यांथी पछी आगळ वधतां
आ छेल्लो भव हतो. तेमां भगवाने बालब्रह्मचारीपणे दीक्षा लीधी...पछी आत्मध्यानमां लीन थतां थतां
केवळज्ञान वैशाख सुद दसमे प्रगटी गयुं...परिपूर्ण आनंद प्रगटी गयो. पूर्वे ते आनंदनुं भान तो हतुं अने
“अहो! आ आनंदमां लीन थईने परिपूर्ण आनंद प्रगट करुं...मारा आनंदमां लीन थाउं, अने आवो आनंद
जगतना जीवो पण पामे.” एवी भावना पूर्वे भावी हती, ते अत्यारे केवळज्ञान थतां पूर्ण थई...भगवानने
आत्मानी शक्तिमांथी अचिंत्य ज्ञान ने आनंद पूरेपूरां खीली गयां...
जुओ, भगवाननी तिजोरीनां ताळां खूली गयां..ने केवळज्ञाननां अनंत निधान प्रगट्या.
उत्साहप्रसंगे बहेनो गीतमां गाय छे के “तिजोरीना ताळां खोलजो” तेम अहीं तो भगवाने
चैतन्यतिजोरीनां ताळां खोली नांख्या छे..अने दिव्यध्वनि वडे जगतने ए निधान बताव्यां छे.
वैशाख सुद दसमे भगवानने केवळज्ञान थयुं...ईन्द्रोए आवीने महोत्सव कर्यो...ने समवसरण रच्युं.
देवो–मनुष्यो ने तिर्यंचोनी सभा भराणी. सौ भगवाननी वाणी सांभळवा आतुर हता..पण छांसठ दिवस
सुधी भगवाननी वाणी न छूटी. तीर्थंकरोनी वाणीनो एवो नियम छे के तेमनी वाणी छूटे त्यां झीलीने धर्म
पामनारा जीवो होय ज. भगवाननी वाणी छूटे ने जीवो धर्म न पामे एटले के भगवाननी वाणी निष्फळ
जाय एम कदी न बने. छांसठ दिवस सुधी गणधरपदने लायक कोई जीव न हता, ने अहीं वाणीनो योग पण
न हतो. छांसठ दिवस बाद