आजना दिवसे ईन्द्रने विचार आव्यो के भगवाननी वाणी कां न छूटे? तेणे अवधिज्ञानथी जाण्युं के
गणधरपदने लायक जीव हाजर नथी, ने ते लायकात ईन्द्रभूति–गौतममां छे; एटले ईन्द्र पोते ब्राह्मणनुं
रूप धारण करीने ईन्द्रभूतिने वादविवादना बहाने भगवानना समवसरणमां तेडी लावे छे.
समवसरणमां दैवी मानस्तंभ अने दैवी वैभव जोतां ज गौतमनां मान गळी जाय छे; भगवान पासे
नमी जाय छे, अने त्यां दिव्यध्वनि छूटतां गणधरदेव ते झीलीने बार अंगनी रचना करे छे, ते आजनो
दिवस छे.
तेमज पोते महाविदेहमां जईने साक्षात् सीमंधर–परमात्मानी वाणी सांभळी हती,–तेमणे समयसारादि
महान शास्त्रो रच्यां छे, तेमां पण भगवाननो उपदेश गुंथ्यो छे.
छे. गणधर भगवाने बार अंगरूप शास्त्रो पण त्यां ज रच्या छे, एटले शास्त्रनी उत्पत्तिनुं पण ते
तीर्थस्थान छे. अहा! गणधरदेवनी ताकातनी शी वात? चार ज्ञाननां धारक, श्रुतकेवळी अने उत्कृष्ट
लब्धिओना धारक गणधरदेव एक अंतर्मुहूर्तमां बार अंगनी रचना करे छे, अने मोढेथी पण अंतर्मुहूर्तमां
बार अंग उचारी शके एवी तेमनी वचनलब्धि छे. तेओ तद्भवमोक्षगामी–चरमशरीरी होय छे. अहा, क््यां
क्षण पहेलांनां गौतम–जेओ महावीरप्रभु साथे वादविवाद करवा आवता हता! अने क््यां क्षण पछीना
गौतम–के जेओ गणधरपद पाम्या, ने जेमणे बार अंगनी रचना करी! चैतन्यनी अचिंत्य ताकात छे. सवळो
पुरुषार्थ करतां ते क्षणमां प्रगटे छे.
तीर्थंकर थशे.
छे, तेनी उत्पत्ति आजे थई, राजगृहीनगरमां पंचशैलपुर (पांच पहाडी) छे, त्यां विपुलाचल उपर सौथी
पहेलवहेलो दिव्यध्वनि आजना दिवसे छूटयो हतो. ए रीते आजनो दिवस मंगल छे, शासनना महोत्सवनो
मोटो दिवस छे.
अतीन्द्रिय आनंदना स्वाद पासे जगतना बाह्यविषयोनुं कौतुक छूटी गयुं छे.–ए वात आ ६०मी गाथामां
पूज्यपाद स्वामी बतावे छे–