Atmadharma magazine - Ank 218
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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मागशर: २४८८ : १९ :
आजना दिवसे ईन्द्रने विचार आव्यो के भगवाननी वाणी कां न छूटे? तेणे अवधिज्ञानथी जाण्युं के
गणधरपदने लायक जीव हाजर नथी, ने ते लायकात ईन्द्रभूति–गौतममां छे; एटले ईन्द्र पोते ब्राह्मणनुं
रूप धारण करीने ईन्द्रभूतिने वादविवादना बहाने भगवानना समवसरणमां तेडी लावे छे.
समवसरणमां दैवी मानस्तंभ अने दैवी वैभव जोतां ज गौतमनां मान गळी जाय छे; भगवान पासे
नमी जाय छे, अने त्यां दिव्यध्वनि छूटतां गणधरदेव ते झीलीने बार अंगनी रचना करे छे, ते आजनो
दिवस छे.
भगवानना दिव्यध्वनिने झीलीने गौतमस्वामीए जे बार अंगनी रचना करी तेनी परंपरामां
धरसेनाचार्यदेवने अमुक ज्ञान मळेलुं, ते तेमणे पुष्पदंत–भूतबलिए बे मुनिओने आप्युं, ने तेमणे ते
षट्खंडागम रूपे रच्युं. जे हजार वर्षोथी ताडपत्र उपर लखेला हता, ने आजे हवे छपाईने बहार
आव्यां छे. आ उपरांत कुंदकुंदाचार्यदेवने पण महावीर भगवाननी परंपरानुं केटलुंक ज्ञान मळ्‌युं हतुं
तेमज पोते महाविदेहमां जईने साक्षात् सीमंधर–परमात्मानी वाणी सांभळी हती,–तेमणे समयसारादि
महान शास्त्रो रच्यां छे, तेमां पण भगवाननो उपदेश गुंथ्यो छे.
ज्यां महावीर भगवान विचर्यां, ज्यां भगवाननो पहेलवहेलो उपदेश नीकळ्‌यो अने ते झीलीने
अनेक जीवो रत्नत्रयधर्म पाम्या, ते विपुलाचल पर्वत तीर्थं छे, त्यांथी २४ मा तीर्थंकरना तीर्थनुं प्रवर्तन थयुं
छे. गणधर भगवाने बार अंगरूप शास्त्रो पण त्यां ज रच्या छे, एटले शास्त्रनी उत्पत्तिनुं पण ते
तीर्थस्थान छे. अहा! गणधरदेवनी ताकातनी शी वात? चार ज्ञाननां धारक, श्रुतकेवळी अने उत्कृष्ट
लब्धिओना धारक गणधरदेव एक अंतर्मुहूर्तमां बार अंगनी रचना करे छे, अने मोढेथी पण अंतर्मुहूर्तमां
बार अंग उचारी शके एवी तेमनी वचनलब्धि छे. तेओ तद्भवमोक्षगामी–चरमशरीरी होय छे. अहा, क््यां
क्षण पहेलांनां गौतम–जेओ महावीरप्रभु साथे वादविवाद करवा आवता हता! अने क््यां क्षण पछीना
गौतम–के जेओ गणधरपद पाम्या, ने जेमणे बार अंगनी रचना करी! चैतन्यनी अचिंत्य ताकात छे. सवळो
पुरुषार्थ करतां ते क्षणमां प्रगटे छे.
भगवाननी सभामां राजगृहीना राजा श्रेणीक मुख्य श्रोता हता, तेमणे भगवानना चरणमां क्षायिक
सम्यक्त्व प्रगट कर्युं हतुं अने तीर्थंकरनामकर्म बांध्युं हतुं. तेओ आ भरतक्षेत्रे आवती चोवीसीमां पहेला
तीर्थंकर थशे.
तीर्थंकर भगवाननी वाणीमांथी जे शास्त्रो रचायां ते पण तीर्थ छे, केम के ते तरवानुं निमित्त छे.
गणधरदेव पण तीर्थ छे; गणधर–तीर्थनी स्थापना पण आजे थई. भगवानना प्रवचनने पण तीर्थ कहेवाय
छे, तेनी उत्पत्ति आजे थई, राजगृहीनगरमां पंचशैलपुर (पांच पहाडी) छे, त्यां विपुलाचल उपर सौथी
पहेलवहेलो दिव्यध्वनि आजना दिवसे छूटयो हतो. ए रीते आजनो दिवस मंगल छे, शासनना महोत्सवनो
मोटो दिवस छे.
भगवाननो उपदेश जीवोने बोधि अने समाधिनुं कारण छे; अहीं समाधि शतक वंचाय छे तेमां पण
ए ज वात समजावे छे.
आत्मतत्त्व अमृतथी भरेलुं छे, परम आनंदथी भरेलुं छे; पण मूढ अज्ञानी जीवो तेनी प्रीति
करता नथी ने बहिरात्मबुद्धिथी बाह्यविषयोमां ज कौतुक करीने तेमां प्रीति करे छे; ज्ञानीने तो आत्माना
अतीन्द्रिय आनंदना स्वाद पासे जगतना बाह्यविषयोनुं कौतुक छूटी गयुं छे.–ए वात आ ६०मी गाथामां
पूज्यपाद स्वामी बतावे छे–