Atmadharma magazine - Ank 219
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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पोष : २४८८ : ९ :
ज्ञानीना बधाय भावो ज्ञानमय छे
अज्ञानीना बधाय भावो अज्ञानमय छे
(समयसार गाथा १२८ थी १३१ना प्रवचनमांथी)
जेणे ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान कर्युं छे एवा ज्ञानीना बधा भावो ज्ञानमय होय छे; अने जेने राग
साथे एकताबुद्धि छे एवा अज्ञानीना बधाय भावो अज्ञानमय ज होय छे.
शिष्य पूछे छे के : ज्ञानीना बधाय भावो ज्ञानमय ज केम होय छे? अने अज्ञानीना बधाय भावो
अज्ञानमय ज केम होय छे? तेना उत्तरमां आचार्यदेव बे गाथाओ कहे छे––
वळी ज्ञानमय को भावमांथी
ज्ञानभाव ज ऊपजे,
ते कारणे ज्ञानी तणा
सौ भाव ज्ञानमयी बने. (१२८)
अज्ञानमय को भावथी
अज्ञानभाव ज ऊपजे
ते कारणे अज्ञानीना
अज्ञानमय भावो बने. (१२९)
कारण जेवुं कार्य थाय छे, एटले जेना मूळमां अज्ञान छे तेना बधाय भावो अज्ञानमय ज होय छे.
अज्ञानीने शुद्ध चिदानंदमूर्ति आत्मामां प्रवेश ज नथी, रागना कर्तृत्वपणे ज तेनां बधा परिणामो थाय छे
तेथी तेना कोई परिणामो अज्ञानने उल्लंघता नथी; शास्त्रज्ञान हो के व्रत–तपना परिणाम हो–ते बधाय
अज्ञानभावमय ज छे. शास्त्रना भणतर वखतेय तेनी बुद्धिमां विकल्पनुं अवलंबन पड्युं छे, तेथी
पराश्रयबुद्धिने तेना भावो ओळंगता नथी.
अने, शुद्धचैतन्यस्वभावने रागथी भिन्नपणे जेणे अनुभव्यो एटले जेनी पर्यायमां चैतन्यभगवान
व्यापी गयो एवा धर्मी–ज्ञानी जीवने भेदज्ञाननी भूमिकामां जे कोई परिणाम थाय ते बधाय ज्ञानमय ज छे;
कारण जेवुं कार्य थाय छे; ज्ञानीना बधाय भावो भेदज्ञानपूर्वक थाय छे, क््यांय पण राग साथे ज्ञाननी
एकता तेने थती नथी, रागथी भिन्न ज्ञानमयभावपणे ज ते परिणमे छे. क््यारेक अशुभ परिणाम होय
त्यारे पण ज्ञानी ते अशुभमां तन्मयपणे नथी परिणमतो पण ज्ञानमां ज तन्मयपणे परिणमे छे; एटले
तेना बधाय भावो ज्ञानमय ज छे. ज्ञानीनो कोईपण भाव ज्ञानमयपणाने छोडतो नथी. ज्ञान थोडुं हो के
झाझुं पण अंतर्मुखपणे तेना बधाय भावो ज्ञानमय ज छे. सहजस्वरूप चैतन्यना स्वामीपणे परिणमतां
बधाय भावो चैतन्यमय ज थाय छे.
रागना स्वामीपणे जे परिणमे तेना बधाय भावो रागमय–अज्ञानमय थाय छे; अने चैतन्यना
स्वामीपणे जे परिणमे तेना बधाय भावो चैतन्यमय–ज्ञानमय थाय छे. जुओ तो खरा, द्रष्टिनुं जोर!! जेवी
द्रष्टि तेवी सृष्टि; ज्ञानीए उदयभावोने प्रज्ञाछीणी वडे ज्ञानथी भिन्न करी नांख्या छे, सदाय...जागतां के
ऊंघमां, निर्विकल्पतामां के विकल्प वखते ते ज्ञानमां ज तन्मयपणे परिणमे छे ने रागने चैतन्यथी जुदो ने
जुदो ज राखीने परिणमे छे. आवुं ज्ञानमय परिणमन तेने सदाय वर्त्या ज करे छे.