Atmadharma magazine - Ank 219
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 11 of 21

background image
: १० : आत्मधर्म: २१९
अरे जीव! तुं द्रष्टिनी अने भेदज्ञाननी महत्ता समज!
अज्ञानी अंदर गुणगुणीभेदथी आत्मानुं चिंतन करतो होय, तेने एम लागे के हुं आत्मानुं निर्विकल्प
ध्यान करुं छुं, पण अंदर भेदना सूक्ष्म विकल्प साथे तेने एकताबुद्धि पडी छे, जाणे के आ विकल्पद्वारा
अभेदनो निर्विकल्प अनुभव थशे–एवी बुद्धिथी ते विकल्पमां ज अटकेलो छे, एटले ध्यान वखते पण तेना
भावो अज्ञानमय ज छे.
अने ज्ञानीने क््यारेक आर्त्तध्यान जेवा परिणाम आवी जाय, तोपण अंदर ज्ञानने विकल्पथी पण
भिन्न अनुभवे छे, आर्त्तध्यानना परिणामथी ज्ञानने जुदुं ज जाणे छे, चिदानंदतत्त्व रागथी पार छे ते
श्रद्धामांथी खसतुं नथी ने भेदज्ञान एक क्षण पण छूटतुं नथी, तेथी श्रद्धा अने भेदज्ञानना बळे तेना बधाय
भावो ज्ञानमय ज होय छे.
जुओ, ज्ञानी अने अज्ञानीना परिणामनी जात ज जुदी छे अज्ञानीनुं शास्त्रज्ञान केवुं? के
अज्ञानमय; अज्ञानीने कदाच विभंग अवधिज्ञान थाय, तो ते पण अज्ञानमय; अज्ञानी व्रत करे तो ते पण
अज्ञानमय; अज्ञानीनी सामायिक पण अज्ञानमय; अज्ञानीनुं तप पण अज्ञानमय; अज्ञानीनो वैराग्य पण
अज्ञानमय; अज्ञानीनी पूजा–भक्ति पण अज्ञानमय; अज्ञानीनी जात्रा के दान ते पण अज्ञानमय; ए
प्रमाणे अज्ञानीना बधाय परिणाम अज्ञानमय ज होय छे, सर्वत्र तेने रागनी कर्तृत्वबुद्धि ज पडेली छे...
झेरना प्रवाहमांथी तो झेर ज आवे; झेरना प्रवाहमांथी कांई अमृत न आवे.
अने ज्ञानीना बधाय परिणामो ज्ञानमय ज छे. शास्त्रज्ञान झाझुं हो के न हो, अवधि–मनःपर्ययज्ञान
हो के न हो, पण तेने ज्ञानमयभावो ज छे. व्रत–तप–दान–जात्रा–वैराग्य–भक्ति–पूजा वगेरे समस्तभावो
वखते तेने ज्ञानमय परिणमन वर्ती ज रह्युं छे. साकरना प्रवाहमांथी तो साकरनी मीठास ज आवे, साकरना
प्रवाहमां कडवाश न आवे.
ज्ञानीना बधाय भावो ज्ञानथी ज रचायेला छे, ने अज्ञानीना बधाय भावो अज्ञानथी रचायेला छे.
आ रीते ज्ञानी अने अज्ञानीना परिणमनमां आकाशपाताळ जेवो मोटो तफावत छे. ज्ञानीना
ज्ञानमयपरिणमनने अज्ञानीओ ओळखी शकता नथी. आ ज्ञानी आवो राग करे छे–एम पोतानी ऊंधी
द्रष्टिथी देखे छे, पण ते वखतेय ज्ञानीनो आत्मा रागना अकर्तापणे चैतन्यभावरूप ज परिणमी रह्यो छे,
ते परिणमन अज्ञानीने देखातुं नथी. पोतामां ज्ञान अने रागनी भिन्नतानुं भान नथी एटले सामा
ज्ञानीना आत्मामां पण ज्ञान अने रागनी भिन्नताने ते देखी शकतो नथी. जो ज्ञानीना परिणमनने
यथार्थ ओळखे तो पोताने भेदज्ञान थया वगर रहेशे नहि. रागना कर्तृत्वमां रहीने ज्ञानीनी साची
ओळखाण थती नथी. भाई, ज्ञानीना बधाय भावो ज्ञानमय ज होय छे, केमके तेणे चैतन्यना
अनुभवमांथी रागने जुदो पाडी नाख्यो छे. राग रागमां छे, ने ज्ञानीनो आत्मा तो ज्ञानभावमां ज
तन्मय छे, ते रागमां तन्मय नथी; माटे ज्ञानीना बधाय भावो ज्ञानमय ज छे, ने अज्ञानीना बधाय
भावो अज्ञानमय ज होय छे.
* * * * * *
(ए ज वात गाथा १३०–१३१मां द्रष्टांतपूर्वक समजावे छे.)
जगतना बधाय पदार्थो परिणमनस्वभावी छे एटले क्षणे क्षणे परिणमे छे, तो पण पोतानी जातिने
छोडीने अन्य जातिरूपे कोई पदार्थ परिणमतो नथी सोनुं अने लोढुं बंने छे तो पुद्गलना परिणाम, छतां
सोनामांथी जे कोई भावो थाय ते बधाय सुवर्णमय ज थशे, ने लोढामांथी जे कोई परिणाम थाय ते बधाय
लोहमय ज थशे. जेना मूळमां कारणपणे सोनुं छे तेनुं कार्य पण सोना रूप ज थशे. लोढारूप नहि थाय; अने
जेना मूळमां कारणपणे लोखंड छे तेनुं कार्य पण लोखंडरूप थशे. तेमांथी सोनाना दागीना नहिं थाय, केम के
कारण जेवुं ज कार्य थाय छे. (अहीं कारण–कार्य बंने पर्यायरूप छे.) तेम अज्ञानीने अज्ञानमय भावमांथी जे
कोई भावो थाय ते बधाय अज्ञानमय ज थशे. सम्यग्दर्शन ज्ञान–चारित्र