Atmadharma magazine - Ank 219
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म: २१९
कोईवार ज्ञानीनी आंखमांथी आंसुनी धारा चाली जती होय, त्यां ज्ञानी शुं करे छे?–तो कहे छे के
ज्ञानी ज्ञानमय परिणामने ज करे छे. जेटलो ज्ञानमयभाव छे ते ज ज्ञानीनो भाव छे, जे राग छे ते कांई
ज्ञानीनो भाव नथी.
अज्ञानी उपर टपके बाह्यचेष्टाने जोनार छे, ज्ञानी अंतरद्रष्टि सहित परिणामने जोनारा छे. अज्ञानी
एम देखे छे के ज्ञानी रडे छे, ज्ञानी हसे छे, ज्ञानी राग करे छे, पण ते ज वखते भेदज्ञानना बळे ज्ञानीनां
अंतरमां रागादिथी भिन्न ज्ञाननी धारा वही रही छे.–तेने अज्ञानी बाह्यद्रष्टिने लीधे देखतो नथी. जेम
थांभला वगेरे अन्य ज्ञेयोने ज्ञानथी भिन्नपणे जाणे छे तेवी ज रीते, अन्य ज्ञेयोनी जेम ज क्रोधादिने पण
पोताना ज्ञानथी भिन्न ज जाणे छे, तेने ज्ञाननी साथे एकमेक करता नथी.–आ रीते ज्ञानीना बधाय भावो
ज्ञानमय ज होय छे. आवा ज्ञानमय भावथी ओळखाण थतां जरूर भेदज्ञान थाय छे. भेदज्ञान थतां
मोक्षमार्गनो प्रवाह शरू थई जाय छे; एनुं नाम धर्म छे.
सम्यक्त्वनो शुं महिमा छे, अनुभूति शुं चीज छे, तेनी अज्ञानीओने खबर नथी. लाकडुं के
व्यवहारना रागादि परिणाम–ते बंनेने ज्ञानी परज्ञेयपणे ज देखे छे. समकिती छ खंडना चक्रवर्ती राजमां
ऊभा होय तो पण जगतना एक रजकणना पण स्वामीपणे परिणमता नथी; विकल्पमात्रनुं स्वामीपणुं तेने
ऊडी गयुं छे; अने अज्ञानी राजपाट छोडी, नग्न दिगंबर मुनि थईने अंदर शुभ रागनी कर्तृत्वबुद्धिथी त्रण
लोकना परिग्रहना स्वामीपणे परिणमे छे. ज्ञानी अने अज्ञानीनी अंतरद्रष्टिनो आ महान तफावत छे, तेने
ज्ञानी ज जाणे छे. आवा भेदने जे जाणे तेने पोतामां जरूर ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान थई जाय, एटले ते
आत्मा ज्ञानमय भावरूपे ज परिणमे; एनुं नाम धर्म अने मोक्षमार्ग छे.
वैराग्य समाचार:
श्री जीवणलालजी महाराज मागशर सुद १प ने गुरुवारना रोज सवारे
लगभग ११ वागे सोनगढमां स्वर्गवास पाम्या छे. तेओ घणा वर्षोथी पू. गुरुदेवनी
सेवामां रहेता हता. छेल्ला सातेक वर्षथी तेमने अनेकविध बिमारी रह्या करती हती.
तेओ सरल अने भद्र प्रकृतिना होवाथी पू. गुरुदेव घणीवार तेमने ‘देवानुप्रिया’ कहीने
बोलावता. बुधवारे सांजे गुरुदेव तेमनी पासे पधारेला त्यारे ‘हुं एक शुद्ध सदा
अरूपी...’ ईत्यादिनुं श्रवण कराव्युं हतुं, ते तेमणे प्रेमपूर्वक सांभळ्‌युं हतुं. बीजे दिवसे
(गुरुवारे) आकस्मिक तेमनी तबीयत वधु लथडतां पू. गुरुदेव तेमज मंडळना सर्वे
भाई–बहेनो त्यां आवेला ने सहजानंदी शुद्धस्वरूपी.....ईत्यादि धून बोलता हता. ए
प्रसंगनुं वातावरण घणुं ज वैराग्यप्रेरक हतुं. जीवन आवुं क्षणभंगुर छे तेमां
सत्समागमे श्रद्धा–ज्ञान–वैराग्यना एवा द्रढ संस्कार पाडवा जोईए के जीवनमां के
मरण प्रसंगे पण ते कार्यकारी थाय. श्री जीवणलालजी महाराजनो आत्मा पू. गुरुदेवना
सत्समागमना प्रतापे आगळ वधीने आत्महित साधे–एम ईच्छीए छीए.
राजकोना भाईश्री दलपतराम मोहनलाल महेता ता. ११–१२–६१ना रोज
होंगकोंग मुकामे हार्टफेईलथी स्वर्गवास पाम्या छे. बोटादना भाईश्री अनुपचंद
चत्रभुज गांधी कारतक वद चोथना रोज स्वर्गवास पाम्या छे. राजकोटना सोलीसीटर
श्री लाभशंकर नरभेराम महेता मुंबई (पार्ला) मुकामे आसो सुद एकमना रोज
स्वर्गवास पाम्या छे.–आ बधा भाईओने पू. गुरुदेव प्रत्ये भक्तिभाव हतो, अने
तेओ अवारनवार पू. गुरुदेवना प्रवचनोनो लाभ लेता हता. ते दरेक आत्मा पोताना
धार्मिक संस्कारमां आगळ वधीने आत्महित साधे–एम ईच्छीए छीए.