Atmadharma magazine - Ank 219
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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पोष : २४८८ : १प :
एवो भाव उल्लसे के जाणे साक्षात् भगवान ज छे! आ रीते जिनप्रतिमाने जिनसारखी कहेवामां आवी छे.
भगवान जेवा निष्परिग्रही वीतराग छे तेवी ज तेमनी प्रतिमा होय, तेने वस्त्र के मुगट वगेरे होय नहि.
आवा वीतराग भगवाननी प्रतिमा करावीने तेना पंचकल्याणक वगेरे महापूजा–प्रभावनानो उत्सव पोतानी
ऋद्धिना प्रमाणमां श्रावक करे. “शक्ति प्रमाणे” कह्युं छे एटले लाख रूा. नी मूडीमांथी बे रूा. वापरे तो ते
शक्ति प्रमाणे न कहेवाय; उत्कृष्ट चोथो भाग, मध्यम छठ्ठो भाग अने ओछामां ओछो दसमो भाग ते शक्ति
प्रमाणे योग्य गणवामां आव्यो छे. धर्मप्रसंगमां शक्ति प्रमाणे दानादि न करे ने धर्मात्मा नाम धरावे तो ते
मायाचारी छे–एम दान–अधिकारमां पद्मनंदीस्वामीए ज कह्युं छे.
वळी, जेम भगवान प्रत्ये भक्ति होय तेम धर्मात्मा प्रत्ये प्रेम अने वात्सल्य होय, आदर होय.
धर्मीने धर्मात्मा प्रत्ये प्रेम आव्या वगर रहेतो नथी. अहो, जे मार्गने हुं आदरुं छुं ते ज मार्गने आ
धर्मात्मा आदरे छे, ते मारा साधर्मी छे–एम साधर्मीने जोतां ज अंदरथी वात्सल्य उभराय छे. प्रवचनसारमां
तथा अष्टप्राभृतमां कुंदकुंदस्वामीए ते वात करी छे, तेम ज रत्नकरंडश्रावकाचारमां समन्तभद्रस्वामीए ते
वात करी छे, तेओ कहे छे के ‘
न धर्मो धार्मिकैः विना’–धर्म धर्मात्मा वगर होतो नथी, तेथी धर्मनो जेने प्रेम
होय तेने धार्मिक जीवो प्रत्ये जरूर अनुमोदना अने वात्सल्य आवे छे. धार्मिक जीवो प्रत्ये जेने अनुमोदना
नथी तेने धर्मनो ज प्रेम नथी, केमके धार्मिक जीवोथी जुदो तो धर्म छे नहीं.
अहा! जुओ, आ निश्चय–व्यवहारनी संधिपूर्वकनो जिनमार्ग! आत्मानी वातो करे अने आत्माने
छे.।।६।।
श्रावकोए हंमेशा करवा योग्य कार्यो शुं छे ते सातमी गाथामां दर्शावे छे:–
देवपूजा गुरोपास्ति स्वाध्याय संयमस्तपः।
दानश्चेति गृहस्थाणां षट्कर्माणि दिनेदिने।। ७।।
भगवान जिनेन्द्रदेवनी पूजा, निर्ग्रंथ गुरुओनी उपासना, वीतरागी शास्त्रोनी स्वाध्याय, संयम,
तप, अने दान–आ छ कार्यो गृहस्थश्रावके हररोज करवा योग्य छे.
जेटली सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी उपासना छे तेटलो धर्म छे ने तेटलो ज मोक्षमार्ग छे; एवा
धर्मनी उपासना जेने प्रगटी होय, अथवा तो प्रगट करवा मागता होय तेमने, ते धर्मना उपदेशक अने
आराधक एवा देव–गुरु–शास्त्रनी उपासनानो भाव पण जरूर आवे छे, तेथी तेने श्रावकनुं कर्तव्य कह्युं छे.