एवो भाव उल्लसे के जाणे साक्षात् भगवान ज छे! आ रीते जिनप्रतिमाने जिनसारखी कहेवामां आवी छे.
भगवान जेवा निष्परिग्रही वीतराग छे तेवी ज तेमनी प्रतिमा होय, तेने वस्त्र के मुगट वगेरे होय नहि.
आवा वीतराग भगवाननी प्रतिमा करावीने तेना पंचकल्याणक वगेरे महापूजा–प्रभावनानो उत्सव पोतानी
ऋद्धिना प्रमाणमां श्रावक करे. “शक्ति प्रमाणे” कह्युं छे एटले लाख रूा. नी मूडीमांथी बे रूा. वापरे तो ते
शक्ति प्रमाणे न कहेवाय; उत्कृष्ट चोथो भाग, मध्यम छठ्ठो भाग अने ओछामां ओछो दसमो भाग ते शक्ति
प्रमाणे योग्य गणवामां आव्यो छे. धर्मप्रसंगमां शक्ति प्रमाणे दानादि न करे ने धर्मात्मा नाम धरावे तो ते
मायाचारी छे–एम दान–अधिकारमां पद्मनंदीस्वामीए ज कह्युं छे.
धर्मात्मा आदरे छे, ते मारा साधर्मी छे–एम साधर्मीने जोतां ज अंदरथी वात्सल्य उभराय छे. प्रवचनसारमां
तथा अष्टप्राभृतमां कुंदकुंदस्वामीए ते वात करी छे, तेम ज रत्नकरंडश्रावकाचारमां समन्तभद्रस्वामीए ते
वात करी छे, तेओ कहे छे के ‘
नथी तेने धर्मनो ज प्रेम नथी, केमके धार्मिक जीवोथी जुदो तो धर्म छे नहीं.
दानश्चेति गृहस्थाणां षट्कर्माणि दिनेदिने।। ७।।
आराधक एवा देव–गुरु–शास्त्रनी उपासनानो भाव पण जरूर आवे छे, तेथी तेने श्रावकनुं कर्तव्य कह्युं छे.