Atmadharma magazine - Ank 219
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १८ : आत्मधर्म: २१९
ऊंधुंं पोषण करता होय; धर्मात्मानी के धर्मनी जे निंदा करता होय तेनो संग मुमुक्षुजीव छोडी द्ये. कुसंगमां के
ज्यां धर्माचरणमां विघ्न आवतुं होय एवा कुदेशमां धर्मात्माए रहेवुं नहि. तेमज जेना उपार्जनमां तीव्र
अन्याय, तीव्र हिंसा, वगेरे तीव्र पाप थतुं होय–एवी लक्ष्मीने पण धर्मी जीव छोडी द्ये,–जिज्ञासुजीव पण तेने
छोडी दे;–आटली पात्रता तो धर्म पामवा माटे होवी ज जोईए. धर्मना जिज्ञासुने पापनो केटलो भय होय!
पापनो भय छोडीने एमने एम गमे तेवा हिंसादि पापकार्योमां वर्ते एवुं पात्र जीवने होय नहि.
तीव्रपापनो त्याग तो सामान्य लौकिक पात्रतामां पण होय छे, तो पछी धर्मनी पात्रतावाळा जीवने तो तेनुं
सेवन केम होय? न ज होय. अहा, जे वीतरागदेवनो उपासक थयो, अर्हंत भगवाननो भक्त थयो,
अनंतभवनो छेद करवा माटे ऊभो थयो तेनामां केटली पात्रता होय!
अहीं कहे छे के हे श्रावक! तुं रोजेरोज भगवान जिनेन्द्रदेवनां दर्शन–पूजन करीने तारा ध्येयने ताजुं
करजे. जे श्रावक चोखाना दाणा जेवडुं मंदिर ने तेमां जवना दाणा जेवडा जिनप्रतिमा करावे तेने पण धन्य
कह्यो छे–केमके तेमां तेना भावमां वीतरागी स्वभावनो परम आदर अने अनुमोदना घूंटाय छे.
वीतरागीस्वभावने लक्षमां ध्येयरूपे राखीने रोजेरोज जिनेन्द्र परमात्माना दर्शन–पूजन करवा ते श्रावकनुं
कर्तव्य छे.
(२) गुरु उपासना: देवपूजा पछी श्रावकोनुं बीजुं कर्तव्य छे–गुरुओनी उपासना; गुरुनी उपासना
एटले निर्ग्रंथ मुनिवरोनी तेमज धर्मात्मासंतोनी सेवा, तेमनो सत्संग तेमनुं बहुमान, तेमनी भक्ति, तेमनी
प्रशंसा, तेमनी पासेथी उपदेशनुं श्रवण; ते गृहस्थश्रावकोनुं हंमेशनुं कर्तव्य छे, धर्ममां जे मोटा छे एवा
धर्मात्माओनी सेवा ते गुरुउपासना छे.
(क्रमश:)
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समाचार:
(सामे पानेथी चालु)
* फिरोझाबाद शहेरमां पू. गुरुदेव यात्रा वखते पधार्या त्यारे त्यां भव्य जिनमंदिर–मानस्तंभ
वगेरे तैयार थता हता ते संपूर्ण थया छे ने तेनी प्रतिष्ठानो भव्य पंचकल्याणक महोत्सव गत मासमां
उजवाई गयो छे. प्रतिष्ठामां आठ हाथी हता. ने प्रतिष्ठा मंडपमां ६०, ००० बत्तीओ हती. “कानजी
स्वामी जैन पुस्तकालय” नुं उद्घाटन पण आ प्रसंगे थयुं हतुं. आ पुस्तकालयनो मंगल प्रारंभ पू.
गुरुदेव फिरोझाबाद पधार्या त्यारे तेमना सुहस्ते करवामां आव्यो हतो. फिरोझाबादनो मानस्तंभ ६१
फूट ऊंचो छे ने सोनगढना मानस्तंभने मळतो ज छे. तेमां एक चित्रमां पू. गुरुदेव प्रवचन करी रह्या
छे ने श्रोताजनोनी सभामां शेठ श्री छदामीलालजी पू. गुरुदेव प्रत्ये वंदन करी रह्या छे–एवुं द्रश्य
कोतरेलुं छे.
विज्ञप्ति
सोनगढ स्वाध्याय मंदिर ट्रस्ट अंतर्गत श्री दिगंबर जैन मुमुक्षु महा मंडळना धाराधोरणनी
बुक, प्रतिज्ञापत्र तथा परिपत्र दरेक गामना मुमुक्षु मंडळने मोकलावी आपेल छे, परिपत्रमां जणाव्या
मुजब विगतो भरवानी छे. तेवी विगतो घणां मंडळो तरफथी आवी गयेल छे पण हजु केटलांक मंडळो
तरफथी तेवी विगतो आवी नथी तो तेओ तुरत ज विगतो पूरी लखीने मोकलावी आपे एवी विनंती
छे.
चीमनलाल ठाकरशी मोदी,
सेक्रेटरी.