Atmadharma magazine - Ank 219
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 6 of 21

background image
पोष: २४८८ : प :
जिनशासनना घणा महिमापूर्वक गुरुदेवे कह्युं–अहा जुओ तो खरा! समन्तभद्रआचार्ये केवी सरस
स्तुति करी छे? तेमणे रचेली आ २४ तीर्थंकरोनी स्तुतिमां घणा गंभीर भावो भर्यां छे. तेमने माटे एवो
उल्लेख छे के तेओ भविष्यमां तीर्थंकर थशे. आवा समन्तभद्रस्वामी–महावीतरागी संत, तेमनुं वचन अत्यंत
प्रमाणभूत छे. जेवुं भगवान कुंदकुंदाचार्यनुं वचन, अने जेवुं अमृतचंद्राचार्यनुं वचन तेवुं ज
समन्तभद्रस्वामीनुं वचन! तेओ स्पष्ट कहे छे के एक अर्हंतदेवनुं अनेकान्तमय जिनशासन ज सर्वे जीवोने
भद्ररूप छे; एना सिवाय बीजा बधाय एकान्तमतो दुषित छे, मिथ्या छे, ने जीवोनुं अहित करनार छे. आवुं
कल्याणकारी जिनशासन भद्ररूप अने मंगळरूप छे.
आ रीते गुरुदेवे घणा ज वैराग्य अने भक्तिभावथी उपरोक्त स्तुतिना अर्थ द्वारा मांगळिक कर्युं, ते
सांभळीने सर्वे मुमुक्षुओने घणो आनंद थयो हतो...ने जयनाद गाजी ऊठया हता.–
जिनेश्वरदेवना मंगल आशिर्वादप्राप्त मंगलमूर्ति
गुरुदेवनो जय हो......विजय हो.
अनेकान्त स्वरूप जिननीति
अनेकान्तस्वरूप जिननीति भगवान
आत्माने यथार्थस्वरूपे प्रसिद्ध करे छे. ते ‘अनेकान्त’
अर्हंत भगवाननुं अलंघ्य (कोईथी तोडी न शकाय
तेवुं) शासन छे. एकांत मान्यताओने तोडी पाडतुं
अने अनेकान्तस्वरूपे भगवान आत्माने प्रसिद्ध
करतुं ते अनेकान्त शासन जयवंत वर्ते छे.
अनेकान्तमय वस्तुव्यवस्थाने अनेकान्त
संगतद्रष्टि वडे ज्ञानीपुरुषो स्वयमेव देखे छे, अने ए
रीते अनेकान्तमय जिननीतिने नहि उल्लंघता थका
ते संतो स्वयमेव ज्ञान–आनंदस्वरूप थाय छे.
ज्ञान–आनंदस्वरूप थवुं ते अनेकान्तनुं फळ
छे, ने ते ज जिननीति छे, ते ज जिनेश्वरदेवनो मार्ग
छे. आनाथी विरुद्ध (एकांत) वस्तुस्वरूप मानतुं ते
जिननीति नथी पण महान अनीति छे. जिननीति जे
उल्लंघे छे ते मिथ्याद्रष्टि थाय छे ने घोरसंसारमां
रखडे छे...संतो अनेकान्तस्वरूप पावन जिननीतिने
कदी उल्लंघता नथी, तेथी, तेओ परम अमृतमय
मोक्षपदने पामे छे.
अनेकान्तमय जिननीति जयवंत हो.