पोष: २४८८ : ७ :
गुरुदेवे आपेली
आ बेसता वर्षनुं बपोरनुं प्रवचन छे...कारतक सुद एकमना आ प्रवचनमां
बेसता वर्षनी बोणी तरीके गुरुदेवे सम्यग्दर्शननी रीत आपी छे. ते झीलीने
आत्मामां सम्यक्त्वरूपी मंगल सुप्रभात उगाडवुं–ते आपणुं कर्तव्य छे.
(बेसता वर्षनुं सवारनुं प्रवचन आत्मधर्मना गतांकमां आवी गयुं छे.)
सम्यग्दर्शन पामवानुं अलौकिक वर्णन आ १४२मी गाथामां छे. जे बद्धपणानो विकल्प छे ते तो
सम्यग्दर्शननुं कारण नथी, तेमज आत्मा अबद्ध छे–एवो विकल्प ते पण सम्यग्दर्शननुं कारण नथी. बद्ध
छुं–एवा नयपक्षने तो छोडयो, पण हुं अबद्ध छुं–एवा विकल्पने न छोडयो, ते विकल्पना कर्तापणामां
अटक्यो तो तेने सम्यग्दर्शन थतुं नथी. जेम बीजा जीवो बाह्य प्रवृत्तिनी गडमथल कर्या करे तेम आ
पण अंदरमां विकल्पनी गडमथल कर्या करे छे, पण विकल्पथी जुदो पडीने ज्ञानमय परिणमतो नथी.
ज्ञानने समस्त विकल्पोथी जुदुं करीने अंतर्मुख करे त्यारे ज शुद्धतानो अनुभव थाय छे.
सम्यग्दर्शन पछी जे विकल्प ऊठे ते तो ज्ञानथी भिन्नपणे ज वर्ते छे, ज्ञान तेना कर्तापणामां
अटकतुं नथी. अहो, आ चीज मोंघी अने दुर्लभ छे, पण अशक््य नथी. अंतरना साचा प्रयत्नथी ते
प्राप्त थाय तेवी छे. मिथ्या–द्रष्टिरागना कर्तृत्वमां अटकी जाय छे, अंदर सूक्ष्म विकल्प आवे के ‘हुं शुद्ध
छुं’–त्यां ते विकल्पमां संतोषाईने तेना कर्तृत्वमां अटकी जाय छे, बीजा घणा स्थूळ विकल्पो छूटी गया
एटले जाणे के हुं बहारथी घणो पाछो हटी गयो छुं; पण अंदरना सूक्ष्म विकल्पने कर्तव्य मानीने
अटक्यो ते बहिर्मुखवृत्तिमां ज अटकयो छे. स्थूळपणे एम विचारे के ‘रागथी जुदो छुं; राग मारुं कार्य
निश्चयथी नथी’–पण वेदनमां ज्ञानने रागथी जुदुं पाडतो नथी, एटले परिणमनमां तो तेने ज्ञान अने
रागनी एकत्वबुद्धि ज वर्ते छे. ‘हुं शुद्ध छुं’ एवो जे शुद्धात्मानो विकल्प ते कांई सम्यग्दर्शन नथी; ‘हुं
शुद्ध छुं’–एवी द्रष्टिनुं अंतरपरिणमन थवुं एटले के शुद्धआत्मा साथे पर्याय तद्रूप थवी–ते सम्यग्दर्शन
छे. आवा सम्यग्दर्शनमां कोई पण विकल्पनुं अवलंबन नथी, अज्ञानी तो विकल्पो फेरवे छे, बंधनो
विकल्प छोडीने अबंधपणानो विकल्प कर्यो त्यां जाणे के हुं अबंध थई गयो,–पण खरेखर अबंधनो
विकल्प ते पण बंधभाव ज छे ने ते बंधभावमां ज अटकयो छे. बंधभावने ओळंगीने साक्षात्
अबंधपणे परिणमन थाय तेनुं नाम शुद्धता छे.
अहो, आ अंतरना परिणमननुं स्वरूप बतावनारी गाथा छे; अनुभवदशानी प्राप्ति केम थाय–तेनी
आ रीत बतावाय छे. बेसता वर्षनी आ बोणी अपाय छे....केवी बोणी? बाह्यवस्तुनी नहि, अंदरना
विकल्पनी पण नहि, बाह्यवस्तुना अवलंबनथी रहित, ने विकल्पातीत एवी चैतन्यवस्तुना
अनुभवरूप सम्यग्दर्शन केम थाय–तेनी आ बोणी संतो आपे छे. आ चैतन्यवस्तु एक नानामां नाना
विकल्पना कर्तृत्वनो बोजो पण सहन करी शके तेवी नथी. ज्ञातास्वभावी भगवान आत्मामां विकल्पनुं
कर्तृत्व समाई शके तेम नथी. अरे, आंखमां कणुं जेम न समाय, तेम चैतन्य–