नथी. एनाथी पुण्य बंधाय ने धूळ मळे.
भाई, खरेखर कुणो नथी. आ वात ज जुदी छे.
ए वात तो पहेलां करी के धर्मात्मा देव–गुरु–शास्त्र एनो बराबर विनय बहुमान बधुं होय; कांई
समजाणुं? पछी गमे तेटला भणतर हो ने गमे तेवो मोटो त्यागी मुनि थईने २८ मूळगुण पाळतो होय, तो
पण मिथ्याद्रष्टि छे. सम्यग्द्रष्टि–गृहस्थाश्रममां होय एनो पण जो अनादर अने अविनय करे तो मिथ्यात्वने
बांधे ने ७० क्रोडाक्रोडीनी स्थिति बांधे. पण एथी करीने आ स्वभावनी वस्तु छे ते तेटलामां आवी जाय–
एम नथी.
जगतनो छे, जगतमां हुं नथी ने हुं मां जगत नथी–आवी निर्लेप–निष्तुष द्रष्टि जेने करवी छे,–मेलनो कण
जेमां नथी, भगवान ज्ञाननो गांगडो चैतन्यमूर्ति, त्रणेकाळे रागथी तद्रन नीराळुं तत्त्व–एवुं जेने द्रष्टिमां
बेसाडवुं छे तेने आवी रागनी मंदता के दानादिनो भाव न होय एम बने नहि. ते होय खरुं–पण ते धर्म छे
के कल्याण छे के तेनाथी हळवे हळवे सम्यग्दर्शन पामशुं के आत्मामां जशुं–एम जो माने तो, बापु! त्यां मोटी
भूल थाय छे.
भय टाळीने नाख्या बीजे! जेनी चीजमां भव न मळे एवो भगवान, आत्मा, तेने डर नहीं, भय नहीं,
दुनियानी दरकार नहीं; जगत जगतमां रह्युं ने आत्मा आत्मामां. विकल्प ऊठे ते बधाय जगतमां रह्या, तेनी
साथे आत्मा तन्मय नथी. आवो आत्मानो स्वभाव अंतरद्रष्टिमां लईने ज्ञाननी निर्मळकणिका–एटले
सम्यक्–श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रनी निर्मळपर्याय प्रगट थाय ते ज निष्तुष परमार्थमार्ग छे, बीजो कोई मार्ग
त्रणकाळ त्रणलोकमां नथी.
ने पछी निश्चय–एम नथी; अने निश्चयभान थया पछी जो व्यवहार बिलकुल न होय तो तो केवळज्ञान थई
जाय. व्यवहारना स्थानमां व्यवहार होय, करवो एम नहि; बराबर होय, विकल्पना काळे तेवो भाव होय,
भक्ति आवे, गुरु पासे जईने आलोचना करे, प्रायश्चित ल्ये, जडनी क्रिया पण तेम थवानी होय, विकल्प
ऊठवानो काळ एवो ज होय,–पण तेथी वस्तुनो स्वभाव ज्ञान छे–द्रष्टा छे ते भान चाल्युं जाय छे–एम
नथी. स्वभावनुं भान राखीने तेवा भाव होय छे पण ते भावने स्वभावनी साथे जो एकमेक माने तो
मिथ्याद्रष्टि छे. द्रष्टिना–सत्यना स्वभावनो आश्रय शुं छे, क््यां ढळवुं छे, ने ढळेली दशा केवी होय–तेनी एने
खबर नथी.