कर्युं, अनुभव कर्यो,–आनंदनी प्राप्ति वेदनमां आवी,–ए दशाने मोक्षमार्ग अने धर्म कहेवामां आवे छे. पोते
पोताना स्वभावने अनुसरीने दशा थवी ते एक ज मार्ग छे.
द्रष्टि अने अनुभवना काळमां परथी निर्लेप रही जेटली निर्लेप श्रद्धा–ज्ञान–रमणता थाय तेटलो ज शुद्ध
केवळज्ञान प्रगटवानो मार्ग छे, बीजो कोई मार्ग नथी.
भणी जाय–एटलुं भणतर होय (अत्यारे तो एटलुं भणतर क््यां छे?)–छतां ए भणतर परना लक्षे
थयेलुं छे, स्वभावना लक्षे थनार दशा विना ते भणतर पण मिथ्याज्ञान छे जेओ व्यवहारने
परमार्थबुद्धिथी अनुभवे छे–व्यवहारने परमार्थ माने छे, तेओ समयसारने नथी अनुभवता. समयसार
एटले शुद्धआत्मा कोण वस्तु छे तेने तेओ जाणता नथी, अनुभवता नथी. नवमी ग्रैवेयके अनंतवार
गयो त्यारे केवो हशे!–बीजाने तो एम लागे के अहा, जाणे तरणतारणनुं तूंबडु!–पण ज्ञानमां तन्मयता
ते कोई अंतरनी बीजी चीज छे. एना ख्यालमां पण आवे के अमे जाणीए छीए ने,–ते ज्ञान छे, त्यां
सुधी तो अनंतवार गयो छे; ज्ञातानो स्वभाव अने ज्ञान एकमेक छे,–त्रणेकाळे ज्ञायकस्वरूपथी एकरूप
रह्यो छुं, एवी अंतरना अनुभवनी निर्विकल्प प्रतीत थवी तेने सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान कहेवाय छे.
भगवान आत्माने अनुभवे छे. पूर्वकर्मना संगे रागादि हो,–द्वेषादि हो छतां जेने राग–द्वेषथी
व्यापकपणुं अंतरद्रष्टिमां नथी; एकलो आत्मा परमार्थस्वभावनी द्रष्टिथी अनुभवे छे तेओ ज
समयसारने वेदे छे–अनुभवे छे, आनंदमां पड्या छे, ने एने मोक्ष थवानो छे. जेओ परमार्थने
परमार्थबुद्धिथी अनुभवे छे तेओ ज समयसारने अनुभवे छे, बीजा कोई अनुभवी शकता नथी.
निष्तुष अनुभव ते ज परमार्थ छे. जेओ व्यवहारने निश्चय मानीने प्रवर्ते छे एटले ऊंडे ऊंडे....ऊंडे
ऊंडे....रागनी मंदता अने ज्ञानना पर तरफना उघाडना भाव–तेने लक्षमां लईने एम माने छे के
आमांथी कांईक कणीयो आत्मानो नीकळशे, तेओ व्यवहारने परमार्थ माने छे, तेओ परमार्थने जाणता
नथी.