Atmadharma magazine - Ank 220
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १२ : आत्मधर्म: २२०
शुद्धज्ञाननो अनुभव ते पोते शुद्ध द्रव्यना अनुभवनस्वरूप होवाथी तेने ज परमार्थपणुं छे.
ज्ञानानंदस्वभाव भगवान आत्माए पोताना स्वभावनी सन्मुख थईने निर्विकल्प श्रद्धा–ज्ञान अने वेदन
कर्युं, अनुभव कर्यो,–आनंदनी प्राप्ति वेदनमां आवी,–ए दशाने मोक्षमार्ग अने धर्म कहेवामां आवे छे. पोते
पोताना स्वभावने अनुसरीने दशा थवी ते एक ज मार्ग छे.
आत्मानी शक्ति आखी सागर जेवी पडी छे, सागर जेवो स्वभाव छे, एने अनुसरीने दशा थवी ते
एक ज मार्ग छे, बीजो कोई मार्ग नथी.
आचार्यदेवने विकल्प ऊठयो तेथी लखे छे के मारां मनन माटे–मारी भावना माटे नियमसारशास्त्र
रचुं छुं; विकल्प ऊठयो छे पण ते तेना घेर; हुं मारामां, राग रागमां, जडनी क्रिया जडमां; एवी अंतरनी
द्रष्टि अने अनुभवना काळमां परथी निर्लेप रही जेटली निर्लेप श्रद्धा–ज्ञान–रमणता थाय तेटलो ज शुद्ध
केवळज्ञान प्रगटवानो मार्ग छे, बीजो कोई मार्ग नथी.
पोते शुद्ध द्रव्यना अनुभवनस्वरूप होवाथी तेने ज परमार्थपणुं छे. जेओ व्यवहारने ज
परमार्थबुद्धिथी अनुभवे छे–एने परमार्थ माने छे ते मिथ्याद्रष्टि छे. पाणीना पूरनी जेम ११ अंग ९ पूर्व
भणी जाय–एटलुं भणतर होय (अत्यारे तो एटलुं भणतर क््यां छे?)–छतां ए भणतर परना लक्षे
थयेलुं छे, स्वभावना लक्षे थनार दशा विना ते भणतर पण मिथ्याज्ञान छे जेओ व्यवहारने
परमार्थबुद्धिथी अनुभवे छे–व्यवहारने परमार्थ माने छे, तेओ समयसारने नथी अनुभवता. समयसार
एटले शुद्धआत्मा कोण वस्तु छे तेने तेओ जाणता नथी, अनुभवता नथी. नवमी ग्रैवेयके अनंतवार
गयो त्यारे केवो हशे!–बीजाने तो एम लागे के अहा, जाणे तरणतारणनुं तूंबडु!–पण ज्ञानमां तन्मयता
ते कोई अंतरनी बीजी चीज छे. एना ख्यालमां पण आवे के अमे जाणीए छीए ने,–ते ज्ञान छे, त्यां
सुधी तो अनंतवार गयो छे; ज्ञातानो स्वभाव अने ज्ञान एकमेक छे,–त्रणेकाळे ज्ञायकस्वरूपथी एकरूप
रह्यो छुं, एवी अंतरना अनुभवनी निर्विकल्प प्रतीत थवी तेने सम्यग्दर्शन ने सम्यग्ज्ञान कहेवाय छे.
व्यवहारथी थाय एम माने छे तेओ आत्माने जाणता नथी. जेओ व्यवहारने परमार्थबुद्धिथी
अनुभवे छे तेओ समयसारने नथी अनुभवता. जेओ परमार्थने परमार्थबुद्धिथी अनुभवे छे तेओ ज
भगवान आत्माने अनुभवे छे. पूर्वकर्मना संगे रागादि हो,–द्वेषादि हो छतां जेने राग–द्वेषथी
व्यापकपणुं अंतरद्रष्टिमां नथी; एकलो आत्मा परमार्थस्वभावनी द्रष्टिथी अनुभवे छे तेओ ज
समयसारने वेदे छे–अनुभवे छे, आनंदमां पड्या छे, ने एने मोक्ष थवानो छे. जेओ परमार्थने
परमार्थबुद्धिथी अनुभवे छे तेओ ज समयसारने अनुभवे छे, बीजा कोई अनुभवी शकता नथी.
व्यवहारनो विषय तो भेदरूप अशुद्ध द्रव्य छे, तेमां तो भेदनो विकल्प ऊठे छे, वृत्ति ऊठे छे, ते
परमार्थ नथी; धर्मीने तेनो आश्रय नथी, तेना आश्रये परमार्थ थतो नथी.
निश्चयनयनो विषय अभेदरूप शुद्धद्रव्य छे, ते ज एकरूप भगवान सामान्यस्वभाव
अंतर्मुखद्रष्टिनो विषय छे, ते ज परमार्थ छे, ने तेनो अनुभव ते ज परमार्थ छे. बीजो परमार्थ नथी.
निष्तुष अनुभव ते ज परमार्थ छे. जेओ व्यवहारने निश्चय मानीने प्रवर्ते छे एटले ऊंडे ऊंडे....ऊंडे
ऊंडे....रागनी मंदता अने ज्ञानना पर तरफना उघाडना भाव–तेने लक्षमां लईने एम माने छे के
आमांथी कांईक कणीयो आत्मानो नीकळशे, तेओ व्यवहारने परमार्थ माने छे, तेओ परमार्थने जाणता
नथी.
एकला शास्त्रनुं ज्ञान ते ज्ञान ज नथी. ज्ञान तो अंतर्मुखमां चैतन्यनो एक कणीयो पण जाग्यो तेमां