Atmadharma magazine - Ank 220
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १४ : आत्मधर्म: २२०
कल्पोथी बस थाओ.....पुण्य–पाप विकल्पोथी बस थाओ....कहेवाना कथनना–शुभविकल्पने पण बंध
करो.....कथनमां विकल्पनुं उत्थान छे, शुभराग छे, पुण्य छे, एनाथी पण बस थाओ...बस थाओ. चैतन्य
हवे अंदरमां समाय छे.
अहीं एटलुं ज कहेवानुं छे के आ परमार्थने एकने ज निरंतर अनुभवो; कोई काळे पण रागना
कणथी चैतन्यने लाभ थाय एवी द्रष्टि रही तो चैतन्यनुं तन्मयपणुं लुंटाई जशे. आ परमार्थने एकने
ज निरंतर अनुभवो, कारण के निजरसना फेलावथी पूर्ण एवुं जे ज्ञान,–जेमां निजरसना पूर्णानंदनो
विस्तार पड्यो छे एवुं जे पूर्णज्ञान–तेना स्फुरायमान थवामात्र जे समयसार तेनाथी ऊंचुं खरेखर
बीजुं कांई नथी. चैतन्यस्वभाव आनंदकंद ज्ञानज्योत छे, ज्ञानसमुद्र स्वभावथी भर्यो छे, तेमां ज्ञान–
दर्शन–आनंदना रत्नो पड्या छे; तेमां पुण्य–पापना विकल्पना कांकरा भर्या नथी. पुण्य–पापना
परिणामो ते पण कांकरा छे, तेना फळ तो वळी बहारमां रह्या.
एकवार एक माणसे पूछयुं–आ पैसावाळाने धर्ममां कांई स्थान खरुं? पैसा वधारे मळ्‌या माटे धर्ममां
कांई मोटी पदवी के अग्रेसरपणुं खरुं?
भाई, पैसा तो जड छे, ते पैसा मारा–एम माननारने अधर्ममां स्थान छे. भले लाखो–हजारो
रूपिया धर्मादामां आपे, ते वस्तुमां कांई धर्म नथी. रागथी ने परथी भिन्न एवा चैतन्य पदार्थना भान
विना त्रणकाळमां धर्म नथी.
शुं गरीब अने पैसावाळा बंनेनी पदवी सरखी? एकने महिने पांच लाख मळे ने बीजाने पचीसनो
पगार पण न मळे–छतां बंने सरखा?
हा भाई! आत्मामां क््यां पैसा गरी गया छे? ने आत्मा क््यां गरीब छे? पैसानी किंमत आत्मामां
क््यांथी आवी? भगवान आत्मा तेनाथी पार छे. एने अनुभववो. केमके निजरसना फेलावथी पूर्ण जे ज्ञान
तेना स्फुरायमान थवामात्र जे समयसार एनाथी ऊंचुं खरेखर जगतमां बीजुं कांई पण नथी. तीर्थं–
करगोत्रनो भाव पण ऊंचो नथी ने एनाथी तीर्थंकर पदवी मळे ते पण ऊंची नथी.
भगवान आत्मा ज्ञानमूर्ति चैतन्यज्योत आनंदथी प्रकाश्यो–आनंदथी प्रकाश्यो, एवा आत्मानी
अंतद्रष्टि अने अंर्तरमणता सिवाय बीजी ऊंची कोई चीज जगतमां त्रणकाळ त्रणलोकमां कोई छे
नहि. चक्रवर्तीना राज के ईन्द्रना ईन्द्रासन पण तेनी पासे सडेला तरणां समान छे. अत्यारे तो एवा
पुण्य पण क््यां छे? पुण्यवंतने सामेथी पराणे कर लेवा न पडे, एने तो दुनिया सामेथी देवा आवे के
आ ल्यो–आपना जन्मथी पथ्थरमां पण नीलमणि पाकया, राजने अमे दोहीए छीए, राज अमने
दोहतुं नथी.–आम सामेथी प्रजाजनो कहेतां आवे. एवा पुण्य–छतां ते पण धूळ छे, बापु! तेमां आत्मा
नथी हो! आत्मा त्रणकाळमां एने स्पर्श्यो नथी, ने ते चीज त्रणकाळमां आत्माने स्पर्शी नथी,–थोडी हो
के घणी हो ए ज रीते शुभभाव घणा हो के थोडा हो, ते भगवान आत्माने स्पर्शता नथी. आवा
आत्माना अनुभव सिवाय आ जगतमां कोई ऊंचुं त्रणकाळमां नथी.
व्यवहार बताववो होय त्यारे तेनी वात आवे.
एक चक्रवर्ती राजा होय, ने मुनि काळाकूबडा होय, बोलता आवडे नहीं, कंठ होय नहीं. बावळना
जंगलमां बे मोटा खोपनी वच्चे जईने ध्यानमां बेठा होय, ने चक्रवर्तीने खबर पडे के अरे....एक मुनि छे.
आत्मज्ञानी छे, जंगलमां बिराजे छे, त्यां लश्कर लईने वंदन करवा जाय. अहा! परमेश्वर ए तो!
सिद्धभगवान–परमेश्वर तो उपर छे, ने आ मुनि परमेश्वर पासे जवा मागे छे, परमेश्वरना पडखीयां छे....
जय प्रभो! धन्य अवतार.....धन्य अवतार!
जुओ, आवो भाव आवे.–समजाय छे?