कल्पोथी बस थाओ.....पुण्य–पाप विकल्पोथी बस थाओ....कहेवाना कथनना–शुभविकल्पने पण बंध
करो.....कथनमां विकल्पनुं उत्थान छे, शुभराग छे, पुण्य छे, एनाथी पण बस थाओ...बस थाओ. चैतन्य
हवे अंदरमां समाय छे.
ज निरंतर अनुभवो, कारण के निजरसना फेलावथी पूर्ण एवुं जे ज्ञान,–जेमां निजरसना पूर्णानंदनो
विस्तार पड्यो छे एवुं जे पूर्णज्ञान–तेना स्फुरायमान थवामात्र जे समयसार तेनाथी ऊंचुं खरेखर
बीजुं कांई नथी. चैतन्यस्वभाव आनंदकंद ज्ञानज्योत छे, ज्ञानसमुद्र स्वभावथी भर्यो छे, तेमां ज्ञान–
दर्शन–आनंदना रत्नो पड्या छे; तेमां पुण्य–पापना विकल्पना कांकरा भर्या नथी. पुण्य–पापना
परिणामो ते पण कांकरा छे, तेना फळ तो वळी बहारमां रह्या.
विना त्रणकाळमां धर्म नथी.
तेना स्फुरायमान थवामात्र जे समयसार एनाथी ऊंचुं खरेखर जगतमां बीजुं कांई पण नथी. तीर्थं–
करगोत्रनो भाव पण ऊंचो नथी ने एनाथी तीर्थंकर पदवी मळे ते पण ऊंची नथी.
नहि. चक्रवर्तीना राज के ईन्द्रना ईन्द्रासन पण तेनी पासे सडेला तरणां समान छे. अत्यारे तो एवा
पुण्य पण क््यां छे? पुण्यवंतने सामेथी पराणे कर लेवा न पडे, एने तो दुनिया सामेथी देवा आवे के
आ ल्यो–आपना जन्मथी पथ्थरमां पण नीलमणि पाकया, राजने अमे दोहीए छीए, राज अमने
दोहतुं नथी.–आम सामेथी प्रजाजनो कहेतां आवे. एवा पुण्य–छतां ते पण धूळ छे, बापु! तेमां आत्मा
नथी हो! आत्मा त्रणकाळमां एने स्पर्श्यो नथी, ने ते चीज त्रणकाळमां आत्माने स्पर्शी नथी,–थोडी हो
के घणी हो ए ज रीते शुभभाव घणा हो के थोडा हो, ते भगवान आत्माने स्पर्शता नथी. आवा
आत्माना अनुभव सिवाय आ जगतमां कोई ऊंचुं त्रणकाळमां नथी.
एक चक्रवर्ती राजा होय, ने मुनि काळाकूबडा होय, बोलता आवडे नहीं, कंठ होय नहीं. बावळना
आत्मज्ञानी छे, जंगलमां बिराजे छे, त्यां लश्कर लईने वंदन करवा जाय. अहा! परमेश्वर ए तो!
सिद्धभगवान–परमेश्वर तो उपर छे, ने आ मुनि परमेश्वर पासे जवा मागे छे, परमेश्वरना पडखीयां छे....
जय प्रभो! धन्य अवतार.....धन्य अवतार!