Atmadharma magazine - Ank 220
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: १६ : आत्मधर्म: २२०
शुं करीए? स्वतंत्र छे जीव! अनादिकाळनो छे, तीर्थंकरना समवसरणमांय अनंतवार जई आव्यो
छे; शुं कांई बाकी राख्युं छे? बापु! तारी लीला जुदी छे. क्रमबद्ध समजतां तो गळीने ओगळी गयो अंदर!
आहा! कोनुं करुं? क््यां करुं? कोण करे? हुं ज्ञान छुं, आनंद छुं. ज्ञाताना स्वभावमां आव्यो त्यां विकारो मंद
पडी गया; अनंतानुबंधी कषायो गळी गया; अनंती परनी कर्ताबुद्धि हती ते टळी गई. आनुं नाम
क्रमबद्धनो निर्णय, अने अकर्तापणाना ज्ञाननुं तन्मयपणुं छे. एना विना क्रमबद्धनुं नाम लीधा करे ने
पापभावमां वर्त्या करे ए तो मोटो स्वच्छंद छे.
तमे निश्चयनी वात करो छो पण व्यवहारनो लोप थई जशे, अरे! व्यवहार लूंटाई जशे!–एम एक
जण कहेतो हतो. शुं थाय, बापु! सत्य तो आवुं छे. आवुं सत्य जेने समजाय तेनी दशामां कोमळता, करुणा,
नम्रता, विनयता, भक्ति ए भाव खसे नहि. शुं थाय? एक वात कहेवा जाय त्यां बीजी छोडी दे, ने आ
कहेवा जाय त्यां पहेली खोवे. निश्चय कहेवा जाय त्यां व्यवहारनी मर्यादा शुं छे ते वात भूली जाय, ने ज्यां
व्यवहार कहेवा जाय त्यां व्यवहारथी लाभ थाय एम मानी बेसे. तीर्थंकरोना काळमां तीर्थंकरोथी पण
समज्यो नथी एवो भडनो दीकरो छे, तो अत्यारना काळनी शी वात? घणी पात्रता अने घणी नरमाश
होय एने आ वात काने पड्या पछी अंतर्मुख थईने रुचि थाय, अने परिणमन तो कोई अनंत पुरुषार्थे
होय छे.... अनंत पुरुषार्थे होय छे....अनंतानुबंधीनो नाश अनंत पुरुषार्थथी थाय छे...अनंत संसारनी कट
थई गई, अनंत स्वभावनी सामग्रीनो दरियो भाळ्‌यो–मान्यो–जाण्यो त्यां संसार छूटी गयो.
क्रमबद्धमां के निश्चयमां जे वस्तुनी स्थिति होय ते कहेवामां आवे, ते न समजे ने आडुंअवळुं करीने
स्वच्छंदी थाय,–तो शुं उपदेशने कारणे ते थाय छे?–ना; अने जे समजे छे ते पण शुं उपदेशने कारणे समजे
छे.–एम छे? ना; टोडरमल्लजीए कह्युं छे के निश्चयनो उपदेश सांभळीने व्यवहारमां स्वच्छंदी थशो तो तेमां
उपदेशनो वांक नथी, वक्तानो वांक नथी. निश्चयनी वात सांभळीने व्यवहारनो राग क््यां केवो होय ते भूली
जाय, स्वच्छंदे प्रवर्ते अने कहे के एतो ए काळे एवो राग आववानो हतो! पण अरे बापु! एनो निर्णय
करे एनी दशा तो केवी होय? अरे भाई, तुं शुं लईने बेठो आ! अरे प्रभु! एम नथी कहेता; सांभळ तो
खरो भाई!
शुं थाय? कोई कोईथी समजे तेवो छे? भडनो दीकरो छे. एनी अशुद्धता भी बडी, ने शुद्धता भी
बडी. अशुद्धतानी ऊंधाई एटली के अनंत तीर्थंकरो भेगा थाय तो य समजे तेवो नथी. अने शुद्धतानुं
सामर्थ्य प्रगट्युं तेमां एवुं सामर्थ्य छे के अनंता विरोधीओ ऊभा थाय–सातमी नरकमां केटला विरोधी छे?
मारफाड करे. शरीरना कटका करे, भलेने लाख प्रतिकूळता होय, विरोध छे क््यां अमारामां? अनंता विरोधी
होय तोपण आत्मानुं भान भूलतो नथी अने समवसरणनी अनंती अनुकूळ सामग्री मळी छतां ऊंधाईमां
अशुद्धता भूलतो नथी. शुं थाय? एनी चीज अवळी के सवळी एने कारणे ज ऊभी थाय छे. कांई बीजाने
कारणे थती नथी.
आचार्यदेव तो कहे छे के, बीजा विकल्पोथी हवे बस थाओ. अमे कहीए छीए, वस्तुस्थिति आ छे के
पूर्ण ज्ञानघनरूप आत्मानो अनुभव करवो.–आ मूळ मार्ग छे. जेने परमेश्वर थवुं होय, पोताना अंतरमां
परमेश्वरने जोवा होय तेनी वात छे. आत्माने परमेश्वररूपे जुए तो पर्यायमां परमेश्वरता थाय. माटे पूर्ण
ज्ञानस्वरूप आत्मानो अनुभव करवो, एनुं वेदन–श्रद्धा–ज्ञान–रमणताथी करवुं ते एक ज मोक्षमार्ग छे; आ
उपरांत खरेखर बीजुं कांईपण सारभूत नथी, कांई ज सारभूत नथी.
अमाराथी आटला माणसो समज्या एम माने, पण भाई! बीजा समजे के न समजे ते तो तेनी