माह: २४८८ : १७ :
पर्यायथी, तेमां ते शुं कर्युं? बीजा समजे के न समजे तेना उपरथी धर्मनुं प्रमाण टांके तो तुं भूलमां पडीश
हो! कोई जीव धर्म पाम्यो ने कोई वखते एम बने के तेनाथी कोई न समजे, तो शुं तेनो मोक्ष अटके?
बहारना घेरा उपरथी एम प्रमाण टांके के आ धर्म पामेल छे माटे घणाने धर्म पमाडयो, अने आ जीवे
कोईने धर्म न पमाडयो माटे ते धर्म पाम्यो लागतो नथी;–एम धर्मनुं प्रमाण नथी,–एम वस्तुनुं स्वरूप
नथी. एकलो, तुं.....तारामां जो....काल कह्युं हतुं के: तारी हाक सूणीने कोई न आवे तो तुं एकलो जा....
एकलो जाने, एकलो जा ने. एकलो जा....ने रे.....
तुं एकलो तारामां शमा, बापु! भगवान आत्मा देहथी पार चिदानंदमूर्ति, तेने समजवामां, ज्ञानमां,
ने तेमां ठरवामां तारी हाकलने कोई न सांभळे तो तुं एकलो तारामां ठर. अहीं आचार्यदेव कहे छे के अमारा
विकल्पो अमे बंध करी दईए छीए. शास्त्रमां घणुं कहीने अमे छेल्ले सुधी आव्या.....हवे बस थाओ....पूर्ण
ज्ञानस्वरूप आत्मानो अनुभव करवो ते ज परमार्थ छे. ते सिवाय बीजुं कांई परमार्थ नथी.
हवे छेल्ली गाथामां आ समयसारना अभ्यास वगेरेनुं फळ कहीने आचार्यदेव आ ग्रंथ पूरो करशे,
तेनी सूचनारूप श्लोक कहे छे:–
इदमेकं जगत्चक्षुरक्षयं याति पूर्णताम्।
विज्ञानघनमानं दमयमध्यक्षतां नयत्।।
अहो, आत्मानो अंतरस्वभाव तो आनंद अने विज्ञानघन छे. शोध्यो हाथ आवे नहि एटले जाणे
बहारमां अहींथी आनंद आवशे,–पैसामां के आबरूमां कीर्तिमां, मोटी पदवीमां, मानमां आनंद आवशे.
उपरथी बलुनमां ऊतरे ने लाखो माणसोनी सलामी मळे–त्यां आनंद माने; पण बापु! एमां आनंद नथी;
अरे भगवान! तुं पोते आनंदमय विज्ञानघन छे; बीजे क््यां जोवा जाश! क््यांय नथी तारो आनंद.
आनंदमय विज्ञानघन एवा समयसारने एटले शुद्ध आत्माने प्रत्यक्ष करतुं थकुं आ शास्त्र पूरुं थाय छे.
केवो छे आत्मा? आनंदमय....आनंदमय! अतीन्द्रिय आनंद, अतीन्द्रिय आनंद जे
परमात्मदशामां पूर्ण प्रगटे छे, ते पूर्ण आनंदनी दशा सादि अनंत एमने एम वहे छे. ए आनंदनुं
धाम भगवान छे, आत्मा अंतरंग आनंदनुं धाम छे, अतीन्द्रिय आनंदना स्वादनुं ए ठेकाणुं छे. ए
आनंदमय विज्ञानघन छे. आनंदथी अभेद अने विज्ञाननो घन छे. देहमां रहेल तत्त्व, शरीर–वाणीथी
पार, पुण्य–पापना विकल्पथी पण पार, ने अल्पज्ञ वर्तमान दशाथी पण पार, पूर्ण ज्ञानघन ने
आनंदमय छे.
वर्तमान परोक्षज्ञान द्वारा आवा आत्माने कई रीते प्रतीतमां लेवो?
बापु, परोक्ष तो ज्ञान अपेक्षाए छे, पण एना वेदनमां ने भानमां तो आवी शके छे ने?–आ अंश
जे ज्ञाननो ने शांतिनो छे एवुं ज एनुं आखुं स्वरूप छे; एकलो अकषाय स्वभाव छे.
सम्यग्ज्ञानमय एटले वीतरागस्वभाव आत्मा छे.
वीतरागस्वभावमय एटले आनंदमय.
आनंदमय एटले विज्ञानघन.
आवा शुद्ध परमात्माने प्रत्यक्ष करतुं आ समयसार (समयप्राभृत) पूरुं थाय छे. शुद्ध आत्माने
वाणीथी पूर्ण बतावतुं अने अंतरदशाथी पूर्ण समजावतुं आ एक अद्वितीय अक्षय जगतचक्षु–जगतनी
अक्षय आंखो पूर्णताने पामे छे, समयसार पूर्णताने पामे छे.
अहो! आनंदमय विज्ञानघन आत्माने प्रत्यक्ष करतुं, वेदनमां प्रत्यक्ष बतावतुं अने ‘समयसार’
शब्दोथी वाच्य बतावतुं, अंतरमां प्रत्यक्ष आत्माने बतावतुं, ज्ञानदशाद्वारा आ भावथी आखो आत्मा शुद्ध
परमानंद छे–एम रागनी अपेक्षा विना ज्ञाननी प्रत्यक्षताथी ज्ञाननुं वेदन बतावे छे–एवुं आ अक्षय
जगत्चक्षु समयप्राभृत पूर्णताने पामे छे.
आ समय प्राभृत पठन करीने, अर्थ तत्त्वथी जाणीने;
ठरशे अरथमां आतमा, जे सौख्य उत्तम ते थशे.