Atmadharma magazine - Ank 220
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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माह: २४८८ : १९ :
सुशील
अने
कुशील
अज्ञान ते कुशील छे........... ज्ञान ते सुशील छे
(अष्टप्राभृत–शीलप्राभृतना प्रवचनोमांथी)

सम्यग्ज्ञानने अने सुशीलने विरोध नथी. अंतरनो जे चिदानंदस्वभाव, तेने स्वध्येय बनावीने
निर्मळपणे जे परिणम्युं ते ज्ञान ज सुशील छे, ते विषयकषायोथी रहित छे, आ रीते सम्यग्ज्ञानने अने
शीलने विरोध नथी. अने जे ज्ञान, रागने ज ध्येय बनावीने विकारमां ज वर्ते छे ते कुशील छे, अज्ञान छे.
अज्ञानने लीधे ते विषयकषायमां ज प्रवर्ते छे, तेथी अज्ञान ते ज कुशील छे. स्वभावघरनो संग छोडीने बाह्य
विषयोमां जे ज्ञान एकतापणे वर्ते छे ते ज्ञाननी प्रकृति कुशील छे, ते अज्ञान छे. सम्यग्द्रष्टिनुं ज्ञान तो
पोताना चैतन्यस्वभावने ज विषय बनावीने तेमां ज वर्ते छे. रागने ते पोताथी जुदो जाणे छे, एटले राग
साथे एकतारूप मिथ्यात्वनुं कुशील तेने नथी.
मिथ्यात्व ते मोटुं कुशील छे; अने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप भाव ते सुशील छे. ज्यां सुधी
बाह्यविषयोथी भिन्नता न जाणे ने रागनी रुचि छोडीने ज्ञानभावमां न प्रवर्ते त्यां सुधी कुशीलनुं सेवन
छूटे नहि. जेने शुभरागनी रुचि छे तेने पण अभिप्रायमां विषयोनी रुचि पडी ज छे, एटले खरेखर ते
कुशीलनुं ज सेवन करी रह्यो छे. सम्यग्ज्ञान वगर बाह्यविषयोथी विरक्त थाय–तो पण तेने सुशील कहेता
नथी, केमके रागथी तो तेना परिणाम विरक्त थया नथी. भेदज्ञान वगर रागथी विरक्ति थाय नहि, ने
रागथी विरक्ति थया वगर विषयोथी पण खरी निवृत्ति थाय नहि, माटे सम्यग्दर्शन वगर कुशीलनुं सेवन
छूटे नहीं.
ज्यां सम्यग्दर्शन थयुं त्यां ज्ञाने पोताथी भिन्न भावोने पोताथी जुदा जाण्या, बाह्यविषयोने जुदा
जाण्या ने रागादिने जुदा जाणीने तेना त्यागनी बुद्धि थई, ने निर्विकार चैतन्यस्वभावनी ज भावना थई.
जेटली स्वभावपरिणति थई तेटलुं शील प्रगट्युं, ने तेटलुं कुशील छूटयुं. अहो, निर्मळ श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रना
सेवननो प्रसंग आव्यो, तेमांय रागनी रुचि अने रागनुं सेवन न छोडे तो आवो अवसर एमने एम
चाल्यो जशे. भाई, सुशील एटले ‘सम्यक्प्रकृति’ तो स्वभावना सेवनमां छे, ने कुशील एटले खराब
परिणति–खोटी प्रकृति ते तो विभावना सेवनमां छे. राग करतां करतां लाभ थशे एम जे माने छे तेने
रागनुं सेवन छे, अने रागनुं जेने सेवन छे तेने कुशीलनुं ज सेवन छे. धर्मात्मा तो रागथी भिन्न
चिदानंदस्वभावनी सन्मुख थईने सम्यक् श्रद्धा–ज्ञान–चारित्रवडे तेनुं ज सेवन करे छे, तेनुं ज नाम सुशील
छे.
अशुभ परिणाम ते ज कुशील छे, ने शुभ परिणाम ते सुशील छे–एम अज्ञानी लोको माने छे, पण
समयसारमां आचार्यदेवे स्पष्ट कह्युं छे के हे भाई, जेनुं फळ संसार होय तेने सुशील केम कहेवाय? शुभ
परिणामनुं