Atmadharma magazine - Ank 220
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 3 of 25

background image
सुवर्णपुरी समाचार
परमपूज्य गुरुदेव सुखशांतिमां बिराजे छे; तबीयत सारी छे, आंखे पण घणुं सारुं छे. ता.१–२–
६२ना रोज डॉ. मनसुखलालभाई मुंबईथी आव्या हता ने तेमणे पू. गुरुदेवनी आंख तपासीने पूर्ण
संतोष व्यक्त कर्यो हतो. हवे ता.२प–२–६२ (माह वद छठ्ठ ने रविवार)ना रोज मुंबईथी डॉ. चीटनीस
आवशे अने त्यारे आंख तपासीने चश्मानो नंबर आपशे; ते प्रसंगे डॉ. चीटनीस तथा डॉ.
मनसुखभाई प्रत्ये आभारदर्शन वगेरे विधि पण थशे. अने, सौ मुमुक्षुओने जाणीने हर्ष थशे के, त्यार
पछी बीजे दिवसे एटले के माह वद सातमने सोमवारे (ता. २६–२–६२) सवारथी पू. गुरुदेवना
प्रवचनो शरू थशे.
पोष सुद ११ना रोज उज्जैन नगरमां त्यांना मुमुक्षुमंडळ द्वारा ‘‘श्री कुंदकुंद दिगंबर जैन
स्वाध्याय मंदिर’’नुं शिलान्यास मुंबईना भाईश्री नवनीतलाल सी. झवेरीना हस्ते थयुं.
‘‘ज्ञानगोष्ठी’’ना जवाबो लखी मोकलनार बाळकोने एक फोटो आठेक दिवसमां मोकलाई जशे.
फागण सुद बीजना रोज सोनगढमां सीमधंरप्रभुनी प्रतिष्ठानो वार्षिकोत्सव छे; आ फागण सुद
बीजे सीमंधरप्रभुनी प्रतिष्ठाने २१ वर्ष पूर्ण थईने २२मुं वर्ष बेसे छे.
सं. २००८नी माह सुद पांचमे श्री गछराजजी शेठना हस्ते ‘गोगादेवी दि. जैन श्राविका
ब/ह्मचर्य–आश्रमनुं उद्घाटन थयुं हतुं आ महा सुद पांचमे एने दस वर्ष पूर्ण थई ११मुं वर्ष बेसे छे.
श्री दि. जैन स्वाध्याय मंदिर ट्रस्टना प्रमुखश्री रामजीभाई मा. दोशीने बंने बाजुनुं सारणगांठनुं
ओपरेशन मुंबईमां सफळतापूर्वक थई गयुं छे, ने तेमनी तबियत सारी छे, मुंबईमां तेओ शेठश्री
मणिलालभाईने त्यां रह्या हता ने मणिलालभाई वगेरेए तेमनी सेवामां घणी चीवट राखी हती.
स्वा. म. ट्रस्ट.
ज्ञानी पोताना
आत्माने केवो
चिंतवे छे?
केवलदरश, केवलवीरज, कैवल्यज्ञानस्वाभावी छे,
वळी सौख्यमय छे जेह ते हुं – एम ज्ञानी चिंतवे. ९६
(जे केवळज्ञान, केवळदर्शन, केवळसुख अने
केवळशक्तियुक्त परमात्मा ते हुं छुं एम ज्ञानीए भावना करवी;
अथवा हुं सहजज्ञानस्वरूप छुं, हुं सहजदर्शनस्वरूप छुं, हुं
सहजचारि५स्वरूप छुं अने हुं सहज चित्शक्तिस्वरूप छुं– एम
भावना करवी.)
निजभावने छोडे नहीं, परभाव कंई पण नव
ग/हे,
जाणे–जुए जे सर्व, ते हुं–एम ज्ञानी चिंतवे. ९७
(जे निजभावने छोडतो नथी, कांई पण परभावने
ग/हतो नथी, सर्वने जाणे – देखे छे, ते हुं छुं– एम ज्ञानी
चिंतवे छे.