Atmadharma magazine - Ank 220
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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माह : २४८८ : ३ :
परमार्थना अनुभवनो उपदेश
अने
पात्रजीवने धर्मात्मा प्रत्ये केवो प्रमोद होय?
तेनुं भावभीनुं अजोड वर्णन
समयसारना अंते आचार्यप्रभु कहे छे के,
शुद्धज्ञाननुं अनुभवन ते ज एक परमार्थ छे–ए
विषय उपरनुं आ प्रवचन छे. तेमां साथे साथे
गुरुदेवे ए पण बताव्युं छे के एवो अनुभव
करनार जीवने, अगर तो एवो अनुभव करवानी
तैयारीवाळा जीवने, व्यवहार केवो होय? तेनी
पात्रता केवी होय? कषायनी मंदता अने धर्मात्मा
प्रत्येनो प्रमोद तेने केवो होय?–ए बधुं गुरुदेवनी
अद्भुत वैराग्य भरेली वाणीथी श्रवण करतां
श्रोताओ भक्तिथी गद्गद् थई जता हता.
राजकोटमां रात्रिचर्चा वखते पू. गुरुदेवे जेनो
उल्लेख करेलो ते आ ज प्रवचन छे. विरल कही
शकाय तेवुं आ प्रवचन सर्वे जिज्ञासुओने खास
उपयोगी होवाथी अहीं प्रसिद्ध कर्युं छे.
(संवत २०१७ पोष वद चोथना रोज सोनगढमां पू. गुरुदेवश्रीनुं प्रवचन)
आ समयसारनो सर्वविशुद्धज्ञान–अधिकार छे.
भगवान आत्मा एकलो खरेखर ज्ञानस्वभाव–भावस्वरूप छे; एवा ज्ञानस्वभावनी अंतरद्रष्टिमां
तन्मय थईने तेने जेओ जाणता नथी, वेदता नथी, द्रष्टि अंतर्मुख स्थिर करता नथी, एवा जीवोने धर्म थतो
नथी. पछी ते श्रावक हो के मुनि हो. श्रावकने माटे पण एक ज वात छे ने मुनिने माटे पण एक ज वात छे.
शुद्ध ज्ञान ज एक छे एवुं निष्तुष अनुभवन ते परमार्थ छे. भगवान आत्मा ज्ञानमूर्ति
चैतन्यज्योत शक्तिमां परिपूर्ण सत्त्वस्वभाव छे, ते राग अने परपदार्थमां खरेखर व्याप्यो ज नथी. राग
अने विकल्पथी पार एवो जे आत्मानो त्रिकाळी आनंद अने ज्ञानस्वभाव, तेनो जे निष्तुष–निर्मळ
अनुभव ते परमार्थ छे. श्रावकने माटे पण आ चीज छे; श्रावकने पण निर्मळ अनुभव होय छे. आत्माना
शुद्ध चैतन्य द्रव्यमां अंतरमां एकाकार थईने जे शांति अने ज्ञाननुं निर्मळ वेदन थाय ते श्रावकनो
परमार्थधर्म छे.–