समजाणुं? श्रावकनो पण आ ज धर्म छे. बीजे ठेकाणे व्यवहारथी कथन आव्युं होय त्यां एम जाणवुं के
अशुभथी बचवा माटे शुभनो एवो काळ एने होय छे.
पूजा एवा भाव होय, पण ए राग ते कषायमंद छे अने ते पुण्यबंधनुं कारण छे, मोक्षनुं कारण ए नथी,
श्रावकने पण मोक्षनुं कारण ए नथी. पूजा–भक्ति के दान ते श्रावकने मोक्षनुं कारण छे–एम जे कहेवामां
आव्युं ते व्यवहारथी छे, खरेखर परमार्थे तेम नथी. परमार्थ तो, चैतन्यप्रभु ज्ञानसमुद्र जेना मध्यबिंदुमां
केवळज्ञाननी पर्यायो अनंती–अनंती–अनंती प्रगट थाय एवुं जे वस्तुस्वभावमां सामर्थ्य छे. तेमां एकाकार
थईने ज्ञाननुं निष्तुष अनुभवन करवुं ते परमार्थ मोक्षकारण छे. तेमां व्यवहारना रागनी भेळसेळ नथी,
रागरूपी फोतरुं नथी. तुष एटले फोतरुं; निष्तुष एटले फोतरां वगरनुं. व्यवहार हो भले, पण
स्वभावसन्मुखनी निर्मळ अनुभवमां ते व्यवहारनी भेळसेळ नथी.
आत्मा चैतन्यस्वरूप स्वभाव छे, ज्यां जुओ त्यां ज्ञान ने ज्ञान ज मूळपणे (मुख्यपणे) भासे छे.
अनुभव थवो ए एक ज–अनुभवज्ञाननी निर्मळदशा ते ज मुक्तिनुं कारण छे. सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान अने
सम्यक्चारित्रनी स्थिरतानो अंश ए त्रणे बोल एमां आवी गया. ज्ञाननुं आवुं निष्तुष अनुभवन ते ज
परमार्थ छे.
परमार्थ स्वभाव जे अनादि अनंत चैतन्यसत्त्व छे तेमां एकाग्रताथी स्वभाव सन्मुखदशानी निर्मळता–ए
एक ज परमार्थ छे.
भक्ति अधिकार वंचायो हतो ने बीजीवार (२०१पमां) दान अधिकार वंचायो; भक्ति–दान वगेरेना भाव
होय एवो व्यवहार छे ने! एनुं स्वरूप पण जेम होय तेम बताववुं जोईए ने?
माटे भले ए दया कामनी न होय.
जुओ भाई, वात एम छे के, साचा देव, गुरु, शास्त्र, ज्ञानी, एनो विनय तो पहेलो होय ज. ए
चारित्र, तथा तेना पामेला देव–गुरु अने तेना कहेनारा शास्त्र,–एना प्रत्ये बहु मान, बहु विनय
अविनयनो अभाव, विरोधनो अभाव–एवो भाव होय ज; जेने ए न होय तेने तो कदी सम्यग्दर्शन थाय
नहीं. समजाय छे?–आ वात तो घणीवार आवे छे, अहीं तो हवे अत्यारे परमार्थ मोक्षमार्ग शुं छे ते वात
चाले छे.