जेने एटलो भाव पण न होय ते एना विना सम्यग्दर्शन पामी जाय एम बने नहि; अने एटला भावथी
सम्यग्दर्शन पामी जाय–एम पण नथी.
जेटली छे, पण एनो अनादर के एनो विरोध होय ने कोई धर्म पामी जाय–के ज्ञान पामी जाय एम
त्रणकाळ त्रणलोकमां न बने. ज्ञानीनो विरोध करे, ज्ञानीनो अविनय करे, ज्ञानीनी असातना करे, ज्ञानी
सामे द्वेष करे, अने एनो जे विनय छे ते विनय न करे ने अविनय करे–ए तो तीव्र मिथ्यात्व अने तीव्र
पाप छे. एनाथी बचवा माटे भक्ति वगेरेनो शुभभाव होय पण ए भावनी मर्यादा रागनी मंदता सुधी
आवे छे.
एक ज्ञानी–सम्यग्द्रष्टि चंडाळ होय तो पण एने जोईने जिज्ञासु जीवने एम थाय के अहो! आ
वचननो विरोध, एना भावनो विरोध, धर्मनी जिज्ञासावाळाने न होय,–हजी धर्म पामवानी वात तो
पछी.
छे–अने आवी गयेली एटले भूलाई गयेली होय–केटलीक तो!! भगवान! आ वातुं बापा! कोई जुदी
छे! स्व स्वभावनुं पामवुं–एनी प्रथम लायकातमां, उपदेश सांभळवानी लायकातमां, एना उपदेशने
श्रवण करवानी विनयतामां, एनी योग्यतामां, एनी पात्रतामां केटलो कषाय मंद होय! केटली नरमाश
होय! शास्त्रमां कहे छे के जेम सोनुं (हेम) वाळ्युं वळे एवी जेनी कषायनी मंदता होय–छतां ए
कषायनी मंदतानुं लक्ष पर उपर छे, स्वमां लक्ष वाळवा माटे एने सहायक कहेवामां आवतुं नथी.–बे
वात छे.
बोल्या, के एना ख्यालमां धारणानी वात आवी–एटलेथी मानी ल्ये के हवे कल्याण थई जशे. पण
बापु! अंदरमां मार्गनी रीत कोई बीजी छे. एकदम हळवो! प्रकृतिमां एटलो विनय, नम्रता,
स्वभावनी एटली कुणप, अंदरमां एटली नरमाश के ज्यां वाळवो होय त्यां वळे,–ज्यां नाखवी होय
एनी कोर एनी द्रष्टि जाय.–आवी पहेली पात्रता होय, ए तो पहेले नंबरे, पहेलेथी ज कहेता आवे छे.
एटलुंय जेने नथी तेने तो धर्मनी लायकात पण नथी; छतां एटले आव्यो तेथी सम्यग्दर्शन थई जाय के
धर्म पामी जाय–एम पण नथी.
सर्वज्ञ परमात्मानुं प्रतिबिंब, सर्वज्ञ परमात्माना संतो ए अमारा साधर्मी छे...ए अमारा साधर्मी छे!
अमारा साधर्मी प्रत्ये अमने बहु विनय....विनय....विनय अने बहुमान छे.–आम कुंदकुंदाचार्य जेवा पण
अंदर कहे छे. छठ्ठे गुणस्थाने आव्या तेने पण आवो प्रमोद आवे छे के अहा!