Atmadharma magazine - Ank 220
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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: ६ : आत्मधर्म: २२०
अहीं तो हजी जिज्ञासा अने सांभळवानी पण लायकात न होय त्यां ज्ञानी कोण अने धर्मी कोण?–
एनाथी अमे अधिक ने एनाथी अमे आघा गया–एम माने, ए कांईक दिशा फेर छे, कांईक अंदरमां दशा
नथी, वस्तु नथी. पहेलेथी रागनी मंदतानी एटली लायकात जोईए के सांभळेलुं होय तो पण एने एम
लागे के अहा!–एम आह्लाद आवे; एने बदले जेने एम थाय के आ तो अमने आवडे छे, आ तो अमे
सांभळेल छे.–एनी लायकात नथी. ‘ए तो अमने आवडे छे...महाराज तो कीधा करे, दररोज कहे छे एनी
ए वात!’–अरे....सांभळ रे सांभळ! एवा सांभळ्‌या ने जाणपणा थई गया माटे तने ज्ञान थई गयुं के
आवडी गयुं!–ए मोटो स्वच्छंद छे अंदर. ज्यां एटली तो लायकात एनामां पहेलां न होय–त्यां धर्म क््यांथी
पामे? पात्रता होय एने तो आम ख्यालमां अंदर आवे के आहाहा! अमे तो ज्ञानीना दासानुदास छीए...
दासानुदास छीए, एना चरणना सेवक छीए. एवी भक्ति देव–गुरु–शास्त्र अने ज्ञानी प्रत्ये होय. जेनो
भाव आवो विनयनो न होय अने नव पूर्व भणी गयो होय तो य मोटा मींडा छे. चक्करडां!
बधी वात कहेवाय छे, भाई!
पण ए परलक्षमां वृत्तिनुं वहन तेनी मर्यादा रागनी मंदता जेटली छे. गुरु उपदेशात् पामी जाय–
एम पण कहेवामां आवे छे, ने दिव्यध्वनिथी न पाम्यो–एम पण कहेवाय छे. दिव्यध्वनिथी न पाम्यो ने
गुरुउपदेशथी पाम्यो?
गुरु क्या कहता होगा? गुरु गुरुकी जाने; मैं तो मेरी कहेता हूं। (ए वात
धर्मदासजीए करी छे.)
अचळ ज्ञानस्वरूप एनी अंदरनी स्वसन्मुखनी द्रढता अने एनुं वेदन–अनुभवन ए विना त्रणकाळ
त्रणलोकमां बहारना भक्ति–व्रत के दान–पूजाना भावथी कदी तारी मुक्ति थवानी नथी. अरे, एना वडे
मिथ्यात्वमांथी पण मुक्त थवानो नथी.–छतां मिथ्यात्वथी मुक्त थवाना काळ पहेलां उपर कह्यो तेवो
विनयादिनो भाव होया वगर होय नहीं. अने पछी पण, सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान थया पछी पण, एने ज्ञानी
सर्वज्ञ परमात्मा, एनी स्थापना–प्रतिबिंब, एना द्रव्यनी योग्यता–तीर्थंकर थवानी के सर्वज्ञ वगेरे थवानी.
एनो भाव,–एना प्रत्ये बहुमान आव्या विना रहे नहि. जो के एनी मर्यादा विकल्प पूरती छे, पण एने
उडावीने अंतरमां कोई गरी जाय के सम्यग्ज्ञान पामी जाय–एम त्रणकाळ त्रणलोकमां न बने. अने एने
लईने पामी जाय–एम पण नथी.
–समजाणुं कांई आमां?
शास्त्रमां आवे छे के–ज्ञाननी आसातना, ज्ञाननो विराधक, ज्ञाननुं निह्नववुं–ए बधा
ज्ञानावरणीय बांधवानां कारणो छे. ज्ञानीनी आसातना, ज्ञानीनो विरोध, ज्ञानीनी अंतराय, एना
ज्ञानमां के बीजा माने–बीजा समजे तेमां विघ्न नाखवुं–ते बधा मोहनीयकर्म अने ज्ञानावरणीय कर्मनां
चीकणां काटडां बांधनारा छे.–समजाय छे? कोई पराणे दई दे तेवुं छे?–ए भाव (विनयादिनो) होय
छे छतां चिदानंदमूर्ति भगवान तेमां तन्मय नथी. ज्ञानप्रकाशी आत्मा त्रणकाळ त्रणलोकना पदार्थोथी
तन्मय त्रणकाळमां थयो नथी, थशे नहीं, ने छे नहीं. एकलो ज्ञानगोळो चैतन्यप्रकाश छे,–एमां
तन्मयपणुं थईने अनुभव थवो ते एक ज मुक्तिनो मार्ग अने परमार्थ छे, बीजो कोई मार्ग छे नहीं.
पण,–ए मार्ग संभाळीने पाछो व्यवहारना मार्गने भूली जाय,–तो ए मार्ग नथी. तेथी तो बे वात
लीधी हती. पहेलां भक्तिनी अने पछी दाननी वात करी हती. भक्ति जोईए, देव–गुरु–शास्त्रनो विनय,
ज्ञानीनो विनय ने ज्ञानीनुं बहुमान जोईए. अने आचार्यदेव कहे छे के...............
(अनुसंधान माटे जुओ पानुं. ११)