Atmadharma magazine - Ank 220
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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(श्रावकनां कर्तव्यनुं वर्णन)
(गतांकथी चालु)
उपासक एटले उपासना करनार; धर्मनी उपासना करनार
श्रावक केवा होय ने तेनुं हंमेशनुं कार्य शुं छे? तेनुं आमां वर्णन छे.
सातमी गाथामां देवपूजा वगेरे छ कर्तव्यनुं वर्णन छे. तेमांथी
देवपूजासंबंधी विस्तार आगला लेखमां थई गयो छे, गुरुउपासना
संबंधी विस्तार चाले छे.
देवपूजा पछी श्रावकनुं बीजुं कर्तव्य छे गुरुउपासना; गुरुउपासना एटले निर्ग्रंथ मुनिवरोनी तेमज
धर्मात्मा–संतोनी सेवा, तेमनो सत्संग, तेमनुं बहुमान, तेमनी भक्ति, तेमनी प्रसंशा, तेमनी पासेथी
उपदेशनुं श्रवण; ते बधुं गुरुसेवामां समाय छे, ने ते गृहस्थ–श्रावकोनुं हंमेशनुं कर्तव्य छे. धर्ममां जे मोटा छे
एवा धर्मात्माओनी सेवा ते गुरुउपासना छे.
भगवाननी पूजामां ने गुरुनी सेवामां तो राग छे ने!–एम कहीने कोई तेनी उपेक्षा करे, तो तेने
धर्मनो प्रेम जाग्यो नथी. जो के तेमां छे तो शुभराग, अने परमार्थद्रष्टिमां ते उपेक्षा योग्य छे, परंतु जेने
धर्मनो प्रेम जाग्यो होय तेने धर्मना दातार एवा वीतरागी देव–गुरु प्रत्ये, तेमज धर्मना साधक जीवो प्रत्ये
परम प्रेम अने भक्ति उछळ्‌या वगर रहे नहि. श्रावकने हजी रागनी भूमिका छे एटले तेनो राग वीतरागी
देव–गुरु–शास्त्र तरफ वळी गयो छे. हजी तो जेने रागनी दिशा पण संसार तरफथी बदलीने धर्म तरफ नथी
वळी–ते जीवने धर्मनो प्रेम केम कहेवाय? धर्मनो जेने प्रेम जाग्यो ते तो धर्मना साधक मुनिवरोने के धर्मात्मा
जीवोने देखतां ज प्रमोदथी उल्लसी जाय के ‘वाह! आ धर्मात्मा मोक्षमार्गने केवा साधी रह्या छे!!’ तेने
तनथी–मनथी–धनथी सर्व प्रकारे तेनी सेवानो भाव आवे. जमवाना समये धर्मात्माने रोज एम भावना
थाय के अरे, कोई मोक्षसाधक मुनिराज के कोई धर्मात्मा मारा आंगणे पधारे तो तेमने भोजन करावीने
पछी हुं जमुं. अरे, आ पेटमां कोळियो पडे तेना करतां कोई मुनिराज–धर्मात्माना पेटमां कोळियो जाय तो
मारो अवतार सफळ छे. हुं पोते ज्यारे मुनि थईने करपात्री बनुं ते धन्य अवसरनी तो शी वात? परंतु
मुनि थया पहेलां बीजा मुनिवरोना हाथमां हुं भक्तिथी आहरदान करुं तो मारा हाथनी सफळता छे.–आम
रोजरोज श्रावक भावना भावे; तेमज धर्मात्माश्रावको प्रत्ये पण बहुमान अने वात्सल्य आवे.
जे पोतामां सम्यग्दर्शनादि गुण प्रगट करवा मांगे छे तेने ते गुणोनुं बहुमान आव्या वगर रहेतुं
नथी, एटले जेमने एवा गुणो प्रगट्या छे एवा देव–गुरु