Atmadharma magazine - Ank 221
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

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फागण: २४८८ : ११ :
प्रश्न:– (२१) नवतत्त्वोमांथी कया कया तत्त्वो सारा (हितरूप) छे?
उत्तर:– जीव, संवर, निर्जरा ने मोक्ष.
प्रश्न:– (२२) मिथ्याद्रष्टि जीव कया तत्त्वोनो राजा छे?
उत्तर:– पाप, आस्रव, ने बंध.
प्रश्न:– (२३) नीचेना वाक््यो वांचतां कयुं तत्त्व याद आवे छे? तेनो उत्तर नीचे मुजब कौंसमां
जणावेल छे––
१. जीव नरकमां घणुं ज दुःख भोगवे छे. (पापतत्त्व)
२. स्वर्गमां पण खरेखर सुख नथी. (पुण्यतत्त्व)
३. सिद्धभगवंतो संपूर्ण सुखी छे. (मोक्षतत्त्व)
४. चैतन्यना ध्यान वडे कर्मना भूक्का ऊडी जाय छे. (निर्जरातत्त्व)
प. ज्ञान ते मारो स्वभाव छे. (जीवतत्त्व)
६. मिथ्याद्रष्टिने घणी आवक छे ने सम्यग्द्रष्टिने बहु ज थोडी आवक छे,–शेनी?–कर्मनी.
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धर्मनी साची प्रभावना
सम्यग्द्रष्टि–धर्मात्मा पोतामां चैतन्यधर्मनी आराधना वडे अने बीजा जीवोमां ते
आराधनानो महिमा प्रसिद्ध करीने धर्मनी प्रभावना करे छे.
जेने पोतामां तो धर्म प्रगट्यो नथी, तेमज बीजा जेमनामां धर्म प्रगट्यो छे एवा
धर्मात्माओ प्रत्ये जेने बहुमान नथी–एवा जीवोद्वारा धर्मनी प्रभावना थई शकती नथी.
धर्मनी प्रभावना धनद्वारा थती नथी, धर्मनी प्रभावना धर्मात्मा द्वारा थाय छे. धर्म
धर्मात्माना आधारे छे, धर्म कांई धनना आधारे नथी. पण बहारनी हा–हो–हरीफाई आडे
लोकोने धर्मात्माना हृदय पारखवा मुश्केल थई पड्या छे.
लाखो–करोडो शास्त्रो वांचतां पोतानी मेळे जे रहस्य नहि मळे, ते रहस्य
ज्ञानीधर्मात्मा एक वाक््यमां समजावी देशे.
लाखो करोडो रूा. खरचतां जे प्रभावना नहि थाय ते प्रभावना धर्मात्माना एक ज
वचनथी थशे.
ज्ञानी धर्मात्मानुं जीवन ज स्वयमेव धर्मनी प्रभावना करी रह्युं छे.
धर्मना आराधक धर्मात्माने देखतां मुमुक्षुने आराधनानो उत्साह जागे छे, के वाह!
आ धर्मात्मा केवुं धर्मसाधन करी रह्या छे!! ने हुं पण एवुं ज धर्मसाधन करुं.
वीतरागी मुनिराज ध्यानमां बेठा बेठा पण धर्मनी महान प्रभावना करी ज रह्या छे,
केम के तेमनी वीतरागी ध्यानमुद्रा देखीने ज बीजा भव्यजीवोने धर्मनी भावना जागे छे.