फागण: २४८८ : १३ :
(व्यवहारनुं) अवलंबन लेतां रागादिनी उत्पत्ति थाय छे ते असत्कार्य छे, अने ते बंधनुं कारण छे, माटे
मुमुक्षुए शुद्धनयनो आश्रय करवा जेवो छे ने अशुद्ध नयनो आश्रय छोडवा जेवो छे.
जेने जेनी धून लागे तेमां ते एकाग्र थाय, ने बीजुं भूली जाय. जेने चैतन्यमूर्ति आत्मानी धून चडी
गई छे ते पुण्य–पापमां क््यांय एकाग्र थतो नथी जेम रमतनी धूनमां चडेलो बाळक खावानुं पण भूली जाय
छे, तेम चैतन्यनी धून आडे ज्ञानीने बाह्य विषयोनो ने रागनो स्वाद ऊडी गयो छे. अहा, जे ज्ञाने अंतर्मुख
थईने चैतन्यना आनंदनुं वेदन कर्युं–ते ज्ञानना महिमानी शी वात!! भले अवधिज्ञान न हो, मनःपर्ययज्ञान
न हो, बार अंगनुं ज्ञान न हो, पण जे ज्ञाने शुद्धात्माने अनुभवमां लीधो ते श्रुतज्ञाने आखुं जिनशासन
जाणी लीधुं, ते श्रुतज्ञान अंतर्मुख एकाग्रतावडे केवळज्ञान साधशे. आवा श्रुतज्ञानने शुद्धनय कहेवाय छे.
चोथा गुणस्थानथी ते शुद्धनय शरू थाय छे. ते शुद्धनय केवळज्ञाननी जातनो छे, शुद्धनयनो आश्रय वधतां
वधतां केवळज्ञान थाय छे.
शुद्धात्माने अवलंबनारो जे शुद्धनय, तेनाथी जे च्युत छे, एटले के शुद्धात्मानुं अवलंबन जेओ नथी
करता, ने पुण्यना अवलंबनमां लाभ मानीने त्यां ज अटक्या छे तेे जीवो फरी फरीने नवा कर्मो बांधे छे.
अने जेओ शुद्धनयनुं अवलंबन नथी छोडता तेओ कर्मबंधनने छेदीने मुक्ति पामे छे.
आस्रव कोने थाय?
–के जे शुद्धनयनुं अवलंबन न करे तेने.
आस्रवनो अभाव कोने थाय?
–जे शुद्धनयनुं अवलंबन करे तेने.
माटे आचार्यदेव कहे छे के–सर्व कथननुं तात्पर्य ए छे के शुद्धनय त्यागवा योग्य नथी; शुद्धनयनो
आश्रय छोडवाथी बंधन थाय छे ने शुद्धनयनो आश्रय करवाथी मुक्ति थाय छे, माटे शुद्धनयनो आश्रय
करवो ते सर्वशास्त्रनो सार छे. पवित्र सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माने अंतरद्रष्टिमां सदाय शुद्धनयनुं अवलंबन वर्ते
छे, अने ज्ञानकिरणोने अंतरमां समेटीने चैतन्यमां ज उपयोगने एकाग्र करीने अल्पकाळमां ते केवळज्ञानने
प्रगट करे छे. माटे जेओ सम्यग्द्रष्टि छे अथवा तो जेओ सम्यग्द्रष्टि थवा मांगे छे एवा पवित्र जीवोए
शुद्धनयवडे शुद्धात्मानुं ज अवलंबन करवुं–एम श्री गुरुओनो उपदेश छे.
आस्रव एटले मलिनभाव, ते ज बंधनुं कारण छे. जेने मलिनभाव नथी तेने बंधन नथी. अंतरनो
जे परमात्मस्वभाव, तेने अवलंबनारो शुद्धनय ते निर्मळ छे; एवा शुद्धनयने अवलंबनारा ज्ञानीने बंधन
थतुं नथी. जे जीवो शुद्धनयथी च्यूत छे, जेओ शुद्धआत्माने जाणता नथी ने रागमां ज लीनपणे वर्ते छे एवा
अज्ञानीओने ज बंधन थाय छे. शुद्धनयमां तो शुद्ध परिणमन छे, ते शुद्धता बंधननुं कारण केम थाय?
शुद्धआत्माने अवलंबनारो जे शुद्धनय तेने ज खरेखर नय कह्यो छे. शुद्धनय जेने नथी ते जीव नयथी भ्रष्ट
छे, तेने एकेय नय साचो होतो नथी; तेने रागादिमां एकतारूप मिथ्या अभिप्राय छे. ते मिथ्या अभिप्रायने
लीधे जुना कर्मोमां जोडाईने ते नवा कर्मोने बांधे छे. आ रीते मिथ्या अभिप्राय ज कर्मबंधननुं मूळ कारण
छे. ज्ञानीए तो शुद्धनयना अवलंबन वडे शुद्धता प्रगट करीने पूर्वकर्म साथेनुं जोडाण तोडी नांख्युं छे तेथी
तेने जुनुं कर्म नवा कर्मना बंधनुं कारण थतुं नथी, बंधनुं कारण थया वगर ज ते खरी जाय छे. आ रीते
ज्ञानीने बंधन नथी, पण निर्जरा ज छे.
अहो, शास्त्रनुं तात्पर्य एक वाक््यमां आ छे के शुद्धनयनो आश्रय करवो; एटले के
पूर्णानंदस्वभावनी सन्मुख थईने शुद्धनयरूप परिणमवुं. जेने परिणमन शुद्धात्मा तरफ वळेलुं छे तेने
कर्मचक्रनी परंपरा तूटी जाय छे. अने जेनुं परिणमन रागमां एकतारूप छे तेने कर्मचक्र आखेआखुं अखंड
रहे छे. बे बाजु छे–एक बाजु ज्ञानानंदस्वभाव, अने बीजी बाजु रागादि परभावो; आ बाजु स्वभाव
तरफ वळीने एकाग्र थयो ते मुक्त थाय छे, ने बीजी बाजु राग तरफ वळीने एकाग्र थयो ते बंधाय छे.