साथे गोष्ठी बांधी छे. परमात्मस्वभावमां पेठा त्यां बंधन तो दूर दूर चाल्युं गयुं. परमात्मस्वभावमां कर्मनो
प्रवेश नथी. माटे शुद्धनयवडे जे परमात्मस्वभावमां पेसीने ऊंडो ऊतर्यो एवा ज्ञानीने कर्मनुं बंधन थतुं
नथी.
नास्ति बंधस्तदत्यागात् तत्त्यागात्बंध एव हि।। १२२।।
शुद्धनय त्यागे बंध है, ग्रह शुद्धनय मोक्ष.
करनारो एवो अशुद्धनय–व्यवहारनय ते ग्रहण करवा योग्य नथी. ज्यां स्वभावनो आश्रय थयो त्यां
मोक्ष छे ने ज्यां विभावनो आश्रय थयो त्यां बंधन छे.–आ महासिद्धांत जाणीने मुमुक्षुए शुद्धनयवडे
शुद्धात्मामां परिणमवुं–ते ज सर्व शास्त्रोनुं तात्पर्य छे. जेणे स्वभावनो आश्रय करीने शुद्धअनुभूति
प्रगट करी तेणे परमशांत अतीन्द्रिय चैतन्य आनंदरस चाख्यो अने बधाय शास्त्रोनो नीचोड तेणे
प्राप्त करी लीधो.
अध्यात्मरसनी धारा टपके छे. १२३मा कळशमां आचार्यदेव कहे छे के अहो, शुद्धात्माने अवलंबनारो
आ शुद्धनय धीर छे अने उदार छे; शुद्धनयनो महिमा अत्यंत उदार छे, शुद्धनय एवो बळवान छे के
ज्ञानमां स्थिर थईने कर्मोने मूळमांथी ऊखेडी नांखे छे–आवो महिमावंत शुद्धनय छे ते पवित्र
धर्मात्माओए कदी पण छोडवा योग्य नथी. जुओ, आ पवित्र धर्मात्माओनुं लक्षण! पवित्र धर्मात्मा
शुद्धनयने कदी छोडता नथी. जेओ शुद्धनयनुं अवलंबन छोडीने, रागना आश्रयनी बुद्धि करे छे ते जीव
पवित्र नथी, ते जीव धर्मी नथी, ते जीव मलिनचित्तवाळो छे. सम्यग्द्रष्टिनुं चित्त तो शुद्धनयथी ओपतुं–
दीपतुं छे, ते ज खरुं कार्य करनारो छे. बहारमां देह स्त्रीनो हो के पुरुषनो, पण जेणे अंतरमां शुद्धनय
वडे आत्मानी निर्मळ अनुभूति प्रगट करी छे ते कृतकृत्य छे, ते महान छे. एवा पवित्र धर्मात्मामां
पोताना ज्ञानकिरणोने ज्ञान स्वभावमां ज समेटीने, चैतन्यना अचळ शांत पूर्ण तेज ने देखे छे,
परमआनंदरसने अनुभवे छे ने ज्ञानमां लीनतावडे अल्पकाळमां केवळज्ञान प्रगट करे छे. धर्मात्मा
साधक थईने शुद्धनयवडे पोताना शुद्ध आत्माने ज साध्य बनावे छे, शुद्धनय ज तेनुं साधन छे; तेना
साध्य, साधक ने साधन त्रणे निर्विकल्पपणे पोतामां ज समाय छे, वच्चे बीजुं कोई साधक नथी.