Atmadharma magazine - Ank 221
(Year 19 - Vir Nirvana Samvat 2488, A.D. 1962)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 21

background image
फागण: २४८८ : ७ :
न रह्युं, एटले विकार गयो परमां, माटे तेने पुद्गलनुं ज कार्य कही दीधुं.
‘राग ते पुद्गलनुं कार्य छे,–जीवनुं नहि’–एम खरेखर कोण कही शके? के जे जीव विकारथी जुदो
पडीने, चिदानंदस्वभावनी सन्मुखताथी निर्मळ श्रद्धा–ज्ञानादि परिणामनो कर्ता थयो छे एटले पर्यायमां जेने
विकारनुं कर्तृत्व छूटी गयुं छे एवा ज्ञानी धर्मात्मा रागने पुद्गलनुं कार्य जाणे छे, एटले तेओ रागमां तन्मय
थईने परिणमता नथी पण तेनाथी भिन्नपणे परिणमता थका तेना ज्ञाता ज रहे छे. रागमां तन्मयपणे
वर्ते, राग अने ज्ञाननुं भेदज्ञान पण न करे अने एम कहे के ‘राग तो पुद्गलनुं कार्य छे’–तो एने तो
पर्यायनो पण विवेक नथी, एने तो जडथी भिन्नतानुं पण भान नथी. अहीं तो जे ज्ञानपणे परिणम्यो ते
विकारनो अकर्ता थयो,–तेनी वात छे.
अरे जीव! पंचपरमेष्ठीपदमां तुं जेमनुं स्मरण करे छे ते पद तारामां ज पड्या छे, तारा चैतन्यनो ज
विकास थईने तेमांथी पंचपरमेष्ठी पद खीले छे, ए क््यांय बहारथी नथी आवता. धर्मी पण भगवान पासे
भक्तिमां एम गाय के:
हे वीर! तुम्हारे द्वारे पर
एक दर्श भीखारी आया है....
ओ शांतिसुधारस भरनेको
दो नयन कटोरे लाया है..
पण अंदर भान छे के मारुं चैतन्यपद तो मारामां छे, ते कोई बीजुं मने आपी दे तेम नथी.
अंदर पोताना चैतन्य पासे जईने कहे छे के हे नाथ! हुं लोकोत्तर भीख मागवा तारी पासे आव्यो छुं;
उत्कृष्ट एवुं परमेश्वरपद मांगवा हुं तारी पासे आव्यो छुं. हुं कोई बाह्य सामग्री मागवा, के ईन्द्रपद
मागवा के राग मागवा तारी पासे नथी आव्यो पण मारुं परमेश्वरपद मागवा तारी पासे आव्यो छुं.
जुओ, आ लोकोत्तर द्रश्य भीखारी!–जोवा जेवो भीखारी!–अंदर द्रष्टिमां तो बादशाहनो पण बादशाह
छे ने चैतन्यस्वभाव पासे पूर्ण परमात्मदशारूपी भीख मांगे छे, ने पोतानो आत्मा ज तेनो दाता छे
एवुं भान छे; एटले आत्मामां अंतर्मुख एकाग्र थईने अल्पकाळमां पूर्णपरमात्मपदने प्राप्त करे छे.
अज्ञानी तो विकार पासे भीख मांगे छे के हे शुभराग! तुं मने धर्ममां मदद दे! परंतु विकारमां एवी
ताकात नथी के तेने निर्मळपर्यायरूप धर्म आपे, एटले तेने कदी निर्मळदशा थती नथी ने भीखारीपणुं
टळतुं नथी.
पुद्गलपरिणामने के रागादिविकारने आत्मद्रव्यनी साथे कर्ताकर्मपणुं नथी,–एम समजीने जे जीव
आत्मद्रव्य तरफ वळ्‌यो ते ज्ञानी थयो अने तेना ज्ञानपरिणाम ते तेनुं कार्य थयुं.
धर्मीना ते ज्ञानपरिणामने पुद्गलकर्म साथे के रागादि साथे कर्ताकर्मपणुं नथी, पण ते ज्ञान रागादिने
जाणे छे खरुं. ए रीते रागादिने जाणनारुं ज्ञान ते ज्ञानीनुं कर्म छे; ए रीते ज्ञानी पोताना आत्माने
ज्ञानपरिणामनो ज कर्ता जाणे छे. रागनो कर्ता ते हुं नथी, ज्ञाननो कर्ता हुं छुं एम धर्मी जीव पोताना
आत्माने ज्ञानपरिणाममय ज अनुभवे छे. आ रीते आत्माश्रित थता जे निर्मळज्ञानपरिणाम तेने ज जे
पोताना कर्मपणे करे छे, ने ए सिवाय अन्य कोई भावोने पोताना करतो नथी ते ज आत्म ज्ञानी छे–एम
ओळखवुं. एम ओळखीने पोताना आत्मामां पण रागादिनुं कर्तृत्व छोडीने निर्मळज्ञानभावना कर्तापणे
परिणमवुं–एम तात्पर्य छे.
ज्ञानीधर्मात्माना जे निर्मळ आत्मपरिणाम छे ते बंधननुं निमित्त पण नथी, एटले तेने कर्म साथेनो
निमित्तनैमित्तिक संबंध पण तूटी गयो छे. तेने परज्ञेयो साथे मात्र ज्ञेयज्ञायकसंबंध छे, एटले ज्ञानी